जी,हाँ बड़े अपराधियों को तो छोड़िये, छोटा से छोटा अपराधी भी आराम से पुलिस को अपने फिंगरप्रिंट नहीं लेने देता. जबकि पुलिस हमेशा अपराधियों के फिंगरप्रिंट पाने के फिराक में रहती है. यही वजह है कि जब भी पुलिस किसी अपराध के मौका-ए-वारदात में पहुंचती है, तो सबसे पहले फोरेंसिक एक्सपर्ट वहां अपराधियों के फिंगरप्रिंट तलाशते हैं. यह कवायद इसलिए होती है; क्योंकि अगर अपराधी के फिंगरप्रिंट मिल गये तो उसकी पहचान अकाट्य रूपसे आसान हो जाती है. फिंगरप्रिंट का मिलान हो जाने पर कोई अपराधी पुलिस को चकमा नहीं दे सकता.

सवाल है,ऐसा इसलिए होता है ? ऐसा इसलिए होता है,क्योंकि धरती का हर इंसान अपनी ही तरह के एक खास फिंगरप्रिंट के साथ पैदा होता है और दुनिया के किन्हीं भी दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते. यहां तक कि साथ साथ पैदा हुए दो जुड़वां बच्चों के भी फिंगरप्रिंट एक दूसरे से भिन्न होते हैं. कोई अपराधी कितनी भी चालाकी कर ले, लेकिन वह अपने फिंगरप्रिंट नहीं बदल सकता. हद तो यह है कि फिंगरप्रिंट इंसान के मरने के बाद भी तब तक ज्यों के त्यों रहते हैं, जब तक अंगुलियों में त्वचा बरकरार रहती है.

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फिंगरप्रिंट के संबंध में एक अद्भुत किस्सा सुनिये . अमरीका के हेंस गलासी ने वेक बोर्डिग के दौरान हुई एक दुर्घटना में अपनी कई अंगुलियां गंवा दी थीं . इनमें से एक उंगली एक मछली के पेट में मिली. अब आप कह सकते हैं, ये कैसे पता कि वह अंगुली हेंस गलासी की ही थी, तो जनाब इसका पता यूं चला कि मछली के पेट में मिली उंगली के फिंगरप्रिंट हेंस के फिंगरप्रिंट से हूबहू मिल गये. चूंकि दुनिया में किन्हीं भी दो इंसानों के फिंगरप्रिंट एक से नहीं होते,इसलिए वह उंगली हेंस गलासी की हुई. फिंगरप्रिंट को लेकर यह सवाल भी उठता है कि आखिर उंगली में निशान कब तक रहते हैं? वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसान के मरने के बाद भी जब तक फिंगर बची रहती है, यानी उँगलियों में त्वचा बनी रहती है तब तक फिंगरप्रिंट ज्यों का त्यों रहते हैं.

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