‘‘लगभग एक हफ्ता पहले की बात है.’’
‘‘उस ने यह तो बताया होगा कि दूल्हा कौन था, बारात कहां से आई थी, दुलहन कौन थी?’’ मैं ने पूछा.
‘‘बारात रहीमपुर वापस जा रही थी.’’
बाकी दुलहन वगैरह के बारे में उस ने मुझे कुछ नहीं बताया. मेरे लिए इतना ही काफी था. मुझे दूल्हे के गांव का पता चल गया था. मैं ने दिलरुबा से कुरेदकुरेद कर बहुत सारी बातें पूछीं, लेकिन और कोई काम की बात पता नहीं लग सकी. मैं ने कहा कि उस के शाहजी के हत्यारे बहुत जल्द पकड़े जाएंगे.
मैं ने एक महिला मुखबिर को बुलाया, जिस का नाम जकिया था. वह बहुत चालाक औरत थी. घर के पूरे भेद निकाल लाती थी. मैं ने उसे पूरी बात समझा कर रहीमपुर गांव भेज दिया. उस ने मुझे जो नई बात बताई, उस में मुझे दम नजर आया.
उस ने बताया था कि रहीमपुर गांव के खिजर की शादी भलवाल गांव की सलमा से हुई थी. रहीमपुर से गांव भलवाल अधिक दूर नहीं था, गरमियों के दिन थे, इसलिए लड़की वालों ने लड़की को शाम को विदा किया था. दुलहन के साथ लगभग 15-16 आदमी थे. उन दिनों दुलहनें डोली में जाया करती थीं.
4 कहार उस डोली को उठाते थे. सलमा भी डोली में विदा हुई थी. डोली के आगे खिजर घोड़ी पर सवार हो कर चल रहा था. जब सभी रहीमपुर के निकट पहुंचे तो दूल्हा यह कह कर घोड़ी दौड़ा कर रहीमपुर चला गया कि वह दुलहन के स्वागत के लिए सब को इकट्ठा करने जा रहा है.
दुलहन की डोली जब धुर्रे शाह के इलाके में पहुंची तो उस ने डोली रोक ली. उस समय उस के हाथ में लाठी थी. बारात के लोग उसे देख कर डर गए. बाराती यह सोच रहे थे कि यह सब की जेबें खाली करा लेगा, लेकिन उस ने दुलहन को ले जाने का इरादा किया. उन्होंने धुर्रे शाह को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना. उस ने दुलहन को डोली से बाहर निकाल लिया.
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