खिड़की के बाहर नए देवदार… लंबे और पूरी तरह विकसित… बराबर के घर को बाहरी दृष्टि से बचाते हुए… अभी हाल में रोपे गए हैं. अपने किसी पुराने ठांव से निकाल कर उन्हें काफी गहरा गड्ढा खोद कर यहां लगाया गया है. उन की जड़ों में पुरानी मिट्टी चिपकी रहने दी है, जिस का स्पर्श उन्हें सुरक्षा का आभास देता रहे कि वह पूरी तरह से बेघर नहीं हुए हैं.

कहीं बहुत दूर अंधेरी सड़क पर भागती गाड़ियों की बत्तियां, सड़क को रोशनी और अंधेरे के खेल में अपना भागीदार बना रही हैं. खिड़की के बाहर दिखती है एक छोटी झील… सर्दियों में जब पानी जम जाएगा… सफेद बर्फ जैसा तो बच्चे वहां स्केटिंग करने निकलेंगे और यह शांत बैकयार्ड उन के शोर से भर जाएगा.

दोपहर का सूरज बहुत चमकीला है. पेड़ों और पानी पर पड़ती उस की तीखी रोशनी हवा के साथ लगता है नाच रही हो. एक साफ धूप… नीले आसमान पर इक्कादुक्का बादलों के मुलायम रूई जैसे चकत्ते… भ्रम होता है कि मौसम सुहाना होगा… कुनकुनी गरमाहट से भरा. पर यह सब एक मरीचिका जैसा था… जादुई यथार्थ… बाहर मौसम 3-4 डिगरी सैंटीग्रेड होगा. चुभती ठंडी हवा एक मिनट में फेफड़ों को निष्क्रिय करने के लिए काफी थी. दरवाजे और खिड़कियां सभी बंद हैं. घर का तापमान बढ़ाया हुआ है… इस महीने बिजली का बिल जरूर बढ़ा हुआ आएगा.

घर के अंदर तो अकेलापन है ही, बाहर भी निष्क्रियता का सन्नाटा पसरा है. सामने की सड़क एकदम सूनी है. अब तो सड़क भी जान गई है कि कोई नहीं आएगा.

घर में दूध खत्म है. काली कौफी या चाय क्या पाऊं? हिम्मत नहीं थी कि महामारी के इन दिनों में, इस उम्र में गाड़ी निकालूं और एक मील दूर स्टोर से दूध ही ले आऊं. दूध के लिए जाऊंगी तो कुछ और भी याद आ जाएगा. क्याक्या लाना है. मन ही नहीं करता कुछ करने का…

याद आया, 15 दिन हो गए, कोई ग्रोसरी नहीं लाई हूं. बहुत लोग औनलाइन सामान मंगा रहे हैं… अब मुझे भी ऐसा ही करना होगा. ग्रोसरी के बहाने घर से बाहर तो निकलती हूं. अब तो वह सब भी नहीं हो रहा. अनमनी सी उठती हूं… ब्लैक कौफी ही सही. एक सैंडविच बनाऊं… कुछ चीज पड़ा है… एक डब्बे में मैं ने सलामी देखी थी 2 दिन पहले… याद नहीं कि मैं ने खाई हो. थोड़ा टमाटर तो होगा ही…. हेलीपिनो पेपर डाल कर बढ़िया सैंडविच बनेगा.

मैं उत्साहित हो उठी. सारा सामान मिल गया. कौन अवन में रखे, ऐसे ही ठीक रहेगा. किचन काउंटर पर इतना सामान बिखरा है… एक दिन सफाई करनी होगी. अभी तो अपनी प्लेट और कौफी मग के लिए जगह बनाती हूं. कई डब्बे तो खाली हैं फैंके तक नहीं मैं ने. कूड़ेदान भर गया है ऊपर तक… एक हफ्ते से पुराना कूड़ा… मैं बाहर निकलती तो फेंकती. बुधवार को कूड़े का ट्रक आ कर चला गया. सुबह मैं सोती रही और मंगलवार को गारबेज बाहर निकालना भूल गई… अब एक हफ्ते की छुट्टी. बाहर का बड़ा ड्रम भरा नहीं होगा. किचन का कूड़ा तो बाहर फेंक ही सकती हूं. कैसे आलस्य ने मेरे मनमस्तिष्क, शरीर सब को जकड़ लिया हो जैसे. खुद को धक्का दे कर उठाती हूं. कौफी के बड़ेबड़े घूंट और सैंडविच के छोटेछोटे बाइट के बीच मैं ने निर्णय लिया कि विंड चीटर पहनूं और रसोई का कूड़ा तो बाहर फेंक ही आऊं.

हैरी को गए हुए 6 महीने हो चले. जाना तो मुझे था. कैंसरमुक्त हूं तो क्या… पर इम्यूनिटी तो मेरी लो होनी चाहिए. नकारात्मकता और डर तो मेरे दिमाग में है. हैरी तो कितने खुशमिजाज जिंदगी से भरपूर थे… मौत के खयाल से कोसों दूर और मै तो हमेशा डरी रहती कि कहीं कैंसर दोबारा न आ जाए.

हैरी की यह फोटो मैं ने एक पुराने एलबम से निकाली है. मैरून टाई, सफेद शर्ट और तिरछी पहनी गई हलकी नीली कैप. घनी मूंछों के बीच एक नटखट मुसकान. कैसे आराम से चला गया हैरी. 5 दिन का बुखार और कोविड का हमला सीधे दिल पर. 20 साल पहले हार्ट अटैक के बाद बाईपास हुआ था… अब तक सबकुछ आराम से चल रहा था.

कहते हैं, मौत कोई न कोई वजह ढूंढ़ लेती है… यह नई बीमारी हैरी की मौत का कारण बनी. मौत ने हैरी को चुना. मेरी बारी जब तक नहीं आती तब तक तो मुझे जीना ही है.

मैं ने जैकेट पहनी. किचन सिंक के नीचे सड़ांध मारते गारबेज बैग को निकाला और बड़े ड्रम में उछाल कर फेंक दिया. अच्छा हुआ कि ड्रम का ढक्कन मैं बंद करना भूल गई थी… मुझे ज्यादा दूर नहीं जाना पड़ा.
अंदर आ कर फिर एक ब्लैक कौफी बनाई. फोन पर रिमाइंडर सैट किया. कूड़ा मंगलवार को बाहर रखने के लिए… मन में खत्म हुई चीजों की लिस्ट बनाने से अच्छा है फोन पर लिख लूं. फोन खोला तो व्हाट्सएप पर नजर गई… अरे, विली का मैसेज है. कुछ दिन पहले ही फेसबुक पर मिला था. भला आदमी लगता है. काइंड और सैंसेटिव. हम दोनों की संगीत और किताबों की पसंद बहुत मिलती है. उसे पहाड़ पसंद हैं… मुझे भी… कितनी छोटीछोटी बातें हैं… जैसे बसंत में खिलते रंगबिरंगे डैफोडिल या पतझड़ के तांबई या गहरे पीले पत्ते… मीलों गाड़ी चला कर वह मिनेसोटा के फाल कलर्स देखने जाता. उसी ने बताया कि वह आजकल सिंगल है. तलाकशुदा या विधुर मैं ने जानने की कोशिश नहीं की. अपने रखरखाव को ले कर वह काफी सतर्क है. मुझे ढीलेढाले लोग कभी पसंद नहीं आए. हैरी की तरह विली भी अच्छी चीजों का शौकीन है. जीवन के हर पल को पूरी तरह जीने की चाहत से भरा. उस का उत्साह मुझे भी छूने लगा था और मैं कोशिश करती कि मैं भी जीवन को एक उत्सव समझूं और अपने अवसाद से बाहर निकलूं.

फिलहाल, विली की बातों में कितनी सचाई है, इन सब पचड़ों में मैं नहीं पड़ना चाहती, भले ही इस आभासी दुनिया का एक पात्र हो वह, पर अभी तो उस से बात करना मुझे अच्छा लगता है… उस की आवाज मेरे अकेलेपन में गूंजती मुझे एक नासमझ सी खुशी देती. चलो पहले उस के मैसेज का जवाब दूं. औनलाइन हुआ तो बातों का अंत नहीं.

मेरे पास भी तो पूरी दोपहर है… मेरा लंच हो ही गया है. कैथी का फोन शाम को आएगा… औफिस से लौटते समय, “कैसी हो मौम? ज्यादा बाहर तो नहीं निकलतीं?”

हर रोज फोन करती है कैथी. अब तो आरन भी हफ्ते में एक बार फोन करने लगा है. पर अभी तो विली का मैसेज देखती हूं. और यकायक मैं एक छोटी लड़की की तरह हंस रही थी विली के फौरवर्ड पर.

बाहर एक गाड़ी तेजी से सन्नाटे को चीरती निकल गई. मैं ने विली के लिए मैसेज टाइप कर दिया था और उस के उत्तर की प्रतीक्षा में थी.

लेखिका-शोभा नारायण

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