अमेरिका ने साबित कर दिया है कि उस के हाथ अभी भी बहुत लंबे हैं और फिलहाल उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं है. चाहे उस का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इतना खब्ती क्यों न हो कि उस पर वहां की सांसद ने महाअभियोग का आरोप लगा रखा हो और मामला संसद में चल रहा हो. ट्रंप के आदेश पर अमेरिकी मानवरहित ड्रोन लड़ाकू हवाई जहाजों ने मिसाइलों से इराक की राजधानी बगदाद की सड़क पर जा रहे ईरान के आर्मी जनरल कासिम सुलेमानी की कारों का काफिला उड़ा दिया. जनरल कासिम सुलेमानी के जिस्म के परखच्चे उड़ गए.
अमेरिका इस से पहले ऐसा ही ओसामा बिन लादेन और अबू बकर अल बगदादी के साथ कर चुका है. अमेरिका की सत्ता को चुनौती देने वाला कोई बन नहीं सकता, ऐसा संदेश अमेरिका बिना हवन, पूजन, अल्पसंख्यकों पर बरस कर कर सकता है और साथसाथ पूरे सुबूत भी पेश कर सकता है.
ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद तालिबान की कमर टूट गई, पाकिस्तान की पोल खुल गई क्योंकि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में ही छिपा हुआ था.
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इसलामिक स्टेट का मुखिया अबू बकर अल बगदादी, जिस ने इराक और सीरिया के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था, को मार कर अमेरिका ने साबित कर दिया कि वह ऐसा लोकतांत्रिक देश है जो अपने अखबारों से तो डरता है पर मिसाइल रखने वालों से नहीं डरता.
जनरल कासिम सुलेमानी ने पिछले 20 सालों में ईरान की खुफिया सेना को चलाया था और उन के गुप्तचर इसराईल को नष्ट करने की मुहिम में जुटे थे. धार्मिक मतभेदों के चलते शिया मुसलिम देश ईरान की सुन्नी मुसलिम बहुल देश सऊदी अरब व कुछ अन्य अरब देशों से नहीं बनती है. अमेरिका का आरोप है कि जनरल सुलेमानी का खूंखारपन में बड़ा हाथ रहा था.
ईरान की क्रांति, जिस में शाह रजा पहलवी का तख्ता पलटा गया था, के बाद सेना में भरती हुए जनरल सुलेमानी ने धीरेधीरे अपनी ईमानदारी व बहादुरी से सेना का सर्वोच्च स्थान पा लिया था.
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यह युद्धबाजी, यह धार्मिक द्वंद्व, यह रेस और जाति का विवाद इंटरनैट, विज्ञान, तर्क, सुविधाओं के युग में उसी तरह चल रहा है जैसे पिछली 20-30 सदियों के दौरान चल रहा था. इंटरनैट से सोचा गया था कि विभाजन की ये लकीरें मिट जाएंगी पर धर्म के प्रचार का जोर इतना प्रभावी है कि उस ने इंटरनैट पर कब्जा कर लिया और उसे धर्मप्रचार के काम में लगा डाला. ईरान भी धर्म का खूब प्रयोग करता है.