एक दिन कालीचरण हीराकली के घर आया तो वह घर में अकेली थी और आईने के सामने बैठी शृंगार कर रही थी. उस की साड़ी  का आंचल गोद में गिरा हुआ था. हीराकली की कसी देह आईने में नुमाया हो रही थी.
कालीचरण चुपचाप पीछे खड़ा हो गया. जैसे ही हीराकली ने आईने में कालीचरण को देखा तो उस ने चौंकते हुए अपना आंचल ठीक करने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी कालीचरण उस का हाथ थामते हुए बोला, ‘‘हीरा भाभी, ऊपर वाले ने खूबसूरती देखने के लिए बनाई है. तुम इसे ढक क्यों रही हो. मेरा वश चले तो अपने सामने तुम को कभी आंचल डालने ही न दूं. इस खूबसूरती को परदे में बंद मत करो.’’

हीराकली उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के गांव मधौया के रहने वाले तेजराम की बीवी थी. कालीचरण भी इसी गांव का रहने वाला था. वह तेजराम का दोस्त था, इसलिए उस का तेजराम के यहां आनाजाना था. हीराकली गांव के रिश्ते में कालीचरण की भाभी लगती थी.कालीचरण हीराकली को चाहता था, इसलिए वह तेजराम की गैरमौजूदगी में उस के यहां चक्कर लगाता रहता था. उस दिन भी जब वह उस के घर गया तो वह घर में अकेली थी. उसे शृंगार करते देख कर कालीचरण ने उस से शरारत की तो वह बोली, ‘‘पागल कहीं के, तुम को तो हमेशा शरारत सूझती है. काली, एक बात बताऊं, जब भी तुम मुझे छूने की कोशिश करते हो तो मुझे डर लगता है कि कहीं मुसकान के पापा न देख लें और तुम्हारी चोरी पकड़ी जाए.’’ हीराकली मुसकराई.

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