भारतीय सेना द्वारा कश्मीर में लाइन औफ कंट्रोल को पार कर सीमा पार चल रहे आतंकवादी ट्रेनिंग कैंपों पर हमले से देश में राहत महसूस की जा रही है कि देश पठानकोट व उरि की घटनाओं पर चुप न रहेगा. यह सर्जिकल स्ट्राइक आसान नहीं होती, क्योंकि इस में बहुत कम समय में शत्रु का सफाया करना होता है. सवाल अभी भी है कि क्या यह हमला पाकिस्तान को सबक सिखाएगा? 4 दिनों बाद बारामूला में 2 अक्तूबर को एक हमला कर आतंकवादियों ने सिद्ध भी कर दिया कि वे सर्जिकल स्ट्राइक से प्रभावित नहीं हैं.

पठानकोट व उरि में हुए आतंकी हमलों से लगता है कि इस देश में सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर है कि हथियारों से लैस सिर्फ 4 आतंकवादी टहलते हुए आर्मी कैंपों में घुस कर गोलीबारी कर सकते हैं. अपनी जान की चिंता न हो तो शायद हमारे सुरक्षा बल कुछ न करें. दोनों हमलों में इन आतंकवादियों को आक्रमण करने से पहले क्यों नहीं पकड़ा जा सका, हमारी सेनाएं व गुप्तचर एजेंसियां क्या सो रही थीं? आतंकियों के पास कई तरह के हथियार व बम थे जिन्हें सीमा पार करते समय छिपाना आसान नहीं था, फिर भी वे देश की सुरक्षा को धता बता गए.

ये शब्द सेना के खिलाफ होने के कारण कड़वे लग सकते हैं पर इसकी जिम्मेदारी सैनिक अफसरों और राजनीतिबाज नेताओं की है कि वे हर समय सतर्क रहने वाली सेना क्यों नहीं तैयार कर पा रहे हैं?

यह ठीक है कि धर्म के नाम पर जिस तरह दुनियाभर में आतंकवादी तैयार किए जा रहे हैं, वह बेहद खतरनाक है. डर है कि वह दिन भी न आ जाए जब कहीं आणविक हथियार से लैस आतंकियों का हमला हो जाए, क्योंकि जो खुद मरने को तैयार हों, वे कुछ भी कर सकते हैं.

ऐसे में देश की सरकार को कोसने या धमकियां देने या पड़ोसी सरकार पर तोहमत लगाने से लाभ नहीं. पाकिस्तान दोषी हो सकता है पर यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान की जनता खुद आतंकवादियों की शिकार है. वहां तो आएदिन हमले होते रहते हैं. 16 दिसंबर, 2014 को पाकिस्तान के पेशावर स्थित आर्मी स्कूल के बच्चों पर हुआ हमला तो वहां की सब से दर्दनाक घटना थी. पाकिस्तान की सेना क्या कर पाई थी उस का बदला लेने के लिए?

आतंकवादी ट्रेनिंग कैंप तो पाकिस्तान में हर तरफ बिखरे पड़े हैं और पहाड़ी इलाकों में पाकिस्तानी सेना चाहे, तो भी नहीं घुस सकती. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि श्रीलंका में भारतीय फौज तमिल टाइगर्स से निबट नहीं पाई थी और कई साल बाद श्रीलंका की सेना ही उन का सफाया कर पाई थी.

अफसोस यह है कि सर्जिकल स्ट्राइक और पठानकोट व उरि जैसी घटनाएं भारत व पाकिस्तान के संबंधों को सुधारने के राजनीतिक प्रयासों पर पानी फेर देती हैं. इस तरह की घटनाओं से 10-20 जिहादी शांति प्रयासों की रेल की पटरी उखाड़ फेंकते हैं. भारत और पाकिस्तान दोनों गरीब देश हैं, लड़ाई का आर्थिक बोझ नहीं सह सकते हैं और न अरबोंखरबों रुपए लड़ाई की तैयारी में लगा सकते हैं. दोनों देशों की प्राथमिकता धर्म या कश्मीर नहीं, गरीबी व भुखमरी को खत्म करना होनी चाहिए.

धर्मजनित आतंकवाद ने असल में रोटी छीन ली है, ईश्वरअल्लाह दे या न दे, अपनी सुरक्षा के लिए आम आदमी की रोटी छीन जरूर रहा है.

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