रेटिंग: डेढ़ स्टार
निर्माताः रितु आर्या व संध्या आर्या
निर्देशकः गगन पुरी
कलाकारः माही गिल,मुनरिषि चड्ढा,डौली अहलूवालिया, सुप्रिया शुक्ला
अवधिःदो घंटे दस मिनट
फिल्मकार गगनपुरी ने आधुनिक रिश्तों को तीस वर्ष पहले के दूरदर्शन व उस पर प्र्रसारित होने वाले कार्र्यक्रमों के साथ जोड़कर हास्य के साथ रिश्तों के ताने-बाने चित्रित करने जैसा बेहतरीन विषय चुना है.जहां अत्याधुनिक परिवार के सभी सदस्य,जो कि अश्लील साहित्य में डूबे रहते हैं,वह भी तीस वर्ष बाद कोमा से अपनी दादी के जागने पर खुद को उसी माहौल में ढ़ालते हैं.मगर कमजोर पटकथा के चलते वह एक बेहतरीन फिल्म बनाने से पूरी तरह चूक गए.
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कहानीः
यह कहानी सुनील (मनु ऋषि चड्ढा)के परिवार की है.सुनील की पत्नी प्रिया(माही गिल)उनसे अलग रहती है और तलाक लेना चाहती है.सुनील अपने किशोर वय के बेटे सनी (शार्दुल राणा)व बेटी के साथ रहते हैं.सनी को अपने पिता के मित्र व पड़ोसी(राजेश शर्मा)की बेटी ट्विंकल( महक मनवानी)से प्यार करता है.तो वहीं सनी अपने मित्र बंटी के साथ अश्लील साहित्य पढ़ता रहता है.सुनील की मां दर्शन कौर (डॉली अहलूवालिया) तीस साल से कोमा में हैं.एक दिन घर के अंदर सुनील की मां दर्शन कौर के कमरे में बैठकर बंटी,सनी को अश्लील कहानी पढ़कर सुनाता है.विमला की कहानी सुनकर तीस वर्षों से कोमा में पड़ी दादी दर्शन कौर (डॉली अहलूवालिया)कोमा से उठ खड़ी होती है.इतने वर्षों से कोमा में पड़ा रहने की जानकारी पाकर कोई सदमा ना लगे,इसके डर से उनका बेटा सुनील (मनु ऋषि चड्ढा) और उसकी पत्नी प्रिया (माही गिल) उनके इर्द-गिर्द 90 के दशक का माहौल बनाते हैं.सुनील का बेटा सनी व बेटी आपसी मतभेद भुलाकर दादी की सेवा में जुट जाते हैं.अपने कमरे में ज्यादातर समय बिताने वाली दादी अपने जमाने वाले दूरदर्शन लगाने की बात करती हैं. दादी एक एक करके चित्रहार से लेकर दूसरे कार्यक्रम देखने की फरमाइश करती हैं.सभी मिलकर दादी के लिए खुद शूटिंग करके उस जमाने के कार्यक्रम तैयार करते हैं. सिर्फ टीवी ही नहीं बल्कि उनके परिवार के लोगों को खुद को भी तीस वर्ष पहले के जमाने के अनुसार ढलना पड़ता है.परिणामतः पोते पोती घर के नौकर,तो सुनील और प्रिया स्कूल जाने वाले विद्यार्थी के रूप में पेश आते हैं,जिनकी जल्द शादी होने वाली है.पर एक दिन दादी के सामने सच आ ही जाता है.
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लेखन व निर्देशनः
फिल्मकार ने हास्यप्रद फिल्म के लिए एक बेहतरीन विषय को चुना,मगर वह इसके साथ न्याय नहीं कर पाए.जबकि वह इस विषय पर बेहतरीन फिल्म बना सकते थे.मगर फिल्म की शुरूआत अश्लील दृश्यों व अश्लील किताबों के साथ शुरू कर उन्होेने फिल्म को मटियामेट कर डाला.फिल्म की गति बहुत धीमी है,शायद उन्होने इसे नब्बे के दशक की फिल्म के रूप में धीमी गति प्रदान की है.वह रोचक किरदारों को भी सही ढंग से चित्रित नही कर पाए.फिल्मकार चाहते तो नब्बे के दशक के माहौल को और ज्यादा कॉमिक ढंग से दर्शा सकते थे.फिल्म में जितनी तेज तर्रार दादी हैं,उसे देखते हुए सुनील और प्रिया का स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थी के रूप में ख्ुाद को पेश करना गले से नहीं उतरता.फिल्म के कुछ दृश्य जरुर चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान लाते हैं.फिल्म का क्लायमेक्स तो बहुत ही ज्यादा गड़बड़ है.
अभिनयः
सुनील के किरदार में मनु ऋषि चड्ढा और उनके दोस्त के किरदार में राजेश शर्मा ने बेहतरीन अभिनय किया है.मां के लिए कुछ भी करने को तत्पर बेटे के रूप में मनु ऋषि चड्ढा काफी कन्विंसिंग लगे हैं. दादी के किरदार में डौली अहलूवालिया बेहद चार्मिंग नजर आयी.प्रिया के किरदार में माही गिल ठीक ठाक हैं.अन्य कलाकारों ने प्रभावित करने वाला अभिनय नहीं किया है.