बस्ती जिले के विकास खंड बहादुरपुर के गांव भेलवल के रहने वाले युवा किसान अरविंद सिंह कुछ सालों पहले खेती में बढ़ती लागत और बढ़ती मजदूरी की वजह से लगातार घाटे में चल रहे थे. उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि वे घाटे में चल रही खेती को मुनाफे की तरफ कैसे मोड़ें, इसलिए वे अपनी खेती को?छोड़ कर कोई दूसरा कामधंधा अपनाने की सोच रहे थे. उन्होंने एक दिन अपने मन की बात एक प्रगतिशील किसान को बताई, तो उस किसान ने बताया कि अगर खेती को मुनाफे का सौदा बनाना है, तो इस के लिए उन्हें खेती में उन्नत तकनीक को अपनाते हुए उन्नतशील बीज, खाद, उर्वरक व यंत्रीकरण का सहारा लेना होगा. वे अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों से खेती को फायदेमंद बनाने के तरीके जान सकते हैं. इस युवा किसान अरविंद ने अपनी खेती की डूबती नैया को पार लगाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र का सहारा लेने का मन बनाया और एक दिन अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क कर के अपनी घाटे से जूझ रही खेती को उबारने की सलाह मांगी.
वैज्ञानिकों ने उन्हें सलाह दी कि वे अपनी खेती की लागत में कमी लाने व समय प्रबंधन के लिए यंत्रीकरण को बढ़ावा दें. इस से न केवल लागत में कमी आएगी, बल्कि जोखिम घटने के साथसाथ उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी. कृषि वैज्ञानिकों ने अरविंद को यह यकीन दिलाया कि खेती में किसी भी तरह की परेशानी आने पर वे खुद खेत में आ कर उस का समाधान बताएंगे. अरविंद सिंह ने कृषि वैज्ञानिकों के बताए अनुसार अपनी खेती को फिर से नए तरीके से करने की कोशिश करनी शुरू कर दी. इस के लिए उन्हें जरूरत थी फसलों के अच्छे बीज और जुताई व मड़ाई के यंत्रों की. इस के लिए उन के पास पूंजी की कमी आड़े आ रही थी. उन्होंने फिर से कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क किया, तो कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि सरकार व बैंकों द्वारा खेती व कृषि यंत्रों की खरीदारी के लिए सब्सिडी के साथ कर्ज दिया जाता है, जिस के लिए वे आवेदन कर सकते हैं.
ये भी पढ़ें- कृषि सुधार कानून में गडबडझाला: कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नाम पर किसानों से
अरविंद ने पहली बार बैंक से कर्ज ले कर ट्रैक्टर व जुताई के यंत्रों की खरीदारी कर के खेती की शुरुआत की. इस से उन की खेती में कुछ हद तक लागत की कमी तो आई, लेकिन फसल की मड़ाई व रोपाई में अब भी लागत ज्यादा आ रही थी. उन्होंने फिर से कृषि वैज्ञानिकों से गेहूं, आलू वगैरह की बोआई के लिए काम आने वाले यंत्रों की जानकारी हासिल की और उस के बाद उन्होंने पहली बार कृषि विभाग से अनुदान पर जीरोटिल सीडड्रिल को खरीद कर लाइन से लाइन की बोआई की. इस से न केवल खाद, उर्वरक व बीज की मात्रा में कमी आई, बल्कि उन्हें कई बार की जुताई पर होने वाले खर्च से भी छुटकारा मिल गया. अरविंद को अब पता चल चुका था कि उन्नत बीज व उन्नत कृषि यंत्रों का इस्तेमाल कर के न केवल लागत में कमी लाई जा सकती है, बल्कि समय के साथसाथ उच्च उत्पादन भी हासिल किया जा सकता है. इस से खेती से होने वाला मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है.
अरविंद सिंह को यह पता चल चुका था कि खेती में कृषि यंत्रों का इस्तेमाल खेती के लिए वरदान साबित हो सकता है. इसलिए उन्होंने खरीफ व रबी की फसलों में लगने वाले मजदूरों में कमी लाने के लिए कृषि यंत्रों के बारे में जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया. उन्हें पता चला कि उन के द्वारा ली जाने वाली आलू की फसल की बोआई व खुदाई पर आने वाले समय व पैसे के खर्च में कमी लाने के लिए पोटैटो प्लांटर व पोटैटो डिगर आसानी से इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं. उन्होंने अपने नजदीकी बैंक से इन कृषि यंत्रों के खरीदारी के लिए कर्ज लिया. उन्होंने इस से पहले ट्रैक्टर के कर्ज को समय से चुकता कर दिया था, जिस की वजह से उन्हें नई मशीनों की खरीदारी के लिए बैंकों द्वारा आसानी से कर्ज दे दिया गया. अरविंद के द्वारा खेती में अपनाई जाने वाली मशीनें इस प्रकार हैं:
ये भी पढ़ें- सहजन पौष्टिक व लाभकारी
धान पैडी प्लांटर?: अरविंद सिंह धान की रोपाई पर होने वाले खर्च व मजदूरी की अधिकता के चलते धान की खेती में कम लागत के उपाय अपनाते रहे हैं. इसी के तहत वे स्वचालित धान रोपाई यंत्र यानी धान पैडी प्लांटर (जिसे उन्होंने केरल से 4 लाख, 10 हजार रुपए में मंगाया) से रोपाई का काम करते हैं. इस स्वचालित धान रोपाई मशीन के इस्तेमाल से बीजों की मात्रा में 30 फीसदी की कमी आई, वहीं लागत व समय में 70 फीसदी की कमी आई. सीड ड्रिल व जीरो सीड ड्रिल : गेहूं की बोआई के लिए अरविंद ने सीड ड्रिल का इस्तेमाल कर के बीज, जुताई, उर्वरक व सिंचाई वगैरह की लागत में कमी लाने में सफलता पाई. जीरो सीड ड्रिल से गेहूं की बोआई में जहां खेत की जुताई नहीं करनी पड़ती, वहीं खाद, उर्वरक व बीज की मात्रा भी कम लगती है. पोटैटो प्लांटर व पोटैटो डिगर : अरविंद ने आलू की बोआई पर आने वाली लागत में कमी लाने के लिए पोटैटो प्लांटर मशीन की खरीदारी कर के उस का इस्तेमाल करना शुरू किया, जिस में मात्र 3 लोगों की जरूरत पड़ती है. वहीं पोटैटो डिगर से आलू की खुदाई के नुकसान में 95 फीसदी तक की कमी आई. दलहन बोआई मशीन : अरविंद ने दलहनी फसलों की लाइन से लाइन की बोआई के लिए स्वयं एक बोआई मशीन का निर्माण किया है, जो ट्रैक्टर के पीछे लगा कर चलाई जाती?है. इस के द्वारा वे अरहर, मटर, चना, मसूर, मूंग वगैरह फसलों की बोआई करते?हैं, जिस से फसल में बीज की मात्रा और जुताई, बोआई, सिंचाई वगैरह की लागत में 50 फीसदी तक की कमी लाने में सफल रहे?हैं.
पावर ट्रिलर व पावर बीडर?: सब्जियों व अन्य फसलों की निराईगुड़ाई के लिए अरविंद पावर ट्रिलर व पावर बीडर का इस्तेमाल करते?हैं. इस से कम समय में अधिक रकबे में खेत की निराई व गुड़ाई हो जाती है.
लेजर लैंड लेवरर : जमीन को समतल बनाने के लिए उन्होंने तकरीबन 4 लाख रुपए की लागत से लेजर लैंड लेवरर की खरीदारी की. इस के द्वारा वे अपने ऊबड़खाबड़ खेतों को समतल बनाने में कामयाब रहे हैं. लेजर लैंड लेवरर के द्वारा वे खेत की सिंचाई में होने वाले पानी के खर्च व लागत में भी बचत करने में कामयाब रहे हैं. मजदूरी में कमी, सिंचाई की लागत में कमी, खादबीज व उर्वरक की मात्रा में कमी लाने वाले यंत्रों के साथसाथ अरविंद तमाम आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल अपनी खेती में करते?हैं, जिस से न केवल उन के उत्पादन में इजाफा हुआ है, बल्कि लागत में 50 फीसदी तक की कमी आई है. इन यंत्रों के अलावा उन के पास जैरोवेटर, पावर स्प्रेयर, ड्रम सीडर, बैट्री चालित स्प्रेयर व सोलर पंप वगैरह तमाम यंत्र?हैं, जिन के द्वारा वे लगातार कृषि लागत में कमी लाने में कामयाबी हासिल करते जा रहे हैं. मशीनरी बैंक से छोटे किसानों को सस्ते में मुहैया कराते हैं कृषि यंत्र : अरविंद सिंह खुद तो खेती में यंत्रीकरण को बढ़ावा दे ही रहे हैं, इस के साथ ही वे छोटे व मझोले किसानों को भी खेती में यंत्रीकरण अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं. इस के लिए उन्होंने कृषि विभाग के सहयोग से मशीनरी बैंक बनाया है, जहां से किसानों को समय से सस्ती दर पर ट्रैक्टर, जुताई यंत्र, स्प्रेयर, ट्रांसप्लांटर, ड्रम सीडर वगैरह मशीनें मिल जाती हैं. ऐसे में किसान समय से फसल की जुताई, बोआई, सिंचाई करने में सफल रहते?हैं. फसल मड़ाई यंत्रों की वजह से दूसरे किसान भी मौसम से होने वाले नुकसान से बच जाते हैं.
ये भी पढ़ें- गन्ने की वैज्ञानिक खेती
व्यावसायिक खेती को बढ़ावा : अरविंद व्यावसायिक व नकदी फसलों की खेती करते हैं. उन का मानना?है कि किसानों को ऐसी फसलों की खेती करनी चाहिए, जिन से लागत के मुकाबले 4 से 5 गुना ज्यादा लाभ हासिल हो. उन के अनुसार नकदी फसलों की मार्केटिंग में किसानों को किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है, वहीं नकदी फसलों को कम समय में उगा कर 1 साल में कई फसलें ली जा सकती हैं. नकदी फसलों की खेती में वे आलू, सुगंधित धान, मसालों व जड़ीबूटियों की खेती पर जोर देते हैं. इस से उन्हें अच्छी आमदनी हासिल होती है. बस्ती जिले में वे अकेले ऐसे किसान हैं, जो सोयाबीन की खेती करते हैं, इसलिए स्थानीय दुकानदारों द्वारा उन्हें अच्छा दाम मिल जाता है.
बागबानी फसलों से ज्यादा मुनाफा : वे नकदी फसलों के साथसाथ बागबानी फसलों की भी खेती करते हैं, जिन में केला व आम खास हैं. वे स्थानीय मंडी में इन फसलों को बेच कर ज्यादा लाभ कमा लेते हैं.
अरविंद ने खेती में तकनीकी व उन्नत जानकारी का इस्तेमाल कर के यह साबित कर दिया है कि खेती में घाटे का रोना रोने वाले किसान अगर वैज्ञानिक तरीके से खेती करें तो न केवल खेती लाभ का सौदा साबित होगी, बल्कि इस से दूसरों को भी रोजगार मिलने में आसानी होगी. जहां एक तरफ किसान दलहनी व तिलहनी फसलों से दूरी बना रहे हैं, वहीं अरविंद ने तिल, अरहर, मटर, चना, मसूर, सोयाबीन, मूंग, उड़द वगैरह फसलों की खेती कर के यह साबित कर दिया?है कि हालात कैसे भी हों, अगर किसान फसलों को उगाने की ठान ले तो किसी तरह की फसल उगाना कठिन नहीं होता. अरविंद सिंह धान की मामूली प्रजातियों से हट कर ऊंचे दामों पर बिकने वाली काला नमक जैसी प्रजातियों की खेती करते हैं. वे सुगंधित फसलों की भी खेती करते हैं. सभी सुगंधित फसलें कम समय व कम लागत में तैयार होती हैं, जिस से वे ज्यादा मुनाफा ले पाते हैं.
खेती में यंत्रीकरण व तकनीकी जानकारी के लिए अरविंद सिंह के मोबाइल व वाट्सअप नंबर 9838669367 पर संपर्क किया जा सकता है.