जब समान रुचि के 2 लोग मिलते हैं तो दोस्ती के रंग भी धीरेधीरे गहरे हो जाते हैं. संगीतकार जोड़ी विशाल डडलानी और शेखर रावजियानी की संगीतकार जोड़ी भी इसी तरह बनी. संगीतकार की इस जोड़ी को लोग विशाल शेखर के नाम से जानते और पहचानते हैं. विशाल शेखर ने 17 वर्ष के दौरान 50 से अधिक फिल्मों को संगीत से संवारते हुए ‘झंकार बीट्स’, ‘कमीने’, ‘वेकअप सिड’, ‘चेन्नई ऐक्सप्रैस’, ‘स्टूडैंट औफ द इयर’, ‘नमस्ते लंदन’, ‘बचना ऐ हसीनो’, ‘सुल्तान’ सहित कई सुपरहिट फिल्मों का संगीत दिया है.
इन दिनों यशराज फिल्म्स की आदित्य चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘बेफिक्रे’ का संगीत काफी लोकप्रिय हो रहा है जिसे विशाल शेखर ने ही संगीत की धुनों से संवारा है. इस में एक रोमांटिक गीत को विशाल डडलानी ने सुनिधि चौहान के साथ अपनी आवाज में भी स्वरबद्ध किया है. लेकिन इस जोड़े के अलगाव की भी खबरें आती रहती हैं. इस मामले पर दोनों अलगअलग राय रखते हैं.
विशाल : हम कभी अलग नहीं हो सकते. हमारे अलगाव की खबरें शेखर ही फैलाता होगा.
शेखर : हम हर माह इस तरह की खबरें कम से कम एक बार सुनते हैं. देखिए, रचनात्मक क्षेत्र में अनबन होनी बहुत जरूरी है. उस से चीजें निखर कर आती हैं. वैसे मैं ने देखा है कि जब हम सफलता की ओर अग्रसर होते हैं तो लोग हमारी टांग खींचने का काम करते हैं.
आप ने पहली बार आदित्य चोपड़ा के साथ काम किया है?
विशाल : यह सच है कि बतौर निर्देशक आदित्य चोपड़ा के साथ हमारी यह पहली फिल्म है. मगर हम ‘यशराज फिल्म्स’ के साथ 7 फिल्में कर चुके हैं. हर फिल्म में उन का रचनात्मक योगदान रहता है. वे हर निर्देशक को पूरी स्वतंत्रता देते हैं. संगीत की उन्हें काफी अच्छी समझ है.
संगीत में पेरिस शहर या फ्रांस भी नजर आएगा?
विशाल : मैं ‘उड़े दिल बेफ्रिके…’ गीत की बात करूंगा. इस गाने में दर्शक औैर श्रोता को इस बात का एहसास होगा कि आज की तारीख में फ्रांस में क्या माहौल है. वहां किस तरह का पौप संगीत लोकप्रिय है. आज की तारीख में फ्रैंच संगीत पर अरबी संगीत का प्रभाव है, जिसे वहां के लोग ‘रयान’ नाम दे रहे हैं. यानी वहां ‘रयान संगीत’ का स्कूल है, तो उस का प्रभाव हमारे आज के गाने ‘उड़े दिल बेफिक्रे…’ में नजर आएगा.
इसी तरह इस फिल्म के शीर्ष गीत ‘लबों का कारोबार…’ में यूरोपियन संगीत का प्रभाव नजर आएगा. इस तरह का संगीत हौलीवुड की ‘एमली’ जैसी फिल्मों में भी सुनाई दिया होगा. इतना ही नहीं, यदि आप ध्यान देंगे तो हमारे देश की पुरानी फिल्मों के संगीत में भी यूरोपियन संगीत का प्रभाव रहा है, तो उस की झलक आप को इस में भी मिलेगी.
शेखर : इस फिल्म के लिए जिस तरह की डिजाइनिंग हुई है, वह अपनेआप में अलग है. फिल्म की साउंड डिजाइनिंग की वजह से भी यह गाना फ्रांस का एहसास देते हुए भारतीय नजर आता है. हम ने ऐसी धुन बनाई है, जिसे हर आम आदमी गा सके. आप गाने का फिल्मांकन देखेंगे, तो आप को फ्रांस नजर आएगा, पर गीतसंगीत में भारत का संगीत महसूस होगा. हम ने भारत व फ्रांस के बीच के जुड़ाव को अपने संगीत में पिरोया है.
फिल्म संगीत को ले कर लोगों की कई राय हैं. कुछ लोग मानते हैं कि गाने कहानी को आगे बढ़ाते हैं. जबकि कुछ का मानना है कि भारतीय दर्शक फिल्म देखते समय गाना सुनना चाहता है इसलिए फिल्म में गाने होने चाहिए. आप लोगों की राय क्या है?
विशाल : हम मानते हैं कि दोनों राय सही हैं. फिल्म के हिसाब से बात होनी चाहिए. यदि हंसी व खेलकूद वाली फिल्म चाहिए, गाना सिर्फ रिलीफ के लिए है, तो वह भी सही है लेकिन जब गाने फिल्म की पटकथा का हिस्सा बन जाते हैं, तो वह फिल्म देखने व सुनने वाले के लिए एक अनुभव बन जाती है. ऐसे में जब दर्शक को कहानी व गाने पसंद आ जाते हैं, तो वे गाने अमर हो जाते हैं, ऐसे में लोग उस फिल्म को गाने के माध्यम से याद करेंगे.
शेखर : दोनों बातें सही हैं. पर यदि गाना कहानी को आगे बढ़ाता है, तो यह सोने पे सुहागा कहा जाना चाहिए. मैं मानता हूं कि गाने हमेशा फिल्म की कहानी को आगे ले जाते हैं. गाना बिना कथा के नहीं होता. कई बार कुछ फिल्मों में गाने पृष्ठभूमि में चलते हैं, वह उस वक्त परदे पर चल रहे दृश्य या वातावरण को ही व्यक्त करते हैं.
इन दिनों कई गायक आ रहे हैं. आप को उन में से किस में ज्यादा उम्मीदें नजर आती हैं?
विशाल : आज के ये गायक काफी सक्षम हैं और काफी तैयारी कर के आ रहे हैं. ये गायक सिर्फ फिल्म में ही नहीं बल्कि अलबम के अलावा लाइव म्यूजिकल कंसर्ट व स्टेज पर भी गा रहे हैं.
शेखर : आज के गायक अच्छे कलाकार हैं. अपना संगीत भी बनाते हैं. आज की तारीख में स्टूडियो या महज माइक के सामने अच्छा गाने वाले गायक कम हैं, अब वे गायक हैं जो कि लाइव म्यूजिक कंसर्ट में गाने के अलावा माइक के सामने भी अच्छा गाते हैं.
क्या माइक के सामने गाने वाले और लाइव कंसर्ट या स्टेज पर गाने वालों की आवाज में फर्क होता है?
विशाल : जो स्टेज पर गाता है, वह प्रभाव स्टूडियो के अंदर आना जरूरी है और जो स्टूडियो में गाते हैं, उन्हें स्टेज पर गाना आना चाहिए.
शेखर : ये एक ही काम के दो पहलू हैं.
आप टीवी के रिएलिटी शो में जज बन कर जाते हैं, जहां बच्चे प्रतियोगी होते हैं. इन बच्चों से कितना काम करवाया जाना चाहिए. इस पर विवाद होता आया है. आप की क्या राय है?
विशाल : पहली बात तो छोटी उम्र में बच्चों में मौजूद खेल भावना को समझना बहुत जरूरी होता है. दूसरी चीज संगीत के प्रति जो उन की चाहत है, उसे दबने नहीं देना चाहिए. आजकल के जो बच्चे हैं, वे शास्त्रीय संगीत के साथसाथ फिल्मों के संगीत में न सिर्फ रुचि रखते हैं, बल्कि जानकारी भी रखते हैं. हम लोग बच्चों से ज्यादा काम करवाने के बजाय इस बात पर ध्यान देते हैं कि उन के अंदर संगीत को ले कर जो रुचि है, उसे बढ़ाया जाए. हम टीवी शो में जज बन कर जाएं या स्टूडियो में बैठ कर काम कर रहे हों, तमाम मातापिता अपने बच्चों को ले कर हमारे पास आते हैं. बच्चे हमें अपने गाने सुनाते हैं. उस वक्त हमारा एक ही मकसद होता है कि हमारे सामने जो भी बच्चा आया है, उसे संगीत से जो प्यार है उस प्यार को मरने न दिया जाए. हम बच्चों को सिखाते हैं, समझाते हैं पर ऐसा करते हुए हम कईर् बार बहुत कुछ बच्चों से सीखते भी हैं.
शेखर : मैं तो इसे वर्कशौप की तरह देखता हूं. मुझे याद है, जब हम स्कूल में पढ़ते थे, तो जब 9वीं पास करने के बाद 10 वीं में गए तो गरमी की छुट्टियों में हमारी स्पैशल क्लास हुआ करती थी, जिस में हमें 9वीं कक्षा में पढ़ाया गया पाठ्यक्रम फिर से दोहराया जाता था. इसी तरह जब हम बच्चों के साथ काम करते हैं, चाहे स्टूडियो के अंदर हम उन की बात सुनें या रिऐलिटी शो में जाएं, यह हमारे लिए और उस बच्चे के लिए भी वर्कशौप होता है, क्योंकि बच्चा अपने घर पर भी सालभर संगीत सीखता रहता है. तभी वह रिऐलिटी शो में आता है. मैं तो इसे एक म्यूजिक वर्कशौप की तरह लेता हूं. जहां बच्चे सीखने के साथसाथ एंजौय करते हैं.
आप ने बीच में ब्रिटिश रौकबैंड ‘द वैंप’ के साथ जुड़ कर कुछ काम किया है?
विशाल : हमारे लिए ब्रिटिश गायक एकौन ने एक गाना ‘छम्मकछल्लो…’ गाया था. ब्रिटेन में और खासकर अमेरिका में ‘छम्मकछल्लो…’ की लोक प्रियता देख कर सारे लोग चकित हैं. यह गाना पूरे विश्व में बहुत लोकप्रिय है. देखिए, भारतीय बाजार तकरीबन 11 लाख का है तो वहां के गायकों को लगता है कि वे भारत आ कर इस बाजार पर अपना आधिपत्य बना लें. ये लोग भारतीय बाजार में अपने लिए जगह तलाशने के लिए प्रयासरत हैं. इसी के चलते हमारे एक दोस्त तनुज माथुर ने एक नई कंपनी ‘बौटम लाइन मीडिया’ खोली है. उन्होंने ही हम से कहा कि हम ब्रिटिश बैंड ‘द वैंप’ के साथ काम करें. हम ने जब पता किया तो पता चला कि इस बैड में 20 साल के 4 बच्चे हैं जो काफी लोकप्रिय हैं. इन्होंने लंदन के एक बहुत बड़े स्टेडियम में लगातार 3 दिन संगीत का कार्यक्रम किया और स्टेडियम हाउसफुल रहा. हम लोगों ने उन के साथ सामंजस्य बैठाया है. हम ने धुनें बनाई हैं. कुछ गीत उन्होंने गाए हैं. कुछ हम ने गाए हैं. हम ने एक गाना ‘बेलिया…’ रिलीज कर दिया है जो काफी लोकप्रिय हो गया है.
शेखर : 23 देशों में ‘बेलिया’ गीत लोकप्रिय हो गया है. यह गाना अभी तक सिर्फ भारत में रिलीज हुआ है, इसलिए विश्व के लोग इसे डाउनलोड नहीं कर सकते.
आप विदेशों में म्यूजिक कंसर्ट करते हैं, क्या अनुभव होते हैं?
विशाल : हम जहां भी म्यूजिक के कंसर्ट करने जाते हैं, वहां बौलीवुड का उत्सव मनाया जाता है. हमारे शो में वहां के लोग आते हैं, तो लगता है कि कोई बहुत बड़ा उत्सव मनाया जा रहा है. वे नाचते हैं, गाते है, एंजौय करते हैं. वे हमारे साथ सैलिब्रेट करते हैं.
शेखर : हमारे शो में अमेरिकन, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान सभी देशों के लोग आते हैं, मार्च माह में हम ने अमेरिका और ब्रिटेन में 12 शो किए. सभी हाउसफुल रहे. आज की तारीख में बौलीवुड का संगीत इतना लोकप्रिय है कि पूरे विश्व में हमारे लिए दरवाजे खुले हैं. पिछले दिनों अमेरिकी सैलिब्रिटी हमारा शो प्रस्तुत करने आए थे.