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मुझे उस पर गुस्सा आ गया, क्योंकि वह घुमाफिरा कर बात कर रहा था. वह मुझे चक्कर देने की कोशिश कर रहा था.  मैं ने डांट कर पूछा, ‘‘तुम्हारी उस के साथ दुश्मनी थी या नहीं?’’

‘‘नहीं सरकार, मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी.’’ रंगू ने हकला कर कहा.

मैं ने मेज पर पड़ा डंडा उठा कर जोर से मेज पर पटक कर कहा, ‘‘खड़ा हो जा.’’

रंगू उछल कर एकदम से खड़ा हो गया.

‘‘दीवार से लग कर खडे़े हो जाओ. मैं ने तुम्हारी इज्जत की थी, कुरसी पर बिठाया था.’’ मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि झूठ मत बोलना, लेकिन तुम बराबर झूठ बोल रहे हो. अब देखता हूं कैसे झूठ बोलते हो.’’

पीछे हटतेहटते वह दीवार से जा लगा. वह पक्का बदमाश था, फिर भी वह घबरा रहा था.

मैं ने डंडा उस की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘दिलरुबा के कोठे पर क्या हुआ था?’’

रंगू का रंग पीला पड़ गया था, वह मुझे ऐसे देख रहा था, जैसे मैं कोई जादूगर हूं और अंदर की बात जानता हूं. मैं ने कहा, ‘‘वैसे तुम जबान के बहुत पक्के हो. तुम ने धुर्रे शाह से बदला लेने की कसम खाई थी. तुम ने उस की हत्या कर के अपनी कसम पूरी कर ली.’’

‘‘यह गलत है… बिलकुल गलत… मैं ने उस की हत्या नहीं की. आप को किसी ने गलत खबर दी है.’’ रंगू चीखचीख कर अपने बेकसूर होने की कसमें खाने लगा. मौत सामने हो तो बड़ेबड़े अपराधी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.

‘‘सचसच बता दोगे तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’ मैं ने उसे फुसलाने की कोशिश की, ‘‘वैसे उस से सभी परेशान थे. तुम ने उस की हत्या कर के अच्छा काम किया है. मैं केस इतना ढीला कर दूंगा कि जज तुम्हें शक का फायदा दे कर बरी कर देगा.’’

रंगू ने रोते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बेशक मेरी दिलरुबा के कोठे पर धुर्रे से कहासुनी हुई थी, पर उस की हत्या मैं ने नहीं की है.’’

मैं ने उसे बहुत डराया, घुमाफिरा कर पूछा, लेकिन वह कच्चा खिलाड़ी नहीं था. वह आसानी से बकने वाला नहीं था. मैं ने एएसआई से उसे ले जा कर सच उगलवाने को कहा. अगले दिन मैं ने एएसआई से पूछा कि रंगू ने सच्चाई उगली तो उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो पत्थर बन गया है. इतनी पिटाई पर भी कुछ नहीं बोल रहा है.’’

मैं ने उसे अपने पास लाने को कहा, वह आया तो मैं ने कहा, ‘‘रंगू, तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो, नहीं तो खाल उधेड़ दूंगा.’’

‘‘आप मालिक हैं सरकार, कुछ भी करें. किसी और का अपराध मैं अपने गले क्यों डाल लूं?’’ उस की आवाज बहुत कमजोर थी. मुझे लगा कि वह सच बोल रहा है. लेकिन मैं उसे इसलिए नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि जितनी भी बातें सामने आई थीं, उन में रंगू ही संदिग्ध लग रहा था. मैं ने उसे हवालात में भेज दिया और केस के बारे में सोचने लगा.

कुछ देर बाद मुझे ध्यान आया कि मैं ने दिलरुबा को तो छोड़ ही रखा है, मुझे उस से भी पूछताछ करनी चाहिए. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर उस के कोठे पर पहुंच गया. उस समय दिन के 12 बजे थे. ये लोग रात को जागती हैं और दिन में सोती हैं. जब मैं वहां पहुंचा तो वह नाश्ता कर रही थी.

मेरे पहुंचते ही कोठे वालों के हाथपैर फूल गए. उन्होंने मुझे ड्राइंगरूम में बिठाया. दिलरुबा की मां ने आ कर मुझे नमस्ते कर के कहा, ‘‘मेरे भाग जाग गए सरकार, कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. हुक्म करें सरकार, क्या सेवा है?’’

उस से दिलरुबा को बुलाने को कहा तो वह बोली, ‘‘बेबी अभी सो कर उठी है. वह तैयार हो जाएगी तो आ जाएगी. वैसे हुजूर हम से क्या गुस्ताखी हो गई है, जो आप यहां पधारे हैं.’’

मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बात कान खोल कर सुन लो बाईजी, मैं यहां मुजरा सुनने नहीं आया हूं. मैं यहां सरकारी ड्यूटी पर आया हूं. मेरे पास समय नहीं है. तुम्हारी बेटी जैसी भी है, उसे यहां ले आओ नहीं तो मैं थाने बुलवा कर तफ्तीश करूंगा.’’

वह मेरा चेहरा देख कर डर गई और अंदर जा कर दिलरुबा को बुला लाई. उस की आंखों में अभी भी नींद दिखाई दे रही थी. वह बहुत ही सुंदर थी, उस के चेहरे पर भोलापन साफ दिखाई दे रहा था, जोकि इस तरह की औरतों में नहीं दिखाई देता. वह देहव्यापार में लिप्त नहीं थी, वह केवल नाचती और गाना गाती थी. इसीलिए उस के चेहरे पर भोलापन था और धुर्रे बदमाश उस पर आशिक हो गया था.

दिलरुबा ने खास लखनवी अंदाज में आदाब किया. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तुम सब दूसरे कमरे में जाओ.’’

सभी चले गए तो मैं ने उस से पूछना शुरू किया. पहले मैं ने इधरउधर की बातें कीं तो उस ने कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप क्यों आए हैं.’’

‘‘क्या जानती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आप शाहजी के बारे में पूछने आए हैं. आप उन की हत्या की तफ्तीश कर रहे हैं.’’ उस ने कहा.

धुर्रे शाह ऐसा नामी बदमाश था कि उस की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. दिलरुबा के चेहरे की उदासी बता रही थी कि उसे उस से प्रेम था. मैं ने उस की इसी कमजोरी का फायदा उठाने का फैसला किया. मैं ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि वह यहां रोज आता था.’’

‘‘हां, वह बहुत अच्छा आदमी था,’’ उस ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरे कहने से उस ने बदमाशी छोड़ ने का फैसला कर लिया था. अगर उस की हत्या नहीं हुई होती तो मैं ने उस से शादी करने की ठान ली थी.’’

इतना कहतेकहते उसे हिचकी सी आई और वह अपना दुपट्टा मुंह पर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तुम्हारे शाहजी के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं, जिस के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. वह तुम से अपने दिल की हर बात कहता रहा होगा. जरा सोच कर बताओ कि क्या कभी उस ने कहा था कि उस की किसी से दुश्मनी थी या झगड़ा हुआ था?’’

‘‘रंगू के साथ यहीं झगड़ा हुआ था.’’ उस ने कहा. उस के बाद उस ने मुझे वह पूरी बात बताई, जो मुझे मुखबिर ने बताई थी.

मैं ने कहा, ‘‘और सोचो, शायद कोई बात मेरे मतलब की निकल ही आए.’’

‘‘वह मुझ से सारी बातें शेयर करता था. एक दिन उस ने बातोंबातों में कहा था कि एक बारात जा रही थी तो उस ने दुलहन को रोक लिया था. वह उसे ले जाने लगा था. उस के रोनेपीटने से उस ने उसे छोड़ दिया था.’’

यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह ऐसा मामला था, जिसे कोई भी इज्जतदार आदमी सहन नहीं कर सकता था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह कितने दिनों पुरानी बात है?’’

मुझे उस पर गुस्सा आ गया, क्योंकि वह घुमाफिरा कर बात कर रहा था. वह मुझे चक्कर देने की कोशिश कर रहा था.  मैं ने डांट कर पूछा, ‘‘तुम्हारी उस के साथ दुश्मनी थी या नहीं?’’

‘‘नहीं सरकार, मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी.’’ रंगू ने हकला कर कहा.

मैं ने मेज पर पड़ा डंडा उठा कर जोर से मेज पर पटक कर कहा, ‘‘खड़ा हो जा.’’

रंगू उछल कर एकदम से खड़ा हो गया.

‘‘दीवार से लग कर खडे़े हो जाओ. मैं ने तुम्हारी इज्जत की थी, कुरसी पर बिठाया था.’’ मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि झूठ मत बोलना, लेकिन तुम बराबर झूठ बोल रहे हो. अब देखता हूं कैसे झूठ बोलते हो.’’

पीछे हटतेहटते वह दीवार से जा लगा. वह पक्का बदमाश था, फिर भी वह घबरा रहा था.

मैं ने डंडा उस की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘दिलरुबा के कोठे पर क्या हुआ था?’’

रंगू का रंग पीला पड़ गया था, वह मुझे ऐसे देख रहा था, जैसे मैं कोई जादूगर हूं और अंदर की बात जानता हूं. मैं ने कहा, ‘‘वैसे तुम जबान के बहुत पक्के हो. तुम ने धुर्रे शाह से बदला लेने की कसम खाई थी. तुम ने उस की हत्या कर के अपनी कसम पूरी कर ली.’’

‘‘यह गलत है… बिलकुल गलत… मैं ने उस की हत्या नहीं की. आप को किसी ने गलत खबर दी है.’’ रंगू चीखचीख कर अपने बेकसूर होने की कसमें खाने लगा. मौत सामने हो तो बड़ेबड़े अपराधी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.

‘‘सचसच बता दोगे तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’ मैं ने उसे फुसलाने की कोशिश की, ‘‘वैसे उस से सभी परेशान थे. तुम ने उस की हत्या कर के अच्छा काम किया है. मैं केस इतना ढीला कर दूंगा कि जज तुम्हें शक का फायदा दे कर बरी कर देगा.’’

रंगू ने रोते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बेशक मेरी दिलरुबा के कोठे पर धुर्रे से कहासुनी हुई थी, पर उस की हत्या मैं ने नहीं की है.’’

मैं ने उसे बहुत डराया, घुमाफिरा कर पूछा, लेकिन वह कच्चा खिलाड़ी नहीं था. वह आसानी से बकने वाला नहीं था. मैं ने एएसआई से उसे ले जा कर सच उगलवाने को कहा. अगले दिन मैं ने एएसआई से पूछा कि रंगू ने सच्चाई उगली तो उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो पत्थर बन गया है. इतनी पिटाई पर भी कुछ नहीं बोल रहा है.’’

मैं ने उसे अपने पास लाने को कहा, वह आया तो मैं ने कहा, ‘‘रंगू, तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो, नहीं तो खाल उधेड़ दूंगा.’’

‘‘आप मालिक हैं सरकार, कुछ भी करें. किसी और का अपराध मैं अपने गले क्यों डाल लूं?’’ उस की आवाज बहुत कमजोर थी. मुझे लगा कि वह सच बोल रहा है. लेकिन मैं उसे इसलिए नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि जितनी भी बातें सामने आई थीं, उन में रंगू ही संदिग्ध लग रहा था. मैं ने उसे हवालात में भेज दिया और केस के बारे में सोचने लगा.

कुछ देर बाद मुझे ध्यान आया कि मैं ने दिलरुबा को तो छोड़ ही रखा है, मुझे उस से भी पूछताछ करनी चाहिए. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर उस के कोठे पर पहुंच गया. उस समय दिन के 12 बजे थे. ये लोग रात को जागती हैं और दिन में सोती हैं. जब मैं वहां पहुंचा तो वह नाश्ता कर रही थी.

मेरे पहुंचते ही कोठे वालों के हाथपैर फूल गए. उन्होंने मुझे ड्राइंगरूम में बिठाया. दिलरुबा की मां ने आ कर मुझे नमस्ते कर के कहा, ‘‘मेरे भाग जाग गए सरकार, कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. हुक्म करें सरकार, क्या सेवा है?’’

उस से दिलरुबा को बुलाने को कहा तो वह बोली, ‘‘बेबी अभी सो कर उठी है. वह तैयार हो जाएगी तो आ जाएगी. वैसे हुजूर हम से क्या गुस्ताखी हो गई है, जो आप यहां पधारे हैं.’’

मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बात कान खोल कर सुन लो बाईजी, मैं यहां मुजरा सुनने नहीं आया हूं. मैं यहां सरकारी ड्यूटी पर आया हूं. मेरे पास समय नहीं है. तुम्हारी बेटी जैसी भी है, उसे यहां ले आओ नहीं तो मैं थाने बुलवा कर तफ्तीश करूंगा.’’

वह मेरा चेहरा देख कर डर गई और अंदर जा कर दिलरुबा को बुला लाई. उस की आंखों में अभी भी नींद दिखाई दे रही थी. वह बहुत ही सुंदर थी, उस के चेहरे पर भोलापन साफ दिखाई दे रहा था, जोकि इस तरह की औरतों में नहीं दिखाई देता. वह देहव्यापार में लिप्त नहीं थी, वह केवल नाचती और गाना गाती थी. इसीलिए उस के चेहरे पर भोलापन था और धुर्रे बदमाश उस पर आशिक हो गया था.

दिलरुबा ने खास लखनवी अंदाज में आदाब किया. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तुम सब दूसरे कमरे में जाओ.’’

सभी चले गए तो मैं ने उस से पूछना शुरू किया. पहले मैं ने इधरउधर की बातें कीं तो उस ने कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप क्यों आए हैं.’’

‘‘क्या जानती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आप शाहजी के बारे में पूछने आए हैं. आप उन की हत्या की तफ्तीश कर रहे हैं.’’ उस ने कहा.

धुर्रे शाह ऐसा नामी बदमाश था कि उस की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. दिलरुबा के चेहरे की उदासी बता रही थी कि उसे उस से प्रेम था. मैं ने उस की इसी कमजोरी का फायदा उठाने का फैसला किया. मैं ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि वह यहां रोज आता था.’’

‘‘हां, वह बहुत अच्छा आदमी था,’’ उस ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरे कहने से उस ने बदमाशी छोड़ ने का फैसला कर लिया था. अगर उस की हत्या नहीं हुई होती तो मैं ने उस से शादी करने की ठान ली थी.’’

इतना कहतेकहते उसे हिचकी सी आई और वह अपना दुपट्टा मुंह पर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तुम्हारे शाहजी के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं, जिस के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. वह तुम से अपने दिल की हर बात कहता रहा होगा. जरा सोच कर बताओ कि क्या कभी उस ने कहा था कि उस की किसी से दुश्मनी थी या झगड़ा हुआ था?’’

‘‘रंगू के साथ यहीं झगड़ा हुआ था.’’ उस ने कहा. उस के बाद उस ने मुझे वह पूरी बात बताई, जो मुझे मुखबिर ने बताई थी.

मैं ने कहा, ‘‘और सोचो, शायद कोई बात मेरे मतलब की निकल ही आए.’’

‘‘वह मुझ से सारी बातें शेयर करता था. एक दिन उस ने बातोंबातों में कहा था कि एक बारात जा रही थी तो उस ने दुलहन को रोक लिया था. वह उसे ले जाने लगा था. उस के रोनेपीटने से उस ने उसे छोड़ दिया था.’’

यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह ऐसा मामला था, जिसे कोई भी इज्जतदार आदमी सहन नहीं कर सकता था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह कितने दिनों पुरानी बात है?’’

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