लेखक- आशीष दलाल
“सुकेश, यह क्या मजाक है. उठो न…” रमा ने कांपते हुए स्वर में एक बार फिर से उसे हिलाया. सुकेश इस बार भी न हिला और न ही अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया दी. उस के शरीर में कोई हलचल न न पाकर रमा की घबराहट और भी ज्यादा बढ़ गई.
सहसा उस ने अपने कान उस की छाती के पास ले जा कर उस की धड़कन को सुनने का प्रयास किया. उस ने महसूस किया उस की छाती में सांसों के चलने से होने वाली हलचल नदारत थी. उस ने एक बार फिर से सुकेश को पकड़ कर जोर से हिलाया.
सुकेश उतना ही हिला जितनी रमा ने उसे हिलाया. रमा ने घबराते हुए अपनी 2 उंगलियां सुकेश की नाक के पास ले जा कर रख दी. थोड़ी देर पहले अनहोनी को ले कर मन में समाई हुई घबराहट ने अब रुलाई का रूप ले लिया. रमा सुकेश से लिपट कर रोने लगी. काफी देर तक वह घबराहट की वजह से वह कुछ सोच न पाई. तभी कांपते हाथों से उस ने सुकेश का मोबाइल उठाया और काल लौग में से अपने ससुरजी से की गई बात वाले नंबर पर काल कर दी।
“सुकेश बेटा, आज इतने सवेरे कौन सा काम आ गया?”अपनी सास का स्वर सुन कर रमा की रुलाई फूट पड़ी.
“बहू, तू रो रही है? क्या बात हो हुई?” रमा की रुलाई सुन कर उस की सास ने घबराते हुए पूछा.
“मांजी, यह…यह…” रमा के मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे.
“क्या हुआ? सुकेश को फोन दो. तुम क्यों रो रही हो?” रमा की सास के स्वर में घबराहट और बढ़ गई.
“यह उठ ही नहीं रहे हैं,” एक ही सांस में बोलते हुए रमा रोने लगी.
“तो रोती क्यों है? उस की तो आदत है परेशान करने की. सुबह उठने के नाम पर मुझे भी बहुत परेशान करता था. एक लोटा पानी डाल दे उस के मुंह पर. गधे की तरह चिल्ला कर खड़ा हो जाएगा,” रमा की बात सुन कर उस की सास की घबराहट दूर हुई.
“नहीं, सच में नहीं उठ रहे हैं,” रमा आगे कुछ न बोल पाई और फोन बिस्तर पर रख कर वह अपना सिर पकड़ कर रोने लगी.
सुकेश के मोबाइल पर कुछ देर तक हैलोहैलो… का स्वर गूंजता रहा और फिर फोन बंद हो गया. तभी रमा के मोबाइल की रिंग बजने लगी. रमा ने अपना हाथ बढ़ा कर मोबाइल अपने हाथ में लिया. आंखों में उभर आए आंसुओं की वजह से उसे मोबाइल स्क्रीन पर झलकता हुआ ‘पापाजी’ नाम धुंधला सा नजर आया.
उस की हिम्मत ही नहीं हुई कि अपने ससुरजी से बात कर सके. थोड़ी देर रिंग बजने के बाद बंद हो गई लेकिन फिर अगले ही क्षण फिर से उस का फोन बजने लगा. इस बार उस के फोन की स्क्रीन पर उस की ननद का नंबर झलक रहा था. रमा ने हिम्मत कर बात शुरू की.
“हैलो…रानू… तेरे भैया…” रमा ने रोते हुए कहा.
“भाभी, क्या हुआ भैया को? मम्मी आप से बात कर बुरी तरह से घबरा गई हैं और भैया का मोबाइल स्विच्ड औफ क्यों आ रहा है? आप भी पापा का फोन नहीं उठा रही हैं? क्या हुआ भाभी?” रानू ने एकसाथ ढेर सारे सवाल कर डाले.
रानू की बात सुन कर रमा ने
सुकेश का मोबाइल हाथ में लिया. उस का मोबाइल सच में स्विच्ड औफ हो चुका था.
“तेरे भैया की सांस नहीं चल रही है रानू … मैं क्या करूं?” रमा ने हिम्मत जुटा कर आगे बात बढ़ाई.
“क्या? आप पागल तो नहीं हो गईं? भैया तो भैया… आप भी उन की संगत में ऐसा बेहूदा मजाक करने लगीं,” रानू अब भी रमा की बात पर विश्वास नहीं कर पा रही थी. वह सुकेश की हर समय मजाक करने की आदत से वाकिफ थी और सुकेश ने कई दफा खुद के मरने का नाटक कर सब को डराया भी था। इसी से रानू रमा द्वारा की गई हकीकत को समझ नहीं पा रही थी.
“नहीं रानू, मैं मजाक नहीं कर रही हूं,” कहते हुए रमा की रुलाई फूट पड़ी. तभी रमा को अपने ससुर का स्वर सुनाई दिया, “बहू, आसपास कोई डाक्टर रहता है?”
“मैं यहां किसी को नहीं जानती पापाजी और इन के मोबाइल की बैटरी भी खत्म हो गई है,” रमा अब तक कुछ हिम्मत जुटा पाई थी.
“आसपड़ोस में किसी को उठा कर बात करो,” उस के ससुर ने हिम्मत रखते हुए रमा को सुझाया.
“जाती हूं पापाजी,” कहते हुए रमा बदवहाश सी बाहर की तरफ दौड़ी. सहसा उसे याद आया कि उस के पड़ोस में रहने वाले अमितजी अपने परिवार को ले कर लौकडाउन की घोषणा होने के 1 दिन पहले ही अपने पैतृक शहर चले गए थे. बाकि के 2 फ्लैट खाली थे.
वह तेज कदमों से सीढ़ियां उतर कर तीसरी मंजिल पर आ गई. उस का यहां किसी से खास परिचय न था. वह सभी को केवल नाम से जानती थी और उन के व्यवहार से अपरिचित थी लेकिन फिर भी उस ने बारीबारी से घबराहट के मारे सभी 4 फ्लैटों की डोरबेल बजा दी. एकएक कर 3 दरवाजे खुले.
रमा बदवहाश सी सब के सामने खड़ी बारीबारी से सब के चेहरों को ताक रही थी. सभी लोग अपनेअपने घरों की दहलीज पर खड़े बाहर आने से कतरा रहे थे.
“क्या हुआ? आप इतनी परेशान सी क्यों है?”
“वो…वो… सुकेश… उठ नहीं रहे हैं… डाक्टर…” रमा समझ नहीं पा रही थी वह कैसे अपनी बात कहे. घबराहट के मारे उस का पूरा बदन कांप रहा था.
“मिसेस सुकेश, आप घबरा क्यों रही हैं? क्या हुआ सुकेशजी को?” तभी 301 में रहने वाले मि. शाह ने रमा से पूछा.
मि. शाह सुकेश को अकसर औफिस जाते हुए लिफ्ट देते थे। इसी से वह उस के बारे में थोड़ाबहुत जानते थे.
“भाई साहब, डाक्टर… डाक्टर… वे उठ नहीं रहे हैं,” कहते हुए रमा की आंखों से आंसू झरने लगे. उस ने अपनी साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछने का यत्न किया.