‘कहते हैं, उम्र ही वो तजुर्बा होती है जो जीने का सही मकसद सिखा देती है. सही और गलत के बीच का फर्क बता देती है. गर एक बार सहीगलत का फर्क समझ आ जाए तो रास्ता चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, खतरनाक ही क्यों न हो, मौत की आगोश में लेटते समय चेहरे पर शर्मिंदगी की जगह फक्र का तेज बह रहा होता है और सीने में बोझ की जगह जीवन के सही निर्णय लिए जाने की संतुष्टि प्राप्त हो रही होती है.’

ठीक ऐसी ही चमक महावीर सिंह के चेहरे पर देखने को मिली. दिल्ली के नीलवाल गांव में रहने वाले 70 वर्षीय बुजुर्ग महावीर सिंह पेशे से किसान हैं. वे हर रोज टिकरी बोर्डर पर अपना किसानी फर्ज निभाते हुए आन्दोलनकारी किसानों की ‘साइड’ खड़े मिल जाते हैं. ‘साइड’ कहने का आशय यह कि एक तरफ मौजूदा सरकार है जिस ने भयंकर आर्थिक मंदी के दौर में भी हजारों करोड़ की नई संसद की दीवारों को पहले से मोटा और ऊंचा करवाने की ठान ली है ताकि गरीबों की चीखतीबिलखती आवाज संसद के भीतर बैठे नेताओं के कान तक ना पहुंच पाए. वहीँ दूसरी तरफ वे किसान हैं जो देश का पेट भरतेभरते, आज इन 3 कृषि कानूनों से खुद की रोटी छिनने के डर से सहमे हुए हैं.

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3 कृषि कानूनों के विरोध में शामिल हुए महावीर, सिर पर विवेकानंद अंदाज में लपेटी पगड़ी, कांधे पर झोला और हाथ में कुछ पर्चे बांटते नजर आए. ‘मैं ने आरएसएस क्यों छोड़ा’ शीर्षक वाले पर्चे से वे अपने व्यक्तिगत अनुभव वहां दूरदराज से आए आन्दोलनकारियों के बीच साझा कर रहे थे. मेरे लिए दिलचस्प बात यह थी कि एक बुजुर्ग जिन के कमजोर पैर अब जवाब देने लगे हैं, किसी जमाने में मजबूत रहा शरीर अब झुकने लगा है, वह चाहे तो घर में रह कर बाकी बचे जीवन को आराम से जी सकते हैं, फिर क्यों इस ठिठुरती ठंड में नैतिक जिम्मेदारी का बौझा लिए हर रोज घर से बाहर निकल पड़ते हैं.

उन से जब इस की वजह पूछी तो वे बताते हैं, कि “आरएसएस एक सोफ्ट पोइजन की तरह देश में काम कर रही है. वह कॉर्पोरेट के फंड से उन के हितों के साथसाथ अपने हित साधने में लगी है. मौजूदा पारित कृषि कानून उन्ही हितों का रूप है. आरएसएस सामाजिक संस्था नहीं, वह पूरी तरह से राजनीतिक संस्था है, जिस का मकसद लोगों को जाति, धर्म और वर्ग के नाम पर आपस में बांटे रखना है. मैं अपने स्तर पर इस संस्था की सच्चाई लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं.”

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बकौल महावीर, आपातकाल के दौरान वे दिल्ली विश्वविद्यालय के वेंकटेश्वर कालेज में पढ़ रहे थे. उस दौरान उन की रूचि आरएसएस संगठन में जगनी शुरू हुई थी. वे युवा थे तो आपातकाल के खिलाफ आन्दोलन में शामिल होना चाहते थे. उस समय जय प्रकाश नारायण के भाषण सुनते थे. किन्तु, इस के साथ वे संघ की किताबें पढ़ने लगे थे. उन्हें दिलचस्पी हुई कि संघ के बारे में भीतर से जाना जाए.

वे कहते हैं, “1977 में मैं अपने मामा के यहां शाहपुरा जट में रहने लगा. वे जनता पार्टी में मेंबर थे. साथ ही वे हौज खास में आरएसएस की शाखा चलाया करते थे, उन के कहने पर मैं शाखा जाने लगा. वहां हमें हर रोज वंदना करना, व्यायाम करना, श्री राम के उद्घोष और लाठियां भांजना सिखाया जाता था. वहां कहा जाता था की आरएसएस समाज के लिए काम करता है हमारा राजनीतिक पार्टियों से कोई लेनादेना नहीं. इसलिए समाजसेवा के लोभ में मेरी तरह बाकि युवा भी उन से आकर्षित होते रहे.

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“कुछ महीने बाद कुरुक्षेत्र में आरएसएस का ओटीसी (ऑफिसियल ट्रेनिंग कोर्स) केम्प लगा, तो मेरा भी वहां जाना हुआ. मैं उस दौरान आरएसएस का एक्टिव सदस्य बन चुका था, छोटेबड़े नेता से जानपहचान होने लगी थी. हमें वहां बताया गया कि गांधी वध जरुरी था, सभी वामपंथी शत्रु हैं, संघ का शासन चलेगा तो हिन्दू राष्ट्र आएगा, हिन्दू धर्म के आधार पर ही देश इकठ्ठा रह सकता है, यह देश हिंदुओं का है और हिन्दुओ को ही रहने का अधिकार होना चाहिए. मजदूरों-किसानों को आन्दोलन नहीं करना चाहिए. वहां हमें समझाया जाता था कि आप को संघ के बारे में क्या कहना है, क्या प्रचार करना है.

“लेकिन उस दौरान मेरे मन में तमाम सवाल तैर रहे थे. धर्म की किताबों में कहीं भी हिन्दू शब्द नहीं है तो हिन्दू राष्ट्र कैसा? धर्म के आधार पर कोई देश इकठ्ठा रहता तो नेपाल हम से अलग क्यों है? इस्लामिक देश पाकिस्तान के टुकड़े क्यों हुए? मध्य पूर्वी देश अलगअलग क्यों बंटे हैं? यूरोप और अमेरिका के इसाई देशों में सीमाएं क्यों हैं?

“अगर हमारा राजनीति से मतलब नहीं तो जनसंघ क्यों बनाया गया है? आज तो जनसंघ की जगह भाजपा ने ले ली है. वे (आरएसएस) उन्हें खुला समर्थन देती है, बल्कि कानून तो संघ कार्यालय से ही बन कर चलते हैं. उन के हर फैसलें के पीछे आरएसएस खड़ी दिखती है. अगर राजनीति से दूरी की बात सही होती तो आज भाजपा और देश की सत्ता में सभी बड़े पदों पर आरएसएस के नेता क्यों बैठे हैं? क्या उन्हें गद्दी का लोभ है? क्या वे पद के नशे में मदमस्त को चुके हैं? यह दिखाता है कि इस का मकसद समाजसेवा नहीं बल्कि उस की आड़ में देश पर शासन करना है. यह अपनी काली टोपी के पीछे काली करतूतें छिपाते हैं.

“अगर मजदूर-किसान को कोई समस्या है तो वे अपने आन्दोलन क्यों नहीं कर सकते, क्या उन्हें हक़ नहीं? अगर अपने हक़ की आवाज नहीं उठाएंगे फिर तो वे दबे के दबे रह जाएंगे. वे कहते थे कि सरसंघ चालक पूजनीय होते हैं उन के आदेश का हर हाल में पालन करना चाहिए, लेकिन क्यों? वे गलत भी तो हो सकते हैं. अगर वे सही हैं तो गुप्त दान क्यों लेते हैं. ये धन्ना सेठों के हक़ में कानून क्यों बनाना चाहते हैं? आज उन का एक किसान संगठन (भारतीय किसान संघ) भी है, फिर किसानों के पक्ष में बयान देने के बावजूद वह हमारे आन्दोलन के साथ मुखर क्यों नहीं हो पा रहा? क्योंकि पीछे से मना किया गया है.

“शाखा में हमें व्यायाम के दौरान ट्रेनिंग दी जाती थी. वे लेफ्ट, राईट, सावधान, विश्राम, उठाना बैठना करवाती थी. मार्च करवाती थी. लेकिन ऐसा क्यों? ताकि हम बस आदेश फोलो करने वाले बनें, वे बाएं मुड़ने को कहें तो बाएं मुड़ जाएं, दाएं कहें तो दाएं. हमारा खुद का दिमाग बस उन के आदेशों के नियंत्रण में रहता था.”

महावीर सिंह आगे कहते हैं, “उस दौरान कई ऐसे सवाल मेरे दिमाग में चल रहे थे, जिस का जवाब वे गोलमोल घुमा कर देते थे. मैं ने कुछ दिन जाना छोड़ा तो वे घर में मुझे बुलाने आया करते थे. वे हमेशा स्वदेशीस्वदेशी कहते रहते थे लेकिन आज इन की पार्टी खुद बाहर जा जा कर कम्पनियां के आगे हाथ जोड़ रही है.”

महावीर सिंह का मानना था कि भारत में अधिकतर मुस्लिम हिन्दूओं में दलित व पिछड़े समुदाय से कन्वर्ट हुए हैं. देश में धर्म के चुनाव की आजादी कानूनन है. अब वे (मुस्लिम) चाहे तो हिन्दू बनना चाहे इस पर कोई रोक नहीं, और गर हिन्दू नहीं भी बनना चाहे तो उस पर भी कोई जबरन नहीं. अब इस कारण उन्हें यह नहीं कहा जा सकता है कि वे बाहरी हैं और उन्हें देश से निकल जाना चाहिए. जितना यह देश हिंदुओं का है उतना ही मुस्लिमों का. नफरत से कुछ नहीं होने वाला.

वे कहते हैं, “मुझे इन से सब से ज्यादा दिक्कत तब हुई, जब पता चला कि जनसंघ इन्ही की पार्टी है. जिस कारण मैं ने संघ छोड़ दिया. पहले तो ये खुद को राजनीति से दूर बताते हैं, किन्तु पीछे से सारा काम राजनीति का करते हैं. यहां तक कि ये शाखा के माध्यम से हर बात पर जीहुजूरी वाली फौज खड़ा कर रहे हैं. जो इन के लिए फ्री में प्रचारप्रसार और मेहनत करे. ये सिर्फ झूठ का प्रचार कर रहे हैं. जो विनाश की तरफ ले कर जाएगा.”

नए कानूनों को ले कर महावीर का साफ़ मानना है कि यह सिर्फ कंपनियों के लिए बनाया गया कानून है. कुछ बाहरी पूंजीपति और कुछ यहीं के पूंजीपति को इन कानूनों फायदा पहुंचेगा. ये जिस नीति पर चल रहे हैं, ऐसी नीतियों से देश गढ्ढे में जा रहा है.

वे कहते हैं, “मोदीजी ने कहा यह तीनों कानून गंगाजल की तरह पवित्र हैं, जबकि यह सफेद झूठ है. लेकिन आज कह रहे हैं संशोधन के लिए तैयार हैं, अरे जब गंगाजल की तरह पवित्र थे तो संशोधन की जरुरत क्यों पड़ी, यानी उन के मन में कुछ तो खोट था.”

अपनी बात बताते हुए महावीर वहीँ मंच के सामने बिछी दरी पर जा बैठे और मंच से वक्ताओं को ध्यान से सुनने लगे, वे एकएक बात पर गौर कर रहे थे. मंच से किसान एकता जिंदाबाद का नारा लगा, जिस के जवाब में महावीर ने भी जोर से ‘जिंदाबाद’ लगा दिया.

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