किशोरावस्था उम्र का वह पड़ाव है जब किशोरकिशोरियों में एकदूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगी रहती है, लेकिन कभीकभी यह होड़ ईर्ष्या में तबदील हो जाती है. ईर्ष्या की कई वजहें होती हैं, जैसे अमीर व स्मार्ट बौयफ्रैंड, सहपाठी का कक्षा में फर्स्ट आना, फर्राटेदार अंगरेजी बोलना, दोस्तों के पास महंगे मोबाइल फोन का होना आदि. श्वेता 10वीं कक्षा की स्टूडैंट थी. वह देखने में बहुत खूबसूरत थी. सभी लड़कियां उसे ब्यूटी क्वीन कह कर बुलाती थीं लेकिन वह अन्य किशोरियों की तरह चंचल नहीं थी. वह हमेशा शांत रहती और क्लास में फर्स्ट आती थी. सुरेश भी श्वेता की क्लास में पढ़ता था. वह अमीर घर का था, देखने में स्मार्ट. जब वह क्लास में आता तो सभी लड़कियों की नजरें उस पर ही टिक कर रह जातीं. सभी लड़कियां उस से दोस्ती करने को लालायित रहतीं, पर वह किसी को लिफ्ट नहीं देता था.

उस का दिल कब श्वेता पर आ गया किसी को पता ही नहीं चला. श्वेता और सुरेश के प्यार के चर्चे अब पूरे स्कूल में होने लगे. बात तब हद से गुजर गई जब क्लास के कुछ मनचलों ने श्वेता को धमकी दी कि वह सुरेश से दोस्ती तोड़ दे वरना उस के साथ बहुत बुरा होगा. श्वेता ने जब यह बात सुरेश को बताई तो वह बौखला गया और उन लड़कों के पास जा कर बोला, ‘‘यार, तुम लोगों ने श्वेता को धमकी दे कर अच्छा नहीं किया. हम सब एक क्लास में पढ़ते हैं, हमारे बीच कोई ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए. हमें एकदूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए. अगर मेरी और श्वेता की दोस्ती है तो तुम्हें क्या हर्ज है अपने अच्छे व्यवहार से तुम भी किसी को दोस्त बना सकते हो. क्लास में और भी अच्छी लड़कियां हैं अगर वे तुम में इंट्रैस्टेड हैं तो तुम उन के साथ दोस्ती कर लो. फिर हम सब दोस्त मिल कर ऐंजौय किया करेंगे.’’

सुरेश की बात ने उन पर असर किया. इस की प्रतिक्रियास्वरूप प्रदीप बोला, ‘‘सुरेश ठीक कह रहा है. हमें श्वेता और सुरेश से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए.’’ किशोरों में ही नहीं किशोरियों में भी बौयफ्रैंड को ले कर अकसर ईर्ष्या देखी गई है. कभीकभी यह ईर्ष्या इतनी बढ़ जाती है कि अवसाद का कारण बन जाती है. मोहिनी 9वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस की क्लास में हर लड़की का बौयफ्रैंड था. मोहिनी भी दूसरी लड़कियों की देखादेखी बौयफ्रैंड बनाना चाहती थी, पर नाटी व काली होने की वजह से कोई लड़का उस की तरफ अट्रैक्ट नहीं होता था. नतीजतन उसे अपनी सहेलियों से ईर्ष्या होने लगी और वह उन से कटीकटी रहने लगी. इस का असर उस पर ऐसा पड़ा कि उस ने उस स्कूल को ही छोड़ दिया.

बौयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड को ले कर किशोरकिशोरियों में अकसर ईर्ष्या की भावना पैदा होती है, पर किसी को आगे बढ़ते देख भी किशोर मन में ईर्ष्या की भावना पनपने लगती है.

दिनेश क्लास में तो फर्स्ट आता ही था साथ ही अन्य ऐक्टिविटीज में भी वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. इस साल उस ने इंटरस्कूल डिबेट कंपीटिशन जीता था. स्कूल के प्रिंसिपल ने भी दिनेश की पीठ थपथपा कर उस की इस जीत पर उसे बधाई दी थी, लेकिन विनीत दिनेश की जीत से कुढ़ कर रह गया. एक दिन दिनेश जब प्लेग्राउंड से क्लास की ओर जा रहा था तो विनीत और उस के  दोस्तों ने उस पर कमैंट पास करते हुए कहा, ‘‘भई, रट्टू तोता बाजी मार ले गया. जीत तो तब कही जाती जब बिना रटे डिबेट जीतता.’’ दिनेश चाहता तो विनीत को उलटासीधा कह सकता था, पर शिष्टाचार में रहते हुए उस ने बस इतना ही कहा, ‘‘दोस्तो, अगली बार तुम लोग भी रट कर डिबेट में हिस्सा लेना. मुझे उम्मीद है कि जीत तुम्हारी ही होगी.’’

यह सुन कर विनीत और उस के दोस्त एकदूसरे का मुंह ताकते रह गए लेकिन विनीत दिनेश को गले लगाते हुए बोला, ‘‘दोस्त, हम ने तुम्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर तुम ने हमारी आंखें खोल दीं. यू आर रियली ग्रेट माई डियर दिनेश.’’ इस तरह की ईर्ष्या की घटनाएं स्कूलों में किशोरकिशोरियों के बीच अकसर देखने को मिलती हैं.

किशोरियों में एकदूसरे की ब्यूटी को ले कर ईर्ष्या होना आम बात है. सुंदर किशोरियों के मिजाज सातवें आसमान पर रहते हैं. वे बातबात पर अपनी फिगर और फेस की तारीफ करती नहीं थकतीं. ऐसे इतराती हैं मानो कोई अप्सरा हों. ऐसी किशोरियों को देख कर दूसरी किशोरियों में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है, जो अंदर ही अंदर उन्हें बेचैन करती रहती है. ऐसी किशोरियों को ईर्ष्या करने की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्हें अपने दूसरे गुणों को उभारने का प्रयास करना चाहिए. उन्हें उन लोगों को उदाहरण के तौर पर देखना चाहिए जिन्होंने बदसूरत होते हुए भी अपनेअपने क्षेत्र में बुलंदियों को छुआ और लोगों के दिलों में बस गईं.

महान कवयित्री महादेवी वर्मा शक्लसूरत में साधारण थीं, लेकिन अपने लेखन से वे लोगों का दिल जीतने में सफल रहीं. ऐसे न जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं.

भाई बहनों के बीच ईर्ष्या

केवल दोस्तों के बीच ही ईर्ष्या नहीं होती बल्कि सगे भाईबहनों के बीच भी ईर्ष्या देखने को मिलती है. वैसे तो मातापिता अपने सभी बच्चों को सामान्य रूप से प्यार करते हैं, पर ऐसा देखने में आया है कि उन बच्चों को अधिक प्यार व उन की तारीफ रिश्तेदारों से करते हैं जो पढ़ने में तेज होते हैं. दूसरों के सामने तारीफ करने से दूसरे भाईबहनों में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है और वे उस से बातबात में झगड़ने लगते हैं.

रोहित, रश्मि और राहुल भाईबहन थे. राहुल बड़ा था और रोहित छोटा. राहुल क्लास में हमेशा फर्स्ट आता पर एक साल बीमार हो जाने की वजह से राहुल की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई. उस की क्लास में थर्ड पोजिशन आई जबकि रोहित और रश्मि अपनीअपनी क्लास में फर्स्ट आए. बात यहीं खत्म हो जाती अगर मातापिता दूसरों के सामने राहुल की बुराई न करते, लेकिन राहुल की बुराई करने से उस ने इस असफलता को दिल पर ले लिया और अपने भाईबहन से ईर्ष्या तो करने ही लगा बल्कि मातापिता के साथ भी शिष्टता भूल बैठा. वह सब से अलगअलग रहने लगा और बातबात पर मातापिता को उलटासीधा कहने से भी बाज न आता. इसलिए बच्चों के बीच ईर्ष्या के लिए बहुत हद तक पेरैंट्स भी जिम्मेदार होते हैं.

ईर्ष्या से कैसे बचें

पौजिटिव सोच रखें

हमेशा अच्छा सोचें. अगर असफलता को गंभीरता से न लें और न ही सफल व्यक्तियों को देख कर कुढ़ें. उन जैसा बनने का प्रयास करें तो एक दिन सफलता अवश्य आप के कदम चूमेगी. ईर्ष्या करने से आप का मनोबल गिरेगा और आप अपना कौन्फिडैंस खो बैठेंगे. महान मुक्केबाज मुहम्मद अली जब पहली बार बौक्सिंग रिंग में उतरे थे तो उन्हें दूसरे मुक्केबाज ने चंद मिनट में ही हरा दिया था, पर मुहम्मद अली ने उस दिन ही पक्का इरादा कर लिया था कि वे बौक्सिंग के विश्व चैंपियन बन कर रहेंगे. उन की पौजिटिव थिंकिंग ने उन को विश्व चैंपियन बना दिया. इसी तरह महान धावक मिल्खा सिंह ने हार में भी जीत तलाशी और ओलिंपिक में गोल्ड मैडल प्राप्त किया. सही सोच और कुछ कर दिखाने के जज्बे ने उन्हें विश्व का महान धावक बना दिया. लोग मिल्खा सिंह को उड़न सिख के नाम से संबोधित करते हैं.

मेहनत से आगे बढ़ें 

किशोरकिशोरियों को एकदूसरे को आगे बढ़ता देख ईर्ष्या होने लगती है. वे यह नहीं सोच पाते कि क्यों पीछे रह गए और दूसरे कैसे आगे बढ़ गए? सब से पहले उन्हें अपनी कमियां तलाशने की जरूरत है. कमियां तलाश कर सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ने के रास्ते तलाशिए. इस के लिए भले ही कितनी मेहनत करनी पड़े.

ईर्ष्या नहीं तारीफ करें

अगर दोस्त के पास स्मार्टफोन है या दूसरे गैजेट्स हैं तो उस से ईर्ष्या न करें, बल्कि खुल कर उस के स्मार्टफोन व गैजेट्स की तारीफ करें. दोस्त खुश हो जाएगा और अपनी चीजें आप से शेयर भी करेगा. अगर दोस्त क्लास में फर्स्ट आता है या डिबेट व अन्य खेलों में विजयी होता है तो भी उसे बधाई देना न भूलें. दोस्त के कपड़ों की तारीफ करें और कहें, ‘यार, इन कपड़ों में तो तू हीरो जैसा लगता है,’ फिर देखिए वह आप का कितना पक्का दोस्त बन जाएगा.

स्वस्थ स्पर्धा हो

सभी किशोरों में एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती है, पर कुछ किशोरकिशोरियां आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन शौर्टकट अपनाते हैं और इस तरह आगे भी निकल जाते हैं. यह सफलता स्थायी नहीं होती और न ही कौन्फिडैंस पैदा करती है. आप हमेशा अंदर ही अंदर यह जरूर महसूस करेंगे कि शौर्टकट से आज तो सफलता मिल गई पर आगे क्या होगा. इसलिए आपस में स्वस्थ स्पर्धा होनी चाहिए. कभीकभी किशोरकिशोरियों में ईर्ष्या इतनी हद तक बढ़ जाती है कि वे बदला लेने पर उतर आते हैं. उन का ऐसा सोचना ठीक नहीं है बल्कि उन्हें अपनी अहमियत दिखानी चाहिए और श्रेष्ठ बनने का प्रयास करना चाहिए, न कि दूसरे को बरबाद करने में अपनी पूरी ऐनर्जी लगानी चाहिए. इसलिए हमेशा पौजिटिव सोचें और दोस्तों के अच्छे काम की दिल खोल कर प्रशंसा करें.

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