बायोपिक फिल्म और वह भी क्रिकेटर की जिंदगी पर बायोपिक फिल्म बनाना आसान नहीं होता है. कुछ समय पहले मो. अजहरुद्दीन की बायोपिक फिल्म ‘अजहर’ का बाक्स ऑफिस पर जो हश्र हुआ था, वह किसी से छिपा नहीं है.
अब ‘ए वेडनेस्ड’, ‘बेबी’, ‘स्पेशल छब्बीस’ जैसी फिल्मों के सर्जक नीरज पांडे मशहूर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की बायोपिक फिल्म लेकर आए हैं. उन्होंने इस फिल्म की कथा को 2011 के विश्व कप क्रिकेट विजय पर जाकर खत्म कर दिया. जब एम एस धोनी का करियर सर्वोच्च शिखर पर था.
इस फिल्म में एम एस धोनी की निजी जिंदगी की प्रेमकथा को कुछ ज्यादा ही महत्व दिया गया है. फिल्म की लचर पटकथा, निर्देशकीय कमी और फिल्म की लंबाई फिल्म दर्शकों को बोर कर सकती है. मगर फिल्म के कैमरामैन के अलावा एडीटर बधाई के पात्र हैं. उन्होंने क्रिकेट के कुछ मशहूर मैचों में एडीटिंग टेबल पर बड़ी खूबसूरती से एम एस धोनी की जगह सुशांत सिंह राजपूत का चेहरा बैठा दिया है.
फिल्म के निर्देशक नीरज पांडे ने अपने इंटरव्यू में दावा किया था कि उन्होंने यह फिल्म किसी इंसान को अगरबत्ती दिखाने यानी कि धोनी को महिमा मंडित करने के लिए नहीं बनायी है, मगर पूरी फिल्म में वह यही करते नजर आए हैं. एम एस धोनी से जुड़े विवादों को उन्होंने नजरंदाज कर दिया है.
फिल्म ‘एम एस धोनीः द अनटोल्ड स्टोरी’ की शुरूआत रांची के अस्पताल में महेंद्र सिंह धोनी के जन्म से शुरू होती है. पहली बेटी के बाद बेटे के जन्म से पान सिंह धोनी (अनुपम खेर) काफी खुश होते हैं. पान सिंह एक स्टेडियम व उस क्षेत्र की रिहायषी कॉलोनी में पानी के वितरण करने वाले पंप रूम में नौकर हैं.
उनका बेटा महेंद्र पढ़ाई में कम फुटबॉल में ज्यादा दिलचस्पी लेता है. पर स्कूल की टीम में विकेट कीपर की जरुरत होने पर स्कूल के शिक्षक बनर्जी उसे विकेट कीपिंग करने के लिए तैयार करते हैं. उसके बाद महेंद्र की रूचि क्रिकेट की तरफ हो जाती है. पिता चाहते हैं कि उसे सरकारी नौकरी मिल जाए. मगर महेंद्र सिंह क्रिकेट खेलते रहते हैं.
माही की किस्मत साथ देती है और उन्हें रेलवे में टीसी की नौकरी मिल जाती है. पर वह ज्यादा समय तक नौकरी नही करते. नौकरी छोड़कर क्रिकेट में रम जाते हैं. पर एक ऑफर ऐसा आता है, जिससे माही की जिंदगी बदल जाती है.
वह रांची से दिल्ली पहुंच जाते हैं. फिर सफलता ही सफलता उनके कदम चूमती है. माही की जिंदगी में प्रियंका (दिशा पटनी) आती हैं, जो कि उन्हें हवाई जहाज में यात्रा करते हुए मिली थी. उनकी प्रेम कहानी आगे बढ़ती है. पर जब माही पाकिस्तान में क्रिकेट मैच खेलने जाते हैं, तभी एक कार दुर्घटना में प्रियंका की मौत हो जाती है. फिर माही की जिंदगी में साक्षी आ जाती है. साक्षी (कियारा अडवाणी) से शादी और विश्वकप जीत के साथ फिल्म खत्म हो जाती है.
माही ने छोटे व बड़े क्रिकेट के कई मैच होते हैं, उन सबको समेटने के चक्कर में कई जगह यह फिल्म डाक्यूमेंटरी लगने लगती है. निर्देशक की गलतियां गिनाने बैठा, तो पेज भर जाएंगे. इंटरवल के बाद फिल्म पर से निर्देशक की पकड़ धीमी पड़ जाती है, क्योंकि तब उनका ध्यान प्रेम कहानी पर ज्यादा हो जाता है. निर्देशक माही के संघर्ष को भी सही ढंग से उकेर नही पाए, बल्कि ऐसा लगता है कि माही को तो सारे अवसर मिलते जा रहे हैं. कोई न कोई शुभचिंतक हमेशा उन्हें आगे बढ़़कर कुछ न कुछ ऑफर दे रहा है. वैसे भी जिंदा इंसान पर फिल्म बनाना कठिन होता है. ऐसे में उस इंसान के काले पक्ष को फिल्म मे दिखाना असंभव हो जाता है. जबकि हर इंसान के कुछ स्याह पन्ने होते ही हैं. मगर निर्देशक ने सिर्फ अच्छी बातों पर ही जोर दिया है.
फिल्म का सकारात्मक पक्ष यह है कि फिल्म में माही के किरदार को अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने बहुत ही बेहतरीन तरीके से जीवंत किया है. सुशांत सिंह राजपूत के अभिनय की जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है. अनुपम खेर, कुमुद मिश्रा, राजेश शर्मा भी अपनी जगह ठीक हैं. फिल्म का संगीत भी ठीक है.
तीन घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ के निर्माता अरूण पांडे व फॉक्स स्टार स्टूडियो, निर्देशक नीरज पांडे, कहानी व पटकथा लेखक नीरज पांडे व दिलीप झा, कैमरामैन संतो थोडियाल, एडीटर श्री नारायण सिंह हैं.