देश की सरकार ने इस बार गोआ में हुए ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन व साउथ अफ्रीका के पहले अंगरेजी अक्षरों से बने ब्रिक्स सम्मेलन में अपनी खासी किरकिरी करा डाली. यह बात दूसरी है कि भारतीय अखबार नरेंद्र मोदी के बारे में खरीखरी कहने में हिचकिचाते रहे पर सच यही है कि आर्थिक मुद्दों के लिए बने इस 10 साल पुराने गठजोड़ को आतंकवाद विरोधी मंच बनाने की नरेंद्र मोदी की कोशिश मनचाही सफल नहीं हुई.

वर्ष 2000 के बाद जो उन्नति पिछड़े देशों ने की और लगने लगा कि ये देश पश्चिमी देशों को पछाड़ देंगे तो इन देशों ने ब्रिक्स बना कर विश्व की आधी जनसंख्या को वजन देने की कोशिश की ताकि अमेरिका, इंगलैंड, जरमनी, फ्रांस, कोरिया, जापान आदि का दबदबा कम किया जा सके. उन दिनों इन देशों में सस्ते मजदूर मिलने शुरू हुए थे और विदेशी यानी पश्चिमी देशों की कंपनियों ने यहां कारखाने या कौल सैंटर खोलने शुरू किए थे. भारत को सौफ्टवेयर केंद्र माना जाने लगा था. रूस, ब्राजील तेल के खजाने के अहंकार में थे. चीन दुनिया का सब से बड़ा उत्पादक देश बन गया था.

पर 2016 तक पासा पलट गया. अमेरिका ने शेल गैस का उत्पादन कर के तेल के दाम आधे करा दिए. चीन के माल की मांग कम हो गई. भारत के सौफ्टवेयर विशेषज्ञ एक स्तर से ज्यादा ऊपर नहीं उठ पाए. इन देशों में आंतरिक विवाद भी बढ़ गए और जो चमक 10 साल पहले थी वह फीकी होने लगी. इन दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं का यह क्लब अब वह रूप खो चुका है.

गोआ में भारत ने आतंकवाद के मसले को बारबार उठा कर इस गठजोड़ के मूल स्वरूप को और खराब कर दिया. भारतीय अखबारों ने नरेंद्र मोदी के साथ इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों की तसवीरें तो खूब प्रकाशित कीं और आतंकवाद के बारे में समाचार भी प्रकाशित किए पर मूल समस्या यानी आर्थिक ठहराव व गरीबी को छुआ ही नहीं. भारत बारबार पाकिस्तान को कठघरे में डालने की कोशिश करता रहा पर सफल नहीं हुआ.

दरअसल, चीन और रूस दोनों को भारत से ज्यादा पाकिस्तान की जरूरत है. चीन और रूस दोनों उत्तरी कोरिया को मिलने वाली पाकिस्तानी आणविक तकनीक के कारण उसे नाराज नहीं करना चाहते. चीन पाकिस्तान से हो कर अरब सागर तक मार्ग बना रहा है ताकि उस के माल को जहाजों से लंबा रास्ता न काटना पड़े. पाकिस्तान की सरकारें बदलती रहती हैं पर उन की विदेश नीति में भारतविरोध और चीनप्रेम बरकरार रहता है.

सम्मेलन के दौरान चीन की राजधानी बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय ने प्रैस से साफ कह दिया कि चीन के साथ पाकिस्तान के हर मौसम के संबंध हैं. रूस आजकल पाकिस्तान की थलसेना के साथ संयुक्त अभ्यास कर रहा है और वह अफगानिस्तान पर पाकिस्तानी पकड़ के कारण पाकिस्तान को खुलेआम आतंकवादी देश घोषित करने को तैयार नहीं है.

नरेंद्र मोदी की घरेलू नीतियों का कोई विशेष असर जनमानस पर नहीं पड़ा है और इसीलिए भारतीय जनता पार्टी अब उड़ी के बाद पाकिस्तान की आड़ उसी तरह लेना चाह रही है जैसे पहले इंदिरा गांधी विदेशी हाथ का नाम लिया करती थीं. अपनी घरेलू नीतियों का हल गोआ के ब्रिक्स सम्मेलन में ढूंढ़ना सही नहीं था. आतंकवाद का चेहरा पाकिस्तान है पर दुनिया भारत के कहने या उस के इशारे पर नहीं चलने वाली. भारत-पाक संबंध दरअसल कश्मीर के कारण खराब हैं और इस मामले में भारत हमदर्दी पैदा नहीं कर पाया है, न पहले और न अब.

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