इस पर रंजन या ससुराल के किसी दूसरे सदस्य ने ऐतराज नहीं जताया तो यह उन का बड़प्पन ही था. संगीता के पति रंजन से कड़वे रिश्तों की बात जरा भी सतीश से छिपी नहीं रह गई थी. संगीता ने सतीश को जब यह बताया कि वह किस तरह पति को सबक सिखाना चाहती है तो वह अनमना हो उठा. एक अच्छे दोस्त की भूमिका निभाते हुए उस ने संगीता को ऊंचनीच समझाई, पर वह अपनी जिद पर अड़ी रही.
वह 22 दिसंबर का दिन था, जब संगीता दोनों बेटों सहित कार द्वारा कटनी से जबलपुर पहुंची. कार हमेशा की तरह ग्रोवर परिवार का भरोसेमंद ड्राइवर सूर्यप्रकाश पांडेय चला रहा था, जो मैडम के मिजाज को बेहतर समझने लगा था. जबलपुर में दाखिल होते ही संगीता ने ड्राइवर को समदडिया मौल चलने को कह कर यह बता दिया कि वह वहां मैटिनी शो देखेगी.
इसी बीच वह कुछ देर के लिए एक सहेली के साथ रुकी, फिर एक पुराने परिचित की दुकान पर कार रुकवा कर उस ने कुछ दवाइयां खरीदीं. समदडिया ग्रुप महाकौशल इलाके का जानामना नाम है. यह सिविक सैंटर में बना है, जो जबलपुर का अपने आप में एक लैंडमार्क हो गया है. सूर्यप्रकाश ने कार पार्किंग में खड़ी की तो संगीता दोनों बेटों के साथ मौल में चली गई.
सूर्यप्रकाश पांडेय के अंदाजे के मुताबिक संगीता को 5-6 बजे तक वापस आ जाना चाहिए था. लेकिन जब वह 7-8 बजे तक नहीं आई तो उसे चिंता होने लगी. शायद मैडम और बच्चे शौपिंग में लग गए होंगे, यह सोच कर उस ने और इंतजार करना ही मुनासिब समझा. उस ने रात 9 बजे तक इंतजार किया.
10 बजतेबजते सूर्यप्रकाश का सब्र टूटने लगा तो उस ने डरतेडरते संगीता के मोबाइल पर फोन किया तो वह स्विच औफ मिला. कुछ नहीं सूझा तो वह मालकिन को ढूंढने मौल में जा घुसा, पर काफी देर ढूंढने के बाद भी संगीता और बच्चे कहीं नहीं दिखे तो वह घबरा गया. कुछ सोच कर उस ने तय किया कि इस की खबर मैडम की मां सुषमा कोहली को प्रेमनगर स्थित उन के घर जा कर दी जाए.
ऐसा ही उस ने किया भी. बुजुर्ग सुषमा सब कुछ तो नहीं, काफी कुछ बेटीदामाद के संबंधों के बारे में जानती थीं. संगीता गायब है और उस का फोन भी बंद है, यह सोच कर ही वह किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठीं और तुरंत ओमती थाने पहुंच कर बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी. फोन पर यह खबर दामाद रंजन को भी उन्होंने दे दी. रंजन तुरंत कटनी से जबलपुर के लिए रवाना हो गए.
ओमती थानाप्रभारी अरविंद चौबे का माथा ठनका. क्योंकि मामला एक संभ्रांत करोड़पति परिवार की बहू और 2 बेटों के गायब होने का था, जिस में अपहरण की आशंका भी थी. वह तुरंत समदडिया मौल पहुंचे और किसी सुराग की उम्मीद में गार्डों से ले कर समदडिया मौल के मुलाजिमों से संगीता और उस के बच्चों के बाबत पूछताछ की.
लेकिन कोई खास बात हाथ नहीं लगी, सिवाय इस तसल्ली के कि उन का अपहरण नहीं हुआ है. क्योंकि जबलपुर जैसे बड़े शहर के व्यस्ततम इलाके के मौल से एक साथ 3 लोगों का अपहरण इतनी शांति से संपन्न हो जाना संभव नहीं था. सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि संगीता दोपहर 3 बजे के लगभग मौल के दूसरे दरवाजे से बाहर गई थीं.
पर वह है कहां, इस सवाल का जवाब ढूंढने की चुनौती अब पुलिस वालों के सामने थी. इधर जैसे ही मीडिया वालों को एक धनाढ्य परिवार की बहू के मौल से बगैर कुछ बताए लापता हो जाने की खबर मिली, संगीता और उस के गुमशुदा बेटों को ले कर खासा बवाल मच गया. तरहतरह के सवाल न्यूज चैनल्स पर पूछे जा रहे थे और आशंकाएं भी जताई जा रही थीं. दूसरे दिन के समाचार पत्र भी संगीता ग्रोवर की रहस्यमय गुमशुदगी से रंगे पड़े थे.
संगीता के मायके व ससुराल वालों ने भी उसे खोजना शुरू कर दिया था. परिचितों के अलावा संगीता की सभी सहेलियों से पूछताछ की गई, पर कोई भी उस के बारे में खास जानकारी नहीं दे सका.
दूसरे दिन दोपहर 12 बजे जा कर इस राज से परदा हटा, जब यह अफवाह उड़ी कि संगीता ग्रोवर ने खुदकुशी कर ली है. दरअसल लगभग 12 बजे दोपहर को एसपी कटनी को कोरियर द्वारा संगीता का 12 पृष्ठों का सुसाइड नोट मिला, जिस में विस्तार से संगीता ने अपने ससुर को संबोधित करते हुए अपनी व्यथा लिखी थी और पति रंजन ग्रोवर पर तरहतरह के गंभीर अरोप लगाए थे.
आमतौर पर इतना लंबा सुसाइड नोट कोई नहीं लिखता कि वह उपन्यास जैसा हो, इसलिए पुलिस वाले इस बात को ले कर निश्चिंत हो चुके थे कि संगीता ने बेटों सहित खुदकुशी नहीं की है. पर वह है कहां, यह जानना जरूरी हो चला था, जिस से जबलपुर कटनी में बढ़ते बवाल और सवालों की रफ्तार को रोका जा सके.
अपनी खोजबीन में पुलिस टीम जबलपुर के डुमना एयरपोर्ट गई और वहां के सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो संगीता दोनों बेटों सहित दिल्ली जाने वाली हवाई जहाज में सवार होती दिखी, साथ ही दिखा रंजन ग्रोवर का दोस्त या संगीता का प्रेमी सतीश कोटवानी. टिकिटों की खोजबीन की गई तो 2 अहम बातें ये पता चलीं कि टिकिट 15 दिसंबर को ही बुक करा लिए गए थे और संगीता नाम बदल कर सफर कर रही थी.
उस का टिकिट जसप्रीत कोटवानी के नाम से बुक था. बताने और छिपाने को अब कुछ खास नहीं रह गया था, सिवाय इस के कि संगीता पति के दोस्त या अपने प्रेमी सतीश कोटवानी के साथ अपनी मरजी से दिल्ली गई या भागी थी और इस की वजह भी उस ने विस्तार से अपने सुसाइड नोटनुमा पत्र में लिख दिया था.
संगीता का पकड़ा जाना जरूरी था, इसलिए एसपी एम.एस. सिकरवार की हिदायत पर टीआई अरविंद चौबे ने पुलिस की एक टीम तुरंत दिल्ली के लिए रवाना कर दी. संगीता के मोबाइल फोन की लोकेशन भी दिल्ली की ही मिल रही थी.
यह पुलिस टीम दिल्ली पहुंच भी नहीं पाई थी कि संगीता के मोबाइल फोन की लोकेशन गुजरात के भावनगर की मिलने लगी. पुलिस वाले कटनी के व्यापारियों के बढ़ते गुस्से के चलते परेशान थे, इसलिए खासतौर से उन्होंने संगीता और सतीश के मोबाइल ट्रेस किए हुए थे. दिल्ली के बजाए चारों भावनगर में हैं, यह जान कर पुलिस वालों को तुरंत समझ आ गया कि इतनी जल्दी ये लोग रेल या सड़क के रास्ते तो दिल्ली से भावनगर जा नहीं सकते, जाहिर है उन्होंने फिर हवाई यात्रा की है. नाकाम चालाकी दिखाते हुए संगीता और सतीश, दोनों ने अपने सिम बदल लिए थे. पर वे मोबाइल फोन पुराना ही इस्तेमाल कर रहे थे, इसलिए उन के ईएमआईई नंबरों के जरिए उन की लोकेशन आसानी से पकड़ में आ रही थी.
तीसरे दिन पुलिस टीम ने भावनगर जा कर एक फाइव स्टार होटल से इन लोगों को पकड़ लिया. यहां भी संगीता जसप्रीत कोटवानी के नाम से ही ठहरी थी. भावनगर से अलगअलग कारों से उन्हें जबलपुर लाया गया तो मामले की सनसनी खत्म हुई, जिस का सार यह था कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया. क्योंकि ऐसा तो आजकल बेहद आम हो चला है कि लड़कियां या बहुएं कभीकभार अपने यार के साथ भाग जाती हैं. जबलपुर आ कर संगीता ने ससुराल और पति के पास जाने से सख्ती से इनकार कर दिया तो उसे अपनी मां के पास भेज दिया गया. सतीश को उस के घर जाने दिया गया. दोनों बालिग थे और अपनीअपनी मरजी से गए थे, इसलिए उस पर किसी तरह का कोई आपराधिक कृत्य नहीं बनता था.
जबलपुर में भी संगीता अपने सुसाइड नोट वाले कथनों पर अड़ी रही, जो अब बयानों की शकल में दर्ज हुए कि उस का पति रंजन क्रूर और अय्याश है. पति से वह किस हद तक नफरत करने लगी थी, यह उस के लिखने में भी झलकता था कि उस के हाथों अंतिम संस्कार होना भी उसे गवारा नहीं. रंजन ने 5 बार उस का अबौरशन करवाया और कुछ दिनों पहले कान्हा किसली नेशनल पार्क में उसे शराब पी कर दोस्तों के साथ नाचने को मजबूर किया. अपने ससुर को संबोधित करते हुए उस ने यह भी लिखा था कि जब आप झूठे गवाह खड़े कर के हत्या के मामले से अपने भांजे को रिहा करवा सकते हैं तो बेटे की करतूत ढंकने के लिए क्या कुछ नहीं कर सकते. संगीता को डर था कि अगर वह कटनी या जबलपुर में आत्महत्या करती तो सच दुनिया के सामने नहीं आ पाता और यह सच उतना वीभत्स नहीं होता, जितना कि वह बताना चाह रही थी. पीनापिलाना आजकल आम बातें हैं. रही बात पतिपत्नी के बीच कलह की तो सिवाय बारबार गर्भपात कराए जाने के दूसरे आरोप बहुत ज्यादा गंभीर नहीं हैं.
रंजन ज्यादती और गलती कर रहा था, इस में कोई शक नहीं, पर वे कितनी गंभीर थीं, इस का फैसला अब अदालत में होगा, जहां काम भावुकता से नहीं, बल्कि गवाहों और सबूतों की बिना पर होता है. जबलपुर वापस आ कर जितना जहर पति के खिलाफ संगीता ने उगला, उस से ज्यादा अपने दोस्त सतीश की वकालत की. वह यह कहती रही कि सतीश की वजह से ही वह और उस के बेटे जिंदा बच पाए, नहीं तो उस ने खुदकुशी का इरादा कर लिया था. जाहिर है, उस की मुमकिन कोशिश यह है कि कोई उस की और सतीश की दोस्ती को गलत नजरिए से न देखे. उलट इस के पति की लड़कियों से दोस्ती को ले कर वह दुखी रहती थी तो यह दोहरापन नहीं तो और क्या है.