कोरोना वायरस का खतरा उन लोगों को ज्यादा है जिन्हें पहले से कोई ना कोई बीमारी है और इनमें से कोरोना सबसे ज़्यादा घातक साबित हो रहा है कैंसर रोगियों के लिए। कैंसर रोगियों को कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने का खतरा सबसे ज़्यादा है. वजह यह कि कैंसर रोगियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले ही कमजोर होती है.कीमो और अन्य थेरेपीज के चलते उनका शरीर काफी कमजोर होता है. ऐसे में कैंसर रोगियों में कोरोना वायरस का संक्रमण जानलेवा हो सकता है. कैंसर के जिन मरीजों की कीमोथैरेपी हो रही है या हो चुकी है, उन्हें उल्टी सहित अन्य समस्याएं भी रहती हैं. वे ठीक तरीके से भोजन नहीं ले पाते हैं. ज़्यादातर लिक्विड डाइट होते हैं. उनके अमाशय में भोजन पचने में वक़्त लगता है. ऐसे में भोजन से पर्याप्त ऊर्जा ना मिल पाने के कारण रोग से लड़ने में उनका शरीर शिथिल पड़ जाता है.

चीन के डाटा के अनुसार, कोरोना वायरस की वजह से जिन लोगों ने जान गंवाई हैं या गंभीर हालत में हैं, उनमें से ज़्यादातर पहले से ही किसी बीमारी से ग्रस्त थे, जिसकी वजह से उनका इम्यून सिस्टम काफी कमज़ोर था. गंभीर रूप से बीमार होने वाले 6% लोगों में, फेफड़े की सूजन इतनी गंभीर है कि शरीर को जीवित रहने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है.एक नई स्टडी के अनुसार कैंसर के वो मरीज जिनकी बीमारी का असर उनके खून और फेफड़े पर पड़ चुका हो या उनके पूरे शरीर में ट्यूमर फैल चुका हो, उनमें कैंसर ना होने वाले covid-19 के मरीजों की तुलना में मौत या अन्य गंभीर जटिलताओं का खतरा बहुत अधिक है.

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इस स्टडी में चीन के हुबेई प्रांत के 14 अस्पताल शामिल हैं, जहां यह महामारी फैली। इनमें 105 कैंसर के मरीज और उसी उम्र के 536 वो मरीज थे जिन्हें कैंसर नहीं था. ये सभी मरीज  Covid-19 से पीड़ित थे. चीन, सिंगापुर और अमेरिका के डॉक्टरों ने अपनी स्टडी में पाया कि सिर्फ कोरोना के मरीजों की तुलना में कोविड -19 के कैंसर मरीजों की मृत्यु दर लगभग तीन गुना अधिक थी.स्टडी में कहा गया है कि बिना कैंसर वाले कोरोना के मरीजों की तुलना में कोरोना वाले कैंसर के मरीजों को देखभाल की ज्यादा जरूरत है, जैसे आईसीयू में भर्ती करना और वेंटिलेशन पर रखना. कैंसर का यह खतरा सिर्फ उम्र के हिसाब से नहीं बल्कि इस पर भी निर्भर करता है कि यह कौन सा कैंसर है, किस चरण में है और इसका इलाज कैसे किया जा रहा है.

इस स्टडी के निष्कर्षों से पता चलता है कि कोविड -19 के प्रकोप में कैंसर वाले मरीज आसानी से आ सकते हैं क्योंकि इम्यून सिस्टम कमजोर होने की वजह से उनमें संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा होता है.इस स्टडी को अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च की वर्चुअल वार्षिक बैठक में जारी किया गया है और संगठन की समीक्षा पत्रिका के कैंसर डिस्कवरी अंक में इसका प्रकाशन हुआ है. इससे पहले की स्टडी में कैंसर और कोविड -19 के सिर्फ 18 मरीजों को शामिल किया गया था.विशेषज्ञों के अनुसार, कैंसर के मरीजों के अत्यधिक संवेदनशील होने के कई कारण हैं. कैंसर ना सिर्फ इम्यून सिस्टम पर दबाव डालता है बल्कि इसके मरीज जल्दीबूढ़े होने लगते हैं। यह दोनों लक्षण कोविड -19 के लिए खतरनाक हैं.
ब्लड कैंसर जैसे ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और माइलोमा इम्यून सिस्टम पर हमला करते हैं, मरीजों के प्राकृतिक रूप से बीमारी से लड़ने की क्षमता को कमजोर करते हैं और उनमें खतरनाक संक्रमण होने की प्रवृत्ति को बढ़ाते हैं.

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स्टडी के अनुसार, खतरे की दूसरी श्रेणी में फेफड़े के कैंसर वाले मरीज आते हैं.फेफड़े की कार्यक्षमता कम होने की वजह से यह लोग जरूरत से ज्यादा संवेदनशील होते हैं. कीमोथेरेपी और सर्जरी भी इम्यून सिस्टम को दबा देते हैं. कैंसर का पूरा इलाज कराने के बाद भी इन मरीजों में कोरोना का खतरा उन मरीजों की तुलना में ज्यादा है जिन्हें कभी कैंसर नहीं हुआ.

डॉक्टर कहते हैं कि इस आपदा से घबराएं नहीं, बल्कि इसका हिम्मत और सावधानी से सामना करें. कैंसर मरीज अपने खानपान का विशेष ध्यान रखें। थोड़ी- थोड़ी देर बाद कुछ खाते रहें, तरल पदार्थ का सेवन अधिक से अधिक करें. जिससे कमजोरी न आए और रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक बनी रहे. इसके अलावा कैंसर रोगी अपनी साफ सफाई पर दूसरों के मुकाबले ज़्यादा ध्यान दें. अपने हाथ बार-बार धोते रहें, संभव हो तो घर पर खुद को आइसोलेट कर लें, अलग कमरे में रहें. घर के भीतर भी मास्क का इस्तेमाल कर सकते हैं, मास्क नहीं है तो रुमाल बांध सकते हैं, लेकिन इसे धोते रहें. सेनेटाइजर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. कैंसर रोगियों को फॉलोअप के लिए हॉस्पिटल जाना पड़ता है, डॉक्टर सलाह देते हैं कि अपने डॉक्टर से सलाह लेकर हो सके तो जब तक अति आवश्यक न हो अगले एक-दो माह तक अस्पतालों में ना जाएँ.अगर जाना बहुत ही ज़रूरी हो जाए तो मास्क लगाने के साथ ही अपने साथ सेनेटाइजर ले जाएं, इसका इस्तेमाल करते रहें. अस्पताल में किसी भी वस्तु को न छूएं, अपने हाथ को नाक, आंख और चेहरे से न लगाएं.

ये वायरस आपके शरीर में तब प्रवेश करता है जब आप संक्रमित बूंदों को सांस के द्वारा अंदर खींच लेते हैं या फिर आप किसी संक्रमित सतह को छू लेते हैं और फिर उन्हीं हाथों से अपनी आंखें, मुंह या नाक छूते हैं. इसके बाद वायरस के कण गले तक पहुंच जाते हैं और कोशिकाओं पर चिपक जाते हैं और अपनी आनुवंशिक सामग्री कोशिकाओं में ट्रांसफर कर देते हैं. जिससे मानव कोशिकाएं ऐसे कारखाने में तबदील हो जाती है जो और ज़्यादा वायरस कणों का उत्पादन करने लगती है.

जैसे-जैसे वायरस बढ़ने लगता है, यह गले के नीचे चला जाता है. जब वायरस फेफड़ों में पहुंचता है, तो यह सूजन यानी इंफ्लामेशन को पैदा करता है. जिससे फेफड़ों को रक्तप्रवाह में ऑक्सीजन भेजने में कठिनाई आती है.इस वजह से फेफड़ों में पानी भरना शुरू हो जाता है और सांस लेने में मुश्किल आने लगती है.कई मरीज़ों को सांस लेने में मदद के लिए वेंटीलेटर का सहारा लेना पड़ता है.ऐसे वक्त में ये बेहद ज़रूरी है कि कैंसर रोगी सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य सलाह का पालन करके अपनी रक्षा करें.जिसमें सामाजिक दूरी बनाना और स्वच्छता बनाए रखना अतिआवश्यक है.

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