ओसीडी होने पर व्यक्ति को मालूम ही नहीं होता कि उस के दिमाग में जो विचार आ रहे हैं वे सही भी हैं या नहीं. इस दौरान वह एक ही कार्य को बारबार करने के लिए बाध्य हो जाता है. यह दिमागी बीमारी ठीक तो नहीं हो सकती लेकिन इलाज से लक्षणों को नियंत्रण में लाने में मदद मिल सकती है.
ऐसे शख्स से मिल कर हम हैरान रह जाते हैं जो बारबार हाथ धोते रहते हैं, दिन में कई बार स्नान करते हैं, अपनी चीजों को दूसरों द्वारा छूना पसंद नहीं करते व दिनभर घर की साफसफाई में जुटे रहते हैं. हम उन का मजाक भी उड़ाते हैं. हालांकि, वे एक प्रकार के मानसिक रोग से ग्रसित रहते हैं जिसे ओसीडी यानी औब्जैक्टिव कंपल्सिव डिस्और्डर कहते हैं.
एक आंटी बेहद सफाईपसंद थीं. वे चूल्हे पर खाना बनातीं तो लकडि़यों के पास पानी का बरतन भी रखती थीं. जैसे ही चूल्हे में जलती लकड़ी को खाना बनाते समय आगे बढ़ातीं, तुरंत अपने हाथ धोतीं, जब गेहूं धो कर सुखातीं तो अपने बेटे के हाथ धुलवा कर ही उसे गेहूं का थैला पकड़ाती हुई कहतीं, पहले हाथ धो कर आओ, फिर गेहूं पिसवाने चक्की पर ले जाना. उन की पीठपीछे सब हंसते थे, कहते थे, ‘अरे, चक्की वाला तो हाथ धो कर नहीं पीसेगा.’ हर समय पानी के संग रहने से उन के हाथ व पैर की उंगलियां सफेद और दरारयुक्त छिले आलू सी दिखने लगी थीं.
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एक ही परिवार की 2 बहनों को भी इस रोग से ग्रसित देखा है. बड़ी बहन के पति ने तो तंग आ कर अलगाव ही ले लिया, जबकि छोटी बहन के पति ने उन्हीं के अनुसार अपने को ढाल लिया. ऐसे कई उदाहरण हमें अपने आसपास देखने को मिलते हैं. जब इस विषय में चर्म रोग विशेषज्ञ डा. जे एल ममगाई से जानकारी प्राप्त की तो इस बीमारी के विषय में बेहद रोचक तथ्य मालूम हुए.
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