एक सरकार के मौलिक और मुख्य कर्तव्यों में नागरिकों की संपत्ति की रक्षा करना भी है. आम नागरिक अपनी रक्षा खुद नहीं कर पाता, इसलिए वह राजाओं और सरकारों की शरण में जाता रहा है ताकि टैक्स के बदले उस के परिवार की सुरक्षा हो, उस की संपत्ति को कोई लूटे नहीं, उसे शांति से रहने दिया जाए.
8 नवंबर, 2016 को एक भाषण से नरेंद्र मोदी ने देश की 120 करोड़ जनता की संपत्ति लूट ली. लोगों की जेबों में या अलमारियों में रखे 500 और 1,000 रुपए के नोट खुलेआम लूट लिए गए. वे कागज के टुकड़े रह गए. उस के बाद भिखारियों की तरह देश बैंकों के आगे जा खड़ा हुआ और इन कागज के टुकड़ों के बदले दो वक्त की रोटी के लायक पैसे लेने में लग गया. लंबी लाइनों में उस ने सर्दीगरमी सही, बारिश सही, और अंत में अपने हाथ में लिए, हिटलरी सर्टिफिकेट की तरह जारी, पहचानपत्र को दे कर भीख में अपने पैसे का छोटा सा हिस्सा पाया.
ऐसा लग रहा था मानो सड़क पर लूटा जा रहा व्यक्ति लुटेरे से कह रहा हो, अच्छा भाई, पूरा पर्स रख लो पर 20 रुपए तो दे दो ताकि बस से घर पहुंच सकूं. सरकार इस कदम को चाहे जितना अनिवार्य कहती रहे, है यह लूट ही. जो पैसा सरकार को, जनता जब मांगें तब देना था, उसे देने से उस ने इनकार कर दिया और एक जबान से उसे सरकार का पैसा मान लिया गया. लगता है इस देश का संविधान अब प्रधानमंत्री की जबान बन गई है जो जब चाहें अपनी मरजी का आदेश जारी कर सकते हैं. कल को प्रधानमंत्री अभिव्यक्ति की आजादी छीन सकते हैं, बराबरी का हक छीन सकते हैं, गिरफ्तारी से बचने के कानून का हक छीन सकते हैं अगर उन के पास कोई बहाना हो. इंदिरा गांधी अपने शासनकाल में ऐसा कर चुकी हैं.
साफ है कि इस देश की जनता के खून में लोकतंत्र के गुण अभी हैं ही नहीं. धर्म, जाति, पाखंड, भाषा, क्षेत्र, अशिक्षा, गरीबी, बीमारी से ग्रस्त देश की जनता को अपने जीने से ही इतनी फुरसत नहीं कि वह लोकतांत्रिक अधिकारों की सोच सके. उसे फर्क नहीं पड़ता कि शासक हिंदू है, पठान है, मुगल है, सिख है, मराठा है, अंगरेज है या उस के वोट से चुना कांग्रेसी, समाजवादी, कम्यूनिस्ट या भाजपाई है.
यहां की जनता को बस 4 रोटियां मिलें, न मिलें तो 2 ही काफी हैं. उसे देश की राजनीति, भ्रष्टाचार, मनमानी, जबरन वसूली, न्यायशाला में अन्याय की चिंता नहीं है. वह अपने हकों को न जानती है, न जानना चाहती है और न ही उन के न होने के कारण होने वाले नुकसान को वह पहचानती है. उसे लगता है जो मिल जाए वही उस के भाग्य में है.
अगर पश्चिमी देशों ने उन्नति की है तो इसलिए कि वहां समय समय पर जनक्रांतियां हुई हैं. चीन में तियानमेन स्क्वायर पर बैठे युवाओं को कुचल दिया गया पर बाद में सरकार संभल गई. फ्रांस में क्रांतियों के कई दौर हुए. इंगलैंड में जनाक्रोश सड़कों पर सैकड़ों बार उतरा. अमेरिका में अश्वेत बराक ओबामा राष्ट्रपति इसलिए बन पाए कि मार्टिन लूथर किंग ‘वी कैन डू इट’ मार्च निकाला.
संवैधानिक हकों को छोड़ना देश की जनता की सब से बड़ी भूल होगी. अपनी संपत्ति के छीन लिए जाने और उस के छोटे हिस्से को पाने के लिए लाइनों में लगना व गिड़गिड़ाना अपने अधिकारों को संविधान की किताबों को जलाने से पैदा हुई आग में भाषणी घी डालना है.