बेहिसाब पावर के नशे में एक आईएएस इस कदर बौराया कि उस ने अपनी पहली ही पोस्टिंग में घूस लेने की कोशिश शुरू कर दी. बिहार में अपनी पहली ही पोस्टिंग के दौरान 80 हजार रुपए घूस लेने के आरोप में आईएएस जितेंद्र गुप्ता दबोच लिया गया. साथ ही, उस के प्राइवेट ड्राइवर संजय तिवारी और हाउस गार्ड अशोक श्रीवास्तव को भी जेल भेज दिया गया. आईएएस जितेंद्र गुप्ता बिहार के कैमूर जिले के मोहनियां के एसडीओ के तौर पर तैनात था और 12 जुलाई, 2016 की रात साढ़े 9 बजे उसे उस के सरकारी क्वार्टर से गिरफ्तार किया गया. बिहार में घूसखोरी के मामले में किसी आईएएस को दबोचने और जेल भेजने की यह पहली घटना है.

निगरानी ब्यूरो के सूत्रों के मुताबिक, जितेंद्र गुप्ता गिरफ्तार होने के 10 दिन पहले से ही निगरानी ब्यूरो की रडार पर था. निगरानी महकमे के अफसर लगातार उस की हरकतों पर नजरें जमाए हुए थे. उस के मोबाइल फोन और लैंडलाइन फोन पर हो रही बातचीत रेकौर्ड की जा रही थी. उस की काल डिटेल को भी खंगाला जा रहा है. निगरानी इंस्पैक्टर के सामने ही जितेंद्र गुप्ता के ड्राइवर संजय तिवारी ने पैसे के लेनदेन की बात की थी. इंस्पैक्टर ने उस बातचीत को भी रेकौर्ड किया था. जितेंद्र गुप्ता के ड्राइवर संजय तिवारी हरियाणा के ट्रक ड्राइवर से हो रही बातचीत के बारे में उस से सहमति लेने के लिए बारबार कैंपस के अंदर जा रहा था.

ब्यूरो का दावा है कि इस आईएएस की गिरफ्तारी में तमाम नियमों का पालन किया गया है. उस के सरकारी क्वार्टर में घुसने से पहले हर तरह की कानूनी प्रक्रिया पूरी की गई, जिस से आईएएस के क्वार्टर में घुसने में काफी देरी भी हो गई थी. निगरानी ब्यूरो के जाल में फंसे एसडीओ की परेशानी और फजीहत बढ़ती ही जा रही है. समेकित चैकपोस्ट स्थित परिवहन दफ्तर से जुर्माना रसीद ले कर हिसाब नहीं देने के मामले में परिवहन विभाग ने भी उस के खिलाफ कागजी कार्यवाही शुरू कर दी है. जिला परिवहन पदाधिकारी शहनवाज अहमद नियाजी के मुताबिक, समेकित चैकपोस्ट और दफ्तर पर निगरानी ब्यूरो ने 16 मार्च, 2016 को छापा मारा था. 3 दिन बाद यानी 19 मार्च, 2016 को एसडीओ ने चैकपोस्ट पहुंच कर एक बंडल जुर्माना रसीद ली थी.

कई दिनों तक जब एसडीओ ने रसीद के बारे में हिसाबकिताब नहीं दिया, तो अप्रैल में इस के बारे में चिट्ठी लिखी गई. उस के बाद उस ने चिट्ठी के जरीए सूचना दी कि रसीद और उस का हिसाब वह जल्द दे देगा. उस के 3 महीने गुजर जाने के बाद भी महकमे को रसीद और उस का हिसाब नहीं मिल सका. 20 जुलाई, 2016 को जितेंद्र गुप्ता को सस्पैंड कर दिया गया. प्रशासन विभाग ने इस की अधिसूचना जारी की. 15 अगस्त, 1982 को जनमे बिहार कैडर के 2013 बैच के आईएएस डाक्टर जितेंद्र गुप्ता को निगरानी ब्यूरो की टीम ने एक ट्रक ड्राइवर से 80 हजार रुपए घूस लेते हुए दबोचा था. सस्पैंड किए जाने के बाद अब उसे केवल जीवनभर गुजारा भत्ता ही मिलेगा. निगरानी महकमे के महानिदेशक रवींद्र कुमार ने साफ कहा कि उसे घूसखोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया है.

जितेंद्र गुप्ता की गिरफ्तारी की खबर फैलते ही आईएएस लौबी पूरे तैश में आ गई. 13 जुलाई, 2016 को जितेंद्र गुप्ता की गिरफ्तारी के बाद 3-4 दिनों तक सत्ता के गलियारों और आईएएस लौबी में हाई वोल्टेज ड्रामा चलता रहा. निगरानी ब्यूरो पर भरपूर दबाव बनाया गया.

बिहार आईएएस एसोसिएशन के सचिव विवेक कुमार सिंह और दीपक कुमार सिंह निगरानी ब्यूरो के दफ्तर पहुंचे और महानिदेशक से देर तक बात की. उस के बाद एसोसिएशन के पदाधिकारियों और सदस्यों की लंबी बैठक चली, जिस में जितेंद्र गुप्ता की गिरफ्तारी का विरोध किया गया.

एसोसिएशन ने अपने अफसर को बचाने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक से भी मुलाकात की, पर बात नहीं बन सकी. आईएएस लौबी इस बात से खफा थी कि जितेंद्र गुप्ता को घूस लेते रंगे हाथ नहीं पकड़ा गया है, तो फिर उन्हें जेल क्यों भेजा गया है? वह सुबूत मिटाने की कोशिश भी नहीं कर रहे थे? उन्हें बगैर किसी सुबूत के क्यों गिरफ्तार किया गया?

वहीं निगरानी ब्यूरो का कहना है कि मोहनियां में ओवरलोडिंग के आरोप में जिन 4 ट्रकों को 3 जुलाई, 2016 को रोक कर रखा गया था, उन ट्रकों के कागजात जितेंद्र के सरकारी क्वार्टर में लगी उन की गाड़ी से बरामद किए गए हैं.

जब ट्रक को जब्त किया गया, तो उस के कागजात को एसडीओ ने 10 दिनों तक अपने पास क्यों रखा? उस की सीजर लिस्ट क्यों नहीं बनवाई गई? सीजर लिस्ट की एक कौपी ट्रक ड्राइवर और दूसरी कौपी लोकल थाने में क्यों नहीं भेजी गई? नैशनल हाईवे पर ओवरलोडेड ट्रकों की जांच के दौरान एसडीओ ने डीटीओ और एमवीआई टीम को साथ क्यों नहीं लिया? ट्रक को जब्त करने के 10 दिन बीत गए, पर उस पर कोई जुर्माना क्यों नहीं लगाया गया?

उन्हीं चारों ट्रकों को छोड़ने के लिए उन्हें 80 हजार रुपए की घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, वहीं जितेंद्र गुप्ता बारबार यही रट लगा रहा था कि केवल आरोप लगाने से ही कोई गुनाहगार नहीं हो जाता है. निगरानी ब्यूरो के सूत्रों की मानें, तो जितेंद्र गुप्ता के ड्राइवर संजय तिवारी ने पूछताछ के दौरान कई राज उगल दिए हैं, जिस से उस की मुश्किलें बढ़नी तय हैं. ड्राइवर संजय तिवारी ने बयान दिया है कि वह एसडीओ के इशारे पर ही ट्रक ड्राइवर से लेनदेन की बात कर रहा था. गौरतलब है कि संजय तिवारी सरकारी ड्राइवर नहीं है.

डाक्टर जितेंद्र गुप्ता को दिसंबर, 2015 में मोहनियां का एसडीओ बनाया गया था. उस पर घूस लेने के आरोप में आईपीसी की धारा 8, 7, 10 और भ्रष्टाचार निवारण निरोध अधिनियम की धारा-13(2) और 1(डी) के तहत कार्यवाही की गई है.

वहीं आईएएस ने अपने मातहत काम करने वाले एसपी पर उसे फंसाने का आरोप लगा कर मामले को घुमाने की पुरजोर कोशिश की है. जितेंद्र गुप्ता ने अपनी जमानत अर्जी में कहा है कि उस ने कैमूर के एसपी को एक चिट्ठी भेजी थी, जिस में कहा गया था कि एनएच पर ट्रकों और उस के कागजातों की जांच का हक पुलिस का नहीं है. इसी से एसपी ने ट्रक ड्राइवरों के साथ साजिश रच कर उसे फंसाने की कोशिश की है. इस के बारे में जब एसपी हरप्रीत कौर से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि इस मामले से उन का कोई लेनादेना नहीं है. एसडीओ ने निगरानी ब्यूरो को क्या कहा है, इसे निगरानी ब्यूरो देखेगा और आगे का काम करेगा.              

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