मेघा और शशांक को वैवाहिक बंधन में बंधे 3 साल हो चुके थे. चूंकि कैरियर में सैटल होने के चलते दोनों का विवाह देर से हुआ था इसलिए दोनों चाहते थे कि जल्द ही दोनों की जिंदगी में एक हंसतेखिलखिलाते स्वस्थ शिशु का आगमन हो जो उन के जीवन को संपूर्णता दे सके. काफी प्रयासों के बाद भी जब मेघा गर्भवती नहीं हुई तो दोनों ने डाक्टरी जांच कराई जहां पता चला कि मेघा के गर्भाशय में संक्रमण है जिस के चलते वह कभी मां नहीं बन पाएगी. यह सुन कर मेघा व शशांक के मातापिता बनने के सपने पर मानो पानी फिर गया.

वे पूरी तरह निराश हो गए थे. तभी उन के एक दोस्त ने उन्हें बच्चे का सुख पाने के लिए सरोगेसी की सहायता लेने की सलाह दी. लेकिन मेघा और शशांक को शक था कि क्या सरोगेसी के जरिए जन्म लेने वाला बच्चा बायोलौजिकली उन दोनों का ही होगा या उस में सरोगेट मां का अंश होगा? डाक्टर ने उन्हें बताया कि सरोगेसी में सरोगेट मां की सिर्फ कोख होती है और जन्म लेने वाले बच्चे का डीएनए दंपती का ही होता है. तब जा कर दोनों को तसल्ली हुई और उन्होंने काफी दुरूह प्रक्रिया के बाद सरोगेसी क्लीनिक के जरिए सरोगेट मां यानी किराए की कोख का चुनाव किया.

9 महीने के लंबे इंतजार के बाद आखिर वह दिन आ ही गया कि जब वे अपने बच्चे को गले लगाने वाले थे. नर्सिंग होम के लेबररूम के बाहर बैठे दोनों के लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो रहा था. कुछ देर बाद आखिर वह घड़ी आ गई जिस का उन्हें इंतजार था. लेबररूम से बच्चे के रोने की आवाज सुन कर दोनों की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे. जैसे ही नर्स ने बाहर आ कर उस नन्ही सी जान को उन की गोद में दिया, उन्हें लगा मानो उन्होंने दुनियाभर की खुशियां पा ली हों. खुशी के अनमोल क्षण में वे उस सरोगेट मां को बारबार धन्यवाद कर रहे थे जिस ने 9 महीने उन के इस अंश को अपनी कोख में रख कर उन्हें यह खुशी दी थी. आज उन की गोद में जो नन्ही सी जान उन्हें मातापिता बनने की खुशी दे रही थी वह उस सरोगेट मां के प्रयासों की बदौलत संभव हो पाई थी. मेघा और शशांक की तरह सरोगेसी के माध्यम से हर साल हजारों दंपतियों की सूनी गोद भरती है और उन के जीवन में बच्चे की किलकारियां गूंजती हैं.

भ्रांति : सरोगेट मां और बच्चे के होने वाले पिता के बीच शारीरिक संबंध बनने से बच्चे का जन्म होता है और सरोगेट मां से जन्म लेने वाले बच्चे का संबंध होता है. लेकिन सरोगेसी के बारे में आम लोगों की यही धारणा है कि यह सिर्फ एक भ्रांति है और सर्वथा गलत है. सरोगेट एक्सपर्ट्स के मुताबिक, किसी महिला में गर्भधारण की संभावना न के बराबर होने पर सरोगेसी तकनीक अपनाई जाती है. इस में पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडाणु को ले कर इनक्यूबेटर में गर्भ जैसा माहौल दिया जाता है. भ्रूण तैयार होने पर उसे किसी तीसरी महिला में इंजैक्ट कर दिया जाता है और बायोलौजिकली सरोगेट मां से बच्चे का कोई संबंध नहीं होता है.

अगर भारत की बात की जाए तो अकेले भारत का सरोगेसी बाजार सालाना 13,400 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का है. भारत में जहां सरोगेसी का खर्च 10 लाख से 31 लाख रुपए है वहीं विदेश में यह खर्च 50-60 लाख रुपए से ज्यादा आता है. यही वजह है कि सरोगेसी के लिए विदेशी भारत का रुख करते हैं. भारत में शहर, अस्पताल व सरोगेसी से जुड़े लोगों की आर्थिक स्थिति के हिसाब से खर्च का आंकड़ा घटताबढ़ता रहता है.

सरोगेसी की प्रक्रिया

आईवीएफ यानी इनविट्रोफर्टिलाइजेशन में कृत्रिम या बाहरी वातावरण में फर्टिलाइजेशन यानी निषेचन होता है. यहां जीव के पलने की शुरुआत होती है. फिर भू्रण को कोख में पालने की प्रक्रिया अपनाई जाती है. स्त्री के अंडाणु प्राप्त करने के लिए स्त्री को दवाइयां दे कर अंडाशय में अंडाणु तैयार करने की कोशिश की जाती है. इस के बाद सोनोग्राफी द्वारा अंडाणुओं के विकास का निरीक्षण किया जाता है और एनेस्थिसिया दे कर स्त्री के अंडाणु प्राप्त किए जाते हैं और फिर पुरुष से प्राप्त शुक्राणुओं का लैब में मेल कराया जाता है. 2 से 5 दिनों में बने भू्रण को सरोगेट मां के गर्भाशय में दाखिल कराया जाता है.

इन स्थितियों में जरूरत होती है सरोगेसी की :

–       आईवीएफ उपचार फेल हो गया हो.

–       बारबार गर्भपात हो रहा हो.

–       भ्रूण आरोपण उपचार की विफलता के बाद.

–       गर्भ में कोई विकृति होने पर.

–       गर्भाशय या श्रोणि विकार होने पर.

–       दिल की खतरनाक बीमारियां होने पर. जिगर की बीमारी या उच्च रक्तचाप होने पर या उस स्थिति में जब गर्भावस्था के दौरान महिला को गंभीर हैल्थ प्रौब्लम होने का डर हो.

–       गर्भाशय के अभाव में.

–       यूट्रस के दुर्बल होने की स्थिति में.

सरोगेसी के प्रकार

जेस्टेशनल सरोगेसी : इस विधि में परखनली विधि से मातापिता के अंडाणु व शुक्राणु को मेल करवा कर भू्रण को सरोगेट मां के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इस में बच्चे का जैनेटिक संबंध मातापिता दोनों से होता है. इस पद्धति में सरोगेट मां को ओरलपिल्स दे कर अंडाणुविहीन चक्र में रखा जाता है ताकि बच्चा होने तक उस के अपने अंडाणु न बन सकें.

ट्रेडिशनल सरोगेसी : इस प्रकार में पिता के शुक्राणु को स्वस्थ महिला के अंडाणु के साथ प्राकृतिक रूप से निषेचित किया जाता है. शुक्राणुओं को सरोगेट मां के नैचुरल ओव्युलेशन के समय डाला जाता है. इस प्रकार में बच्चे का जैनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है.

कब हुई सरोगेसी की शुरुआत

अनौपचारिक तौर पर तो सरोगेसी दबेछिपे हर देश में होती आई है. ओल्ड टेस्टामैंट्स नाम की किताबों में ऐसा संकेत भी मिलता है कि यह यहूदी समाज में स्वीकृत था. हालांकि, यूरोपीय संस्कृतियों में सरोगसी होती थी लेकिन अतीत में इसे सामाजिक और कानूनी नियमों के तहत औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था. आस्ट्रेलिया में सरोगसी प्रक्रिया पिछले शताब्दी तक अनौपचारिक रूप से होती थी. आस्ट्रेलिया में पहले सरोगसी का मामला 1988 में आया था. इस प्रक्रिया द्वारा पैदा होने वाली पहली आईवीएफ बच्ची एलिस किर्कमान, मेलबर्न में 23 मई, 1988 को हुई थी. मार्च 1996 में आस्ट्रेलिया में सरोगेसी को कानूनी व्यवस्था में शामिल किया गया. उस समय एक महिला ने अपने भाई तथा भाभी के आनुवंशिक भ्रूण को अपनी कोख में उपजने दिया. इस मामले को आस्ट्रेलियन कैपिटल टेरिटोरी कानून के तहत आगे बढ़ने दिया गया. लेकिन इस बच्चे के पैदा होने के साथ मीडिया की दिलचस्पी और सरोगेसी से संबंधित मसले पर काफी हंगामा हुआ था.

सरोगेसी : भारतीय संदर्भ में

भारत में यह प्रक्रिया सस्ती रही है. इस वजह से इस का चलन यहां भी काफी पहले से है. मई 2008 के एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने इसे कमर्शियल तौर पर करने अनुमति दी थी जिस के चलते विदेशी इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए भारत में ज्यादा आने लगे. भारतीय सरकार ने 2008 में एक विधान प्रारूप पेश किया था जो आज ए आर टी रैग्युलेशन ड्राफ्ट बिल के रूप में है. फिलहाल यह बिल पास नहीं हुआ जबकि सरकार सरोगेसी से संबंधित एक नया विधयेक इसी साल लाई है.

सरोगेसी : नया कानून

भारत वैश्विक स्तर पर सरोगेसी का व्यावसायिक केंद्र बन चुका है. लेकिन सरोगेसी से जुड़े किसी कानून के अभाव में इस से जुड़े अनेक मुद्दों पर बहस चलती रहती है. अब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2016 को संसद में रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है जिस में अविवाहित जोड़ों, लिवइन में रहने वाले लोगों, बच्चे को अपनाने वाले अकेले महिला या पुरुष और समलैंगिकों द्वारा सरोगेसी के माध्यम से जन्मे बच्चे को अपनाने पर रोक का प्रस्ताव है. इस बिल को संसद के अगले सत्र में पेश किया जाएगा. इस के अंतर्गत एक राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड बनाया जाएगा और उस के नीचे राज्यों में बोर्ड होंगे. राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड के प्रमुख केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री होंगे और 3 महिला सांसद इस की सदस्य होंगी. 2 सांसद लोकसभा से होंगी और एक राज्यसभा से.

निजता का उल्लंघन

कहने को तो इस विधेयक में कोख को किराए पर देने वाली मां के अधिकारों की रक्षा और इस तरह के बच्चों के अभिभावकों को कानूनी मान्यता देने का प्रावधान है लेकिन सच यह है कि अब सरकारी कानूनों की आड़ में न सिर्फ निजता का उल्लंघन किया जाएगा बल्कि जरूरतमंद परिवारों, जिन्हें बिना किसी सरकारी अड़चन के सरोगेसी के जरिए बच्चा मिल जाता था, को सरकारी दफ्तरों में एडि़यां रगड़नी पड़ेंगी, रिश्वतें खिलानी पड़ेंगी और सरकारी बाबुओं के ऊटपटांग सवालों के जवाब देने होंगे.

पहले यह होता था कि जिसे बच्चे की जरूरत है और जो किराए पर कोख दे रहा है, आपसी यानी म्यूचुअल लैवल पर तय कर लेते थे कि कितने पैसे और किन परिस्थितियों में सरोगेसी को अंजाम देना है. इस क्रम में सरोगेसी विशेष एजेंसियों द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है. इन एजेंसियों को आर्ट क्लीनिक कहते हैं, जो इंडियन काउंसिल औफ मैडिकल रिसर्च की गाइडलाइंस के अनुसार काम करती हैं. सरोगेसी का एक एग्रीमैंट बनवाया जाता है. लेकिन अब सरकारी विधेयक के आने से मामला औफिसऔफिस सरीखा हो जाएगा. जिस प्रस्तावित बिल के बहाने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व्यावसायिक सरोगेसी को पूरी तरह प्रतिबंधित करने और परोपकारी सरोगेसी को नियमित करने का दावा कर रही हैं, शायद जानती नहीं हैं कि इस से पहले बने सरकारी विधेयक और कानून प्रक्रियाओं को न सिर्फ जटिल बनाते रहे हैं बल्कि आमजन को धक्के खाने पर मजबूर भी करते रहे हैं. भ्रष्टाचार की गंगोत्री भी इन्हीं सरकारी बिलों के संकरे रास्ते से गुजरती है.

देश का नुकसान

प्रस्तावित कानून के अनुसार, सरोगेसी के लिए दंपती की शादी को कम से कम 5 साल हो जाने चाहिए. अगर कोई दंपती 1 या 2 साल में ही बच्चा चाहता हो और मैडिकल जांच के जरिए उसे पता चल जाता है कि पत्नी गर्भधारण करने में सक्षम नहीं है तो क्या वे अधिकार नहीं रखते कि सरोगेसी के जरिए अभिभावक बन सकें. अब अगर तुषार कपूर ने शादी नहीं की है तो क्या वे सरोगेसी के जरिए एक बच्चे के पिता बन कर कुछ गलत कर रहे हैं? इस से भला देश या सरकार को क्या नुकसान हो सकता है?

विदेशी दंपतियों को सरोगेसी के लिए अनुमति न देना भी अतार्किक है. अगर विदेशी इस देश में किराए की कोख लेने आते हैं तो इसलिए कि यहां उन्हें इस प्रक्रिया पर कम धन खर्च करना पड़ता है, साथ ही, इस से मैडिकल टूरिज्म को बढ़ावा भी मिलता है. अगर विदेशी दंपती यहां से सरोगेसी नहीं करवाएंगे तो वे नेपाल, बंगलादेश जैसे किसी गरीब एशियाई देश का रुख कर लेंगे. इस से देश का ही आर्थिक नुकसान होगा.

सरोगेसी जरूरत है, शौक नहीं

केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज कहती हैं कि सरोगेसी को कुछ लोगों ने शौक बना लिया है. सैलिब्रिटीज के कितने ही ऐसे उदाहरण सामने हैं जिन के अपने 2-2 बच्चे हैं, बेटा और बेटी दोनों हैं, तब भी उन्होंने सरोगेट बच्चा किया है. सुषमा कहती हैं कि यह अनुमति जरूरत के लिए है, शौक के लिए नहीं. और न इसलिए कि पत्नी पीड़ा सहना नहीं चाहती, इसलिए चलो सरोगेट बच्चा कर लेते हैं.

यह तर्क  कुछ ऐसा ही है जैसे कोई महिला प्रसव पीड़ा से बचने या मैडिकल कौंप्लीकेशन से बचने के लिए सामान्य तरीके से डिलीवरी के बजाय सिजेरियन प्रक्रिया अपनाती है तो क्या सरकार उसे भी अनुचित मानेगी, कहेगी कि नहीं, आप शौकिया सिजेरियन करवा रहे हैं और मैडिकल सुविधाओं का फायदा उठा कर पीड़ा से बचना चाहते हैं. दरअसल, यह मामला नितांत निजी है और अपनी कोख को किराए पर देने के लिए भला किसी को क्यों सरकारी बाबुओं के दफ्तरों की धूल फांकनी पड़े? अगर सैलिब्रिटीज शौकिया यह काम करते भी हैं, तो वे तो प्लास्टिक सर्जरी से ले कर कौस्मेटिक सर्जरी तक सब करवाते हैं. क्या वह सब भी गलत है? उन का पैसा और उन की सहूलियत से सरकार को भला क्यों एतराज हो सकता है? इस प्रक्रिया में वे न तो किसी का नुकसान करते हैं और न ही किसी तरह का भ्रष्टाचार. वे ऐसा करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि उन के पास पैसे हैं और वे इस सुविधा का लाभ उठा कर खूबसूरत और फिट दिखना चाहते हैं. इसी तरह अगर वे सरोगेसी के जरिए मातापिता बनने का सुख हासिल करना चाहते हैं और अगर वे खर्च करते हैं तो एक तरह से वे सरोगेसी के बाजार में रोजगार पैदा करते हैं. अब जिन महिलाओं ने आमिर खान या शाहरुख खान के लिए सरोगेसी की होगी, उन्हें न सिर्फ अच्छा पैसा मिला होगा बल्कि उन के लिए मैडिकल सुविधाओं का भी खासा ध्यान रखा गया होगा.

परोपकार का दिखावा

एक तरफ सरकार परोपकारी सरोगेसी को नियमित करने का दावा करती है वहीं बिल में यह प्रावधान भी डाल दिया गया है कि किसी महिला को पूरी जिंदगी में सिर्फ एक बार सरोगेट मां बनने की इजाजत होगी. होना तो यह चाहिए था कि जब तक औरत शारीरिक तौर पर अपनी कोख किराए पर देने में सक्षम है, तो उसे रोका नहीं जाए.

वैसे भी, देश में सरोगेट मदर खोजना कोई आसान काम नहीं है. उस पर अगर जीवन में एक बार किराए पर कोख देने का नियम बनता है तो न जाने कितने जरूरतमंद लोग, जिन्हें बच्चे की ख्वाहिश है, खाली गोद ही रहने पर विवश होंगे. इसी तरह विधेयक में यह भी कहा गया है कि सरोगेसी से हुए बच्चे अपनाने वाले दंपती के लिए महिला की उम्र 23 से 50 वर्ष के बीच और पुरुष की उम्र 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए. यह मामला भी सरकारी दखलंदाजी का नहीं है और पूरी तरह से डोनर और उसे लेने वाले इंसान की शारीरिक व मैडिकल नियम के आधार पर होना चाहिए. यह काम विशेषज्ञों का है.

समलैंगिक व लिवइन वर्ग

क्या समलैंगिक देश या समाज का हिस्सा नहीं हैं? जब एक सिंगल पेरैंट बच्चे को पाल सकता है तो समलैंगिक इस अधिकार से वंचित क्यों हो? परिवार बनाना उन का भी मौलिक अधिकार है, उन्हें भी बच्चा रखने, मातापिता बनने का हक है और उन्हें यह अधिकार मिलना चाहिए. इसी तरह लिवइन रिलेशनशिप को जब कानूनी मान्यता है तो उन्हें एक परिवार क्यों नहीं माना जाए और उन्हें बच्चा पैदा करने की अनुमति क्यों न दी जाए?

अगर सरोगेसी विधेयक को नए नियमों के साथ संसद में मंजूरी मिल गई तो हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ेंगे. इतना ही नहीं, ऐसा करने से लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़ों या फिर समलैंगिकों के अधिकारों का भी हनन होगा.

समलैंगिक और लिवइन पार्टनर्स के लिए सरोगेसी को प्रतिबंधित किया जाना कहीं से सही नहीं है क्योंकि सेरोगेसी न केवल निसंतान दंपती, बल्कि समलैंगिक लोगों को भी मां या पिता बनने का सुखद एहसास कराने में मदद करती है.

सरोगेसी व्यावसायिक नहीं

अधिकांश दंपती के लिए सरोगेट मदर का चुनाव करते समय गोपनीयता सब से महत्त्वपूर्ण होती है, ऐसे में पारिवारिक सरोगेसी वाली बात गलत है. सरोगेसी पर प्रस्तावित नए कानून में प्रावधान है कि व्यावसायिक सरोगेसी हो ही नहीं सकती. कोई भी गरीब महिला पैसे कमाने के एवज में अपनी कोख को किराए पर देगी तो इसे गैरकानूनी माना जाएगा. सरकार के इस कदम के पीछे की मंशा गरीब व पिछड़े इलाकों की महिलाओं का शोषण रोकने की है. इसलिए किराए की कोख को तभी स्वीकृति मिलेगी जब इस का उद्देश्य परोपकार यानी किसी का भला करना हो. कोई महिला तभी अपनी कोख को किसी के लिए भरेगी जब उस में चिकित्सा व बीमा को छोड़ कर किसी भी तरह के पैसे का लेनदेन न हुआ हो. व्यावसायिक सरोगेसी के चलते कई बार डोनर महिला के स्वास्थ्य संबंधी हितों को अनदेखा किया जाता रहा है जिसे आगे चल कर शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

एक धारणा यह भी है कि विदेशी विदेश में सरोगेसी के लिए भारत की तुलना में बेहद मोटा खर्चते हैं. जबकि भारत में यही काम काफी सस्ता होता है. इस के अलावा गांवदेहात या आदिवासी इलाकों की कोख को किराए पर लेने की वजह यह भी रहती है कि वे मांस, मछली, शराब, सिगरेट आदि की आदी नहीं होतीं, इसलिए ऐसी महिला की कोख से स्वस्थ बच्चा पैदा होगा.

इस धारणा के चलते गरीब व जरूरतमंद महिलाओं को पैसों का लालच दे कर उन्हें अपनी कोख का सौदा, चिकित्सकीय सीमाओं को पार कर, बारबार करने के लिए मजबूर किया जाता है और इस व्यापार में शामिल फर्टिलिटी रिजर्व सैंटर्स के बिचौलिए विदेशियों से जितना पैसा लेते हैं उस का बेहद छोटा हिस्सा उन गरीब महिलाओं की झोली में गिरता है. सरकार के इस नए कानून से गरीब महिलाओं का शोषण होगा. लेकिन अगर सरकार गरीबों की कमाई का रास्ता पूरी तरह बंद करने के बजाय मैडिकल शर्तों, फर्टिलिटी व इस से जुड़े ऐग्रीमैंट्स आदि को पारदर्शी बना कर महिलाओं का शोषण होने से रोकती तो शायद इस से जरूरतमंद महिलाओं को खासी आर्थिक मदद मिलती.

सजा का प्रावधान

 देश में सरोगेसी से जुड़े कई मामलों में बच्चे के बीमार, अविकसित या लिंग के आधार पर उसे छोड़े जाने की भी घटनाएं हुई हैं. असल में कुछ साल पहले आस्ट्रेलियाई जोड़े ने एक सरोगेसी से मिले बच्चे को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था कि वह डाउन सिंड्रोम से पीडि़त था. इसी तरह दिल्ली में 2 साल पहले एक विदेशी जोड़ा सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को इसलिए छोड़ गया था कि उसे बेटी चाहिए थी. इस तरह के मामलों पर रोक लगाई जा सके, इस के लिए प्रस्तावित कानून में सरोगेसी से हुए बच्चे को छोड़ने पर आर्थिक दंड व 10 साल की सजा का प्रावधान रखा है.

बिल के मुताबिक, विदेशी नागरिकों को भारत में सरोगेसी कराने की अनुमति नहीं होगी. और अगर कोई दंपती सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को नहीं अपनाता, तो उन्हें 10 साल तक की जेल या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. अगर दंपती का कोई अपना बच्चा हो या फिर उन्होंने कोई बच्चा गोद ले रखा हो, तो उन्हें सरोगेसी की इजाजत नहीं होगी. सरोगेसी की अनुमति तभी दी जाएगी जब दंपती में से कोई भी पार्टनर बांझपन का शिकार हो, जिस के कारण दंपती अपना बच्चा पैदा नहीं कर सकते हों.

मेरा शरीर, मेरा अधिकार

तुषार कपूर अगर बिना शादी के बच्चा चाहते हैं और मैडिकल साइंस उपलब्ध करा रही है, तो  सरकार को क्या दिक्कत है? विधेयक की एक अन्य बात, कि शादी के 5 साल बाद ही सरोगेसी के लिए इजाजत होगी, इस का क्या आधार है? कोई दंपती जिसे विवाह के पहले ही साल पता चल गया कि वे मातापिता नहीं बन सकते तो वह 5 साल इंतजार क्यों करे? क्या यह कहा जा रहा है कि 5 साल तंत्रमंत्रजादूटोना आजमा लें, फिर सरोगेसी के बारे में सोचें?

सरोगेट मां, जो बच्चा अपने गर्भ में रखती है, अकेले ही रखती है. जो बीमारियां उसे प्रैग्नैंसी के दौरान होती हैं, वे भी वह अकेली ही झेलती है, लेबरपेन भी अकेली ही झेलती है, बच्चा भी अकेले ही पैदा करती है. फिर वह सरोगेट मां बने या न बने, इस का निर्णय सरकार क्यों ले? एक बेऔलाद को औलाद मिल सके, बच्चे की राह देख रहे सूने घर में किलकारी गूंजे, इस से अच्छा भला और क्या हो सकता है? सरोगेट मांएं किसी और के बच्चे को अपनी कोख में रखती हैं और फिर बेऔलाद मातापिता को उन का बच्चा दे देती हैं. इस नेक काम को करने का अधिकार महिला के पास ही होना चाहिए, न कि सरकार को इस मामले में अपनी टांग अड़ानी चाहिए.

कुल मिला कर एक औरत को अपने शरीर के साथ क्या करना है और क्या नहीं, यह अधिकार उसी के पास होना चाहिए. रही बात किराए की कोख के कारोबार को कमर्शियल किए जाने की, तो सरकारी बिल से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. बिचौलिए तब निजी एजेंट नहीं होंगे तो सरकारी बाबू हो जाएंगे. सरकारी दफ्तरों में क्या कम शोषण होता है? अब जो पैसे 2 लोग आपस में मिल कर तय कर लेते थे, सरकारी अड़चनों के चलते उस की हिस्सेदारी तो होगी ही, साथ में निजता का उल्लंघन होगा, सो अलग. आखिर सरकार अपने ही डंडे से हर काम क्यों करना चाहती है?                     

सरोगेसी के सहारे फिल्मी सितारे

–       बौलीवुड अभिनेता तुषार कपूर सरोगेसी के जरिए पिता बने हैं.

–       आमिर खान को पहली पत्नी से इरा और जुनैद हैं जबकि किरण राव से शादी के बाद उन्होंने सरोगेसी को चुना. आजाद सरोगेसी द्वारा हुई उन की संतान है.

–       गौरी खान और शाहरुख खान की तीसरी संतान अबराम भी सरोगेसी से हुआ है.

–       सोहेल और सीमा खान के बेटे योहाना भी सरोगेट की गई संतान है.

–       सतीश कौशिक ने अपने बेटे को खोने के बाद सरोगेसी का सहारा लिया. वंशिका उन की सरोगेसी के जरिए जन्म ली हुई बेटी है.

–       बौलीवुड डायरैक्टर और कोरियोग्राफर फराह खान और उन के पति शिरीष कुंद्रा ने मातापिता बनने के लिए आईवीएफ तकनीक का सहारा लिया और उन्हें 3 बच्चे हुए.

सरकारी चाबुक

–       अविवाहित जोड़े, एकल, लिवइन में रहने वाले और समलैंगिकों पर रोक.

–       अगर कोई दंपती सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को नहीं अपनाता है तो उन्हें 10 साल तक की कैद या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना.

–       कोई महिला एक ही बार सरोगेट मदर बन सकती है.

–       5 साल से शादीशुदा दंपती ही अपना सकते हैं यह तरीका.

–       23 से 50 साल तक पत्नी और 26 से 55 साल तक पति की उम्र होनी जरूरी है.

–       सरोगेसी क्लीनिकों को रखना होगा 25 साल का रिकौर्ड.

खास जानकारी

–       भारत में सरोगेसी में महाराष्ट्र अग्रणी है. इस के बाद गुजरात, आंध्र प्रदेश और दिल्ली के नंबर आते हैं. भारत में सरोगेसी के इच्छुक लोगों में बड़ी संख्या विदेशियों की रहती है.

–       व्यावसायिक सरोगेसी के लिए भारत को तरजीह दी जाती है. इस के बाद थाईलैंड और अमेरिका का नंबर आता है.

–       ला कमीशन के मुताबिक, सरोगेसी को ले कर विदेशी दंपतियों के लिए भारत एक पसंदीदा देश बन चुका है.

–       डिपार्टमैंट औफ हैल्थ रिसर्च को भेजे गए 2 स्वतंत्र अध्ययनों के मुताबिक, हर साल भारत में 2,000 विदेशी बच्चों का जन्म होता है, जिन की सरोगेट मां भारतीय होती हैं.

–       देशभर में करीब 3,000 क्लीनिक विदेशी सरोगेसी सर्विस मुहैया करा रहे हैं.

–       कमर्शियल सरोगेसी यूके,  आस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जरमनी, स्वीडन, न्यूजीलैंड, जापान और थाइलैंड में बैन है.

 नए नियम

–       सिर्फ निसंतान भारतीय दंपतियों को ही किराए की कोख के जरिए बच्चा हासिल करने की अनुमति होगी.

इस अधिकार का इस्तेमाल विवाह के 5 वर्ष बाद ही किया जा सकेगा.

–       एनआरआई और ओसीआई कार्ड धारक इस का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे.

–       अविवाहित युगल, एकल मातापिता, लिवइन में रह

रहे परिवार और समलैंगिक किराए की कोख से बच्चे हासिल नहीं कर सकते.

–       एक महिला अपने जीवनकाल में एक ही बार कोख किराए पर दे सकती है.

–       कोई दंपती सरोगेसी से जन्म लिए बच्चे को अपनाने से इनकार करता है या प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो 10 साल तक की कैद और 10 लाख रुपए जुर्माना लगेगा.

–       सरोगेसी क्लीनिक का रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य होगा.

(ललिता गोयल एवं राजेश कुमार)

सरकार के इस कदम से न जाने कितनी मांओं को खाली हाथ वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ेगा और साथ ही, कई जटिल कानूनी प्रक्रियाओं में उलझना पड़ेगा.

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