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लेखिका- छाया श्रीवास्तव

उस से छोटी हमउम्र विभा जैसे उस की सगी छोटी बहन सी ही थी. गहरा लगाव था दोनों में. विभा विज्ञान ले कर इस बरस स्नातक होने जा रही थी. घर वालों की अनुमति ले कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी, जो विषय उस का था पहले वही ननद विभा का था. इस से वह उसे खुद पढ़ाती, बताती रहती. पूरा घर उस पर जैसे जान छिड़कता.

जब से वह आई थी, बड़ी और म झली की  झड़पें कम हो गईर् थीं. सासननद का मानसम्मान जैसे बढ़ गया था. बातबात पर उत्तेजित होने वाले तीनों भाई शांत पड़ चले थे. रोब गांठने वाले ससुरजी का स्वर धीमा पड़ गया था. सासुमां की ममता बहुओं पर बेटियों के समान लहरालहरा उठती. कटु वाक्यों के शब्द अतीत में खोते चले जा रहे थे. क्रोध तो जैसे उफन चुके दूध सा बैठ गया था.

‘‘छोटी बहू, यह बाबूजी की दूधरोटी का कटोरा लगता है, मेरे आगे भूल से रख गई हो, यह रखा है.’’

‘‘अरे, मेरे पास तो रखा है, शायद भूल गई.’’

तभी मधु गरम रोटी सेंक कर म झले जेठ के लिए लाई, बोली, ‘‘बड़े दादा, यह दूधरोटी आप ही के लिए है.’’

‘‘परंतु मेरे तो अभी पूरे दांत हैं, बहू.’’

‘‘तो क्या हुआ, बिना दांत वाले ही दूधरोटी खा सकते हैं. देखते नहीं हैं, आप कितने दुबले होते जा रहे हैं. अब तो रोज बाबूजी की ही भांति खाना पड़ेगा. तभी तो आप बाबूजी जैसे हो पाएंगे और देखिए न, बाल कैसे सफेद हो चले हैं अभी से.’’

वे जोर से हंसते चले गए. फिर स्नेह से छलके आंसू पोंछ कर बोले, ‘‘पगली कहीं की. यह किस ने कहा कि दूधरोटी खाने से मोटे होते हैं व बाल सफेद नहीं होते.’’

‘‘बाबूजी को देखिए न. उन के तो न बाल इतने सफेद हैं न वे आप जैसे दुबले ही हैं.’’

‘‘तब तो मधु, मु झे भी दूधरोटी देनी होगी. बाल तो मेरे भी सफेद हो रहे हैं,’’ म झला अखिल बोला.

‘‘म झले भैया, आप को कुछ साल बाद दूंगी.’’

‘‘पर छोटी बहू, बच्चों को तो पूरा नहीं पड़ता, तू मु झे देगी तो वहां कटौती

न होगी.’’

‘‘नहीं, बड़े भैया. मैं चाय में से बचा कर दूंगी आप को. अब केवल 2 बार चाय बना करेगी. पहले हम सब दोपहर में पीते थे. फिर शाम को आप सब के साथ. अब हम सब की भी साथ ही बनेगी और आप चुपचाप रोज बाबूजी की तरह ही खाएंगे.’’

सुन कर मां का कलेजा करुणा से भर आया. उन्होंने अपनेअपने कमरों के दरवाजे पर खड़ी दोनों बड़ी बहुओं की ओर देख, फिर छोटी बहू की ओर आकंठ ममत्व में डूबे हुए वे कुछ कहने को होंठ खोल ही रही थीं कि मधु साड़ी के छोर से हाथ पोंछती बोली, ‘‘बाबूजी, एक बात कहनी थी, आज्ञा हो तो कहूं?’’

‘‘हां, हां, कह न बहू,’’ वे आर्द्र कंठ से बोले.

‘‘क्या मेरे मायके से जो रुपया नकद मिला था वह सब खर्च हो गया? यह न सोचें कि मु झे चाहिए. यदि जमा हो तो वह विभा के विवाह में लगा दें.’’

‘‘वह, वह तो निखिल ने आधा शायद तभी अपने खाते में जमा कर लिया था. वह तो…’’

निखिल वाशबेसिन में कुल्ला करते घूम कर खड़ा हो गया. उस ने घूर कर मधु की ओर देखा. मधु ने तुरंत उधर से पीठ घुमा ली. फिर वह बोली, ‘‘वह सब निकाल लें और सब लोग कम से कम 25-25 हजार रुपए दें, भरपाई हो जाएगी.’’

‘‘रुपए हुए तो इतना सामान कहां से आएगा बेटी?’’

‘‘वह मेरा सामान तो अभी नया ही सा है, वही सब दे दें. घर में 2-2 फ्रिजों का क्या करना है. न इतने टीवी ही चाहिए. बिजली का खर्च भी तो बचाना चाहिए. मु झे तो ढेरों सामान मिला था. कुछ आलतूफालतू बेच कर बड़ी चीजें ले लें. रंगीन टीवी, फ्रिज, कपड़े धोने की मशीन के बिना भी तो अब तक काम चल रहा था. वैसे ही फिर चल सकता है. आप को घरवर पसंद है तो यहीं संबंध करिए विभाजी का, यही घरबार ठीक है.’’

सब जैसे चकित रह गए. दोनों जेठजेठानियां मुंहबाए अचरज से देख रहे थे और निखिल तो जैसे पहले उबल रहा था, परंतु फिर लगा वह बिलकुल शांत हो गया पत्नी के सामने. पहले उस के मन में आया कि कहीं मधु उस की ससुराल में मिले नए स्कूटर के लिए न कह दे, परंतु अब वह जैसे पिघल रहा था. उस ने पिता से लड़ झगड़ कर विवाह के बाद ससुराल से मिले आधे रुपए  झटक कर बैंक बैलेंस बना लिया था. यह बात उस ने मधु से कभी नहीं कही थी. आज जैसे वह पूरे परिवार की नजरों में गिर गया था. रुपयों की बात पर वह बौखला कर कुछ कहने के शब्द संजो रहा था कि मधु की दानशीलता ने उसे गहराई तक गौण बना दिया.

‘‘मांजी, मेरे पास जेवर भी कई जोड़ी हैं. मैं सब से छोटी हूं न मायके में. इस से बड़े दोनों भाईभाभी व चाचाचाची तथा दोनों बेटेबहुओं ने भी काफी कुछ दिया है. चाची की तो मैं बहुत दुलारी हूं. उन्होंने अलग से कई जेवर दिए हैं, उन्हें बेच कर समस्या हल हो जाएगी. आप लोग चिंता न करें. बाबूजी रिटायर हो गए हैं तो अब यह भार उन का नहीं, उन के तीनों बेटेबहुओं का है. कोई तानाठेना क्यों देगा. क्या कोई पराया है. बहन उन की ननद हमारी, आप तो कुछ शर्तों पर हेरफेर कर हां कर दो. सब ठीक हो जाएगा. कुछ अच्छा काम हम लोग भी तो कर लें.’’

सुन कर बहुत रोकने पर भी नेत्र बरस पड़े. वे भर्राए कंठ से किसी प्रकार बोले, ‘‘छोटी बहू, क्या कहूं? तेरी जैसी तो कहीं मिसाल नहीं है रे, कहां से पाया तू ने ऐसा ज्ञान, उदारता. तू कहां से आ गई इस घर में.’’

‘‘न, न बाबूजी और कुछ नहीं. मैं सह नहीं सकूंगी,’’ कह कर वह आगे बढ़ी उन के मुख पर हाथ रखने को तो उन्होंने उसे कंधे से लगा लिया और फिर उस के सिर पर हाथ रख कर जैसे मन की सारी ममता लुटाने को आतुर हो उठे.

‘‘पता नहीं कौन से कर्म किए थे हम ने कि इस साधारण घर में बहू बन कर चली आई. अरे, धन्य हैं इस के मातापिता और परिवार वाले जो उन्होंने इस मणि को हमारी  झोली में डाल दिया. अरे, आ तो मधु. मैं तु झे छाती से लगा कर कलेजा ठंडा कर लूं. अरे, ऐसा तो मैं अपनी औलाद को भी न ढाल पाई.’’

मांजी ने उसे खींच कर कलेजे से लगा लिया. मधु ने लज्जा से अपना मुंह मांजी के आंचल में छिपा लिया. मुकेश, अखिलेश अपनी नम आंखें पोंछ कर उठ खड़े हुए. निखिल वहां से चल कर अपने कमरे में दरवाजे पर खड़ा हो कर मुड़ा और बोला, ‘‘बाबूजी, आप विभा के यहां मंजूरी का पत्र लिख दें, और हां, मेरा स्कूटर मेरा बहनोई चलाएगा. अब थोड़ी साफसफाई हो जाएगी, बस,’’ कह कर वह अंदर घुस गया.

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