उत्तर प्रदेश के अमरोहा शहर से 12 किलोमीटर उत्तरपश्चिम में बसा है गांव ऊमरी जानिव गर्व. 1,600 की आबादी वाला यह गांव जाट, जाटव, सैनी, धोबी, छीपी व ब्राह्मण को स्वयं में समाए हुए है. जाटों का प्रभुत्व होने के कारण वे अकसर निम्न जातियों को ब्याज दे कर उन की जमीन को अपने अधिकार में ले चुके हैं. करीब 15 परिवारों में सिमटे ब्राह्मण अपने परंपरागत पेशे पूजापाठ और अध्यापन में लगे हैं. सैनी, जाटों की जमीन पर बटाई, चौथाई पर बागबानी का कार्य कर रहे हैं. इन की आर्थिक स्थिति जाटवों से कहीं बेहतर है. धोबी मजदूरी कर के अपनी उदर पूर्ति में व्यस्त हैं. छीपी लोग भी मेहनतमजदूरी कर के अपना पेटपालन कर रहे हैं. जाटव समुदाय बहुतायत में दिहाड़ी व मजदूरी कर के गुजरबसर कर रहा है. जाटव व धोबी को छोड़ कर सभी जातियों में सरकारी नौकर हैं. गांव में साक्षरता दर 30 फीसदी के करीब ही होगी. गांव में वस्तु विनिमय प्रथा आज भी कायम है.

सैनी व जाटव शराब के लती होने के कारण अपने घरों में कच्ची शराब बना कर पीते और बेचते हैं. शिक्षा का अभाव और बड़ों को आदर्श मान कर बच्चों ने भी शराब को जरूरी समझ कर हलक से नीचे उतारना शुरू कर दिया है. अशिक्षा, गरीबी और शराब की लत ने उम्र से पहले लोगों को बूढ़ा बना दिया है. बच्चे तो जवानी देख ही नहीं पाते, जवानी की दहलीज लांघ कर सीधे बुढ़ापे की ड्योढ़ी पर छलांग लगा रहे हैं. तभी तो 20 जून को नुक्कड़ सभा में शरीर की नौजवानी दिखाई नहीं दी. दिखाई दे रहा था तो बस बचपना और बुढ़ापा.

एक एनजीओ के बैनर तले हम लोगों ने शराब के सेवन से होने वाले नुकसानों के प्रति ग्रामीणों को जागरूक करने के लिए वहां नुक्कड़ सभा आयोजित की थी. सभा की शुरुआत पर 25 साल का एक बूढ़ानौजवान सवाल कर बैठा, ‘मीटिंग में बैठ कर हमें क्या मिलेगा, जी?’ हम समझ गए थे कि नेताओं ने चुनावी दौर में एक पव्वा और सौ का एक पत्ता दे कर उस की आदत खराब कर दी है, उसे लालची बना दिया है. इसी लालच में हमें वोटों वाला नेता समझ कर शराब और पव्वे की उम्मीद में सवाल कर बैठा.

उस के सवाल के जवाब में लोकतांत्रिक व्यवस्था के इस दोष पर चर्चा तो करनी ही थी कि विशाल आबादी को वोट के मूल्य के महत्त्व का पता ही नहीं. वोट किस काम आता है, वोट के बाद हारजीत के क्या परिणाम होते हैं. जीती हुई राजनीतिक कंपनी के लोग आपस में ताकतवर पदों को बांट कर जनहित में कार्य करने के बजाय अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को स्वार्थवश पूरा कर के गरीब को और गरीब, अचेतन को अचेतन, बीमार को और बीमार, दलित को दलित, भूमिहीन को भूमिहीन और भ्रष्ट को और भ्रष्ट, धनी को और धनी, लुटेरे को और बड़ा लुटेरा, व्यापारी को उद्योगपति और उद्योगपतियों को इतना सक्षम बना देने का कार्य बखूबी कर रहे हैं कि वे यह तय करें कि उन के हित वाली किस राजनीतिक कंपनी को सत्ता की चाबी सौंपी जाए. ऐसे में मतदाता को यह समझ आना ही चाहिए कि उसे अपने वोटों से ऐसी सरकार बनानी चाहिए जो सदन में जनसमस्याओं के उन्मूलन

पर संजीदगी से कार्य करे, ताकि विषमतावादी व्यवस्था निर्मूल हो जाए.

मगर वह तो वोट की कीमत सिर्फ 100 रुपए और एक पव्वा मान बैठा है. अगर उसे बताया गया होता कि उस का वोट सरकारें बनाने का काम करता है, जो सदन में उस के विकास का खाका तैयार करेंगी, तब वह अपनी सोच को बदलता. ‘हमें क्या मिलेगा’ के बदले काश उसे 100 रुपए दे पाते हम लोग. उन के लिए ठर्रा के एक पैग की व्यवस्था भी न कर पाने का हम लोगों को मलाल तो रहेगा.

मातृशक्तियां घूंघट की आड़ में अपनी आदत के मुताबिक भीड़ के पीछे की ओर ही बैठीं. घर के सारे कर्मकांड उन्हीं के द्वारा संपन्न किए जाते हैं. कारण, उन के अंदर बैठा हुआ धर्म का डर. मैं उन की चेतना को झकझोरना चाहता था ताकि उन के दिमाग में ‘क्यों’ उत्पन्न हो जाए. तभी तो मैं ने उन के सामने अंधविश्वासों की पोल खोलते हुए 33 करोड़ देवीदेवताओं को ललकारा और उन्हें कायर नाम दिया ताकि वे चिंतन करने लगें कि अगर देवता होते तो इस का तो कुछ बिगाड़ते जरूर, मगर होंगे तब न.

पुरुषों को चेताते हुए संदेशात्मक लहजे में महिलाओं से कहना जरूरी था कि मातृशक्तियो, अगर तुम्हारे मर्द शराब पीते हैं तो आप भी शराब पीनी शुरू कर दो. अगर तुम्हारे मर्द डंडे से तुम्हारी पिटाई करते हैं तो प्रतिक्रियावश तुम भी ऐसा ही करो. वे शराब पीनी बंद न करें तो उन्हें खाना मत दो. इतना कहना था कि महिलाएं एकस्वर में बोल पड़ीं कि ‘हां, अब ऐसा ही करना पड़ेगा,’ और आगे बैठे पुरुषों के दरम्यान शराब न पीने की खुसफुसाहट सुनाई दी.

सभा खत्म होने की ओर थी, एक वृद्धा बीच में खड़ी हो कर सवालिया अंदाज में बोली कि अजी, तुम्हारी सारी बातें तो ठीक हैं पर पूजापाठ छोड़ने वाली बात अच्छी न लगी. अध्यक्षीय भाषण समाप्त होने के बाद महिलाएं आपस में बतिया रहीं थी, ‘सब अपनेअपने घर जा कर डंडों से तेल लगा लियो…वरना शराब इन नासपीटों का नाश कर के मानेगी.’       

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