आज भी बिहार और झारखंड के कई इलाकों में आटो रिक्शा, बस और टैक्सी जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं है. कहीं जाना है तो टमटम या बैलगाड़़ी की सवारी कीजिए या फिर पैदल ही चलिए. कहीं जल्दीबाजी में जाना हो तो कोई उपाय नहीं है. गांवों और कस्बों में टमटम और बैलगाड़ी से नजात दिला रही है एक गाड़ी. जिसे कहा जाता है जुगाड़ गाड़ी. जिसे प्यार से पटपटवा, छड़छड़वा, फटफटिवा, खरखरवा, ठेलवागाड़ी और न जाने क्या-क्या नाम से पुकारा जाता है, लेकिन वह जुगाड़ गाड़ी के नाम से ही फेमस है.

सरकारी कानूनों के चेहरे पर काला धुंआ उड़ाती यह जुगाड़ गाड़ी बेरोक-टोक धड़ल्ले से बिहार और झारखंड की सड़कों पर फर्राटे भर रही है. छोटे इलाकों से निकल कर अब यह पटना और रांची की सड़कों पर भी बेखौफ होकर दौड़ लगा रही है. सीमेंट, ईंट, बांस, लोहा का सरिया, टेंट-पंडाल का समान समेत किसी भी तरह की माल ढुलाई के लिए भी इस गाड़ी का जम कर इस्तेमाल होने लगा है.

बिहार की राजधानी पटना में में प्रशासन और ट्रैफिक पुलिस के नाक के नीचे सामान ढोने के लिए जुगाड़ गाड़ी का जम कर इस्तेमाल हो रहा है. ट्रैफिक पुलिस जुगाड़ गाड़ी को गैरकानूनी करार दे चुकी है और कई जुगाड़ गाड़ी को पकड़ कर थानों में लगा दिया गया है. इसे न तो ट्रांसपोर्ट महकमे से रजिस्ट्रेशन कराया जाता है न ही गाड़ी को कोई नंबर होता है और तो और उसे चलाने वाले ड्राइवर के पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं होता है. तिपहिया ठेला गाड़ी चलाने वाले ही उसे फर्राटे से सड़कों पर दौड़ा रहे हैं और उस पर सवार लोगों की जान हलक में अटकी रहती है. ‘अनारकली लद के चली’ के नारे पर अमल करती यह गाड़ी कानून को ठेंगा दिखाते हुए धड़ल्ले से सड़कों पर दौड़ रही है. बिहार के गांव-देहात के इलाकों में तो तेज सवारी का दूसरा नाम बन गया है जुगाड़ गाड़ी.

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