Hindi Kahani : नारायण-नारायण… नारदमुनि रोहरा नंद के साथ आकाश मार्ग में भ्रमण कर रहे हैं उन्होंने सुखद,शीतल वायुप्रवाह के आनंदतिरेक में कहा,- भारत भूमि में बाबाओं द्वारा- भोले-भाले लोगों को ठगा जा रहा है! बड़ा अनर्थ हो रहा है.
रोहरानंद ने आकाश से नीचे, धरा की और उचटती निगाह डाल हाथ जोड़कर कहा,-मुनिवर ! कम से कम आप तो ऐसा न कहें! यह सब आपके मुंह से शोभा नहीं देता.
नारदमुनि के चेहरे पर वक्र भाव उदित हुआ,- भला क्यों ? क्या हम सच न कहें, सिर्फ गेरुआ वस्त्र पहन लेने के कारण हम ऐसे ढोंगियों के तरफदार बन जाएं हिमायत करें .
मुनिवर ! यह कलयुग है, ऐसा तो चलता रहेगा.अब पावन पवित्र बाबाजी कहां मिलेंगे, मैं तो कहता हूं कम से कम ऐसे बाबा भी हैं तो सही, यही क्या कम बड़ी उपलब्धि है.
नारदमुनि- (वीणा के तार झंकृत करते हुए ) अर्थात…
रोहरानंद- ( हाथ जोड़कर )हे देवर्षि! कलयुग में सौ फ़ीसदी खरे बाबा कहां से आएंगे, चहूं और लूट और षडयंत्र फैला हुआ है. हर आदमी खून के आंसू रो रहा है, व्यवस्था ही ऐसी है. ऐसे में मैं तो कहता हूं, कोई आदमी अगर काला चोर है, डाकू है और गेरुए वस्त्र धारण कर या रुद्राक्ष कंठी माला पहन कर, स्वयंभू बाबा और भगवान की डीलरशिप लेकर बैठा हुआ है तो वह प्राणाम्य है.
नारदमुनि- तुम से बुद्धिजीवी से यह उम्मीद हमें नहीं थी, तुम अगर ऐसे ढोंगी और ठग बाबाओं के पक्षधर बन जाओगे तो इसका संदेश देश में अच्छा नहीं जाएगा. कम से कम तुम जैसे लोगों को, सदैव बुरे लोगों का, विरोध करते रहना चाहिए.
रोहरानंद- मुनिवर विरोध करने से क्या होगा. अपनी ताकत हमें विध्वंस में नहीं निर्माण में खर्च करनी चाहिए.
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नारदमुनि- देखो ! साध्य और साधन हमेशा निर्विवाद होने चाहिए.मैं इन बाबाओं की करतूत देख कर दंग हूं, दाढ़ी बढा ली, ऊंची ऊंची बातें कर रहे हैं और लोगों से दोनो हाथों से माया (रुपए) लिए जा रहे हैं ,इन्हें शर्म नहीं आती…
रोहरानंद-( हाथ जोड़कर ) देवर्षि! आप क्यों अपना खून जला रहे हैं .आकाश मार्ग से देशभर में भ्रमण करते हुए क्या इन बाबाओं के दर्शन करने निकले हैं, छोड़िए इन्हें… मुझे तो लगता है यह सब सौतिया दाह का मामला है.
नारदमुनि- नारायण नारायण. यह तुम क्या कह रहे हो…
रोहरानंद- मुनिवर ! आप अन्यथा न लें, मगर मुझे शंका तो है.
नारदमुनि- नारायण नारायण, इस देश में क्या सच बोलना भी गुनाह है. अगर मैं स्वर्गलोक से आया हूं, ज्ञानी हूं तो, सच तो कहूंगा.मुझे कैसा लार-फांस. न उधो का लेना, न माधो का देना. तो मैं तो सच कहूंगा जो, मैं देखूगा… कहूंगा. अगर इसके बाद भी मुझ पर आक्षेप लगते हैं तो लगाओ, मैं झेलूंगा. मुझ पर तुमने सौतिया दाह का आरोप मढ़ा है…
रोहरानंद- ( करुण भाव से ) मुनिवर क्षमा करें .मैं तो ऐसा हास्य बोध अर्थात ह्यूमर के तहत कह रहा था.
नारदमुनि-( कुद्र स्वर में ) यह इस राष्ट्र की तासीर बन गई है. जब कोई सच बात कहता है तो उसे झूठा सिद्ध किया जाता है और कोई झूठ फरेब करता है तो आंखें मूंद ली जाती है.
रोहरानंद- मुनिवर… यह धर्म का मामला है. इस संदर्भ में कोई कुछ नहीं कहेगा. अगर मैंने साधु-संत का वेश धारण कर लिया तो समझो मेरी पौ बारह हो गई .मैं रात दिन हाथ-पैर की सेवा करवाऊंगा. सुबह-शाम देसी घी का माल पुआ खाऊंगा. धनी मानी क्या, देश के प्रधानमंत्री और क्या राष्ट्रपति मेरी चरण वंदना करेंगे. मुझे और क्या चाहिए.
नारदमुनि- मगर इतनी समझ तो होनी चाहिए की आप समझ सको की सही क्या है और गलत क्या है.
रोहरानंद- मुनिवर! इतनी बुद्धि तो यहां किसी में नहीं है .यहां तो सिर्फ श्रद्धा और विश्वास का मामला है. लोगों के हुजूम ने अगर आपको स्वीकार कर लिया तो आप नारदमुनि हैं, देवर्षी हैं और अगर नहीं माना तो आपकी खैर नहीं.
नारदमुनि- क्या अभिप्राय है. क्या हमें डरा रहे हो…
रोहरानंद- मुनिवर ! यह डराने की बात नहीं हकीकत है.
नारदमुनि- यह कैसा देश है भाई .
रोहरानंद- मुनिवर… यहां चेहरा देखकर श्रद्धा भक्ति उमड़ती है और हवा का रुख देखकर काफूर भी हो जाती है.
नारदमुनि- नारायण नारायण… अजीब देश है अजीब.
रोहरानंद- मुनिवर यह स्वीधान राष्ट है. हर एक स्वाधीनता की आनंद उठा रहा है । कोई बोलने वाला नहीं…
नारदमुनि- अर्थात समय की मार सबसे बड़ी मार है.
रोहरानंद-( हाथ जोड़कर ) मुनिवर! आप सही कह रहे हैं, इस देश में समय से बड़ा कोई नहीं है. समय राजा को धन कमाना देता है और समय ही राजा को रंक.