जमीन और मौजूदा साधनों के मुताबिक अलगअलग इलाकों में अलगअलग खेती हो सकती है, लेकिन यह जरूर तय हो जाता है कि किस महीने में किसान कौन सी फसल की पैदावार करें. इस का तरीका यदि तकनीकी ज्ञान, उचित देखरेख व प्रबंधन वाला भी हो, तो बेहतर उपज पाई जा सकती है. सितंबर का महीना खेतीबाड़ी के लिहाज से खास माना जाता है. इस में कुछ बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए.

धान : धान में नाइट्रोजन की दूसरी व आखिरी टाप ड्रेसिंग बाली बनने की शुरुआती स्थिति (रोपाई के 50-55 दिनों बाद) में ज्यादा उपज वाली प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम (65 किलोग्राम यूरिया) व सुगंधित प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम (33 किलोग्राम यूरिया) की दर से करें. खेत में टाप ड्रेसिंग करते समय 2-3 सेंटीमीटर से अधिक पानी नहीं होना चाहिए. धान में बालियां फूटने व फूल निकलने के समय सही नमी बनाए रखने के लिए जरूरत के अनुसार सिंचाई करें.

तना छेदन की रोकथाम के लिए ट्राइकोग्रामा नाम के परजीवी को 8-10 दिनों के अंतर पर छोड़ना चाहिए या प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम कार्बोफ्यूरान दवा का इस्तेमाल करें. इस के अलावा क्लोरापायरीफास 20 ईसी 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.

धान के भूरे फुदके से बचाव के लिए खेत से पानी निकाल दें. नीम आयल 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. जीवाणुधारी रोग व जीवाणु झुलसा रोग की रोकथाम के लिए पानी निकाल दें. नाइट्रोजन की टाप ड्रैसिंग बंद कर दें.

एग्रीमाइसीन 100 का 75 ग्राम या स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 15 ग्राम व 500 ग्राम कौपर आक्सीक्लोराइड को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव करें. भूरा धब्बा रोग की रोकथाम के लिए जिंक मैगनीज कार्बामेट 75 फीसदी 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

मक्का : मक्का में ज्यादा बरसात होने पर पानी के निकलने का इंतजाम करें. फसल में नर मंजरी निकलने की अवस्था व दाने की दूधियावस्था सिंचाई के लिहाज से खास है. यदि बारिश न हुई हो या खेत में नमी की कमी हो, तो किसानों को सिंचाई कर देनी चाहिए.

ज्वार : किसानों को ज्वार से उपज लेने के लिए बारिश न होने पर नमी की कमी होने पर बाली निकलने के समय और दाने भरते समय सिंचाई कर देनी चाहिए. ज्वार में अर्गट व शर्करीय रोग हो जाते हैं. इन की रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए. थीरम का 0.15 फीसदी घोल बना कर फूल आने के समय से 7 से 10 दिनों के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव कर देना चाहिए. दूसरे छिड़काव के दौरान उक्त दवा के साथ 0.1 फीसदी कार्बरिल नामक कीटनाशी को मिला देना चाहिए.

बाजरा : बाजरे की उन्नत व संकर प्रजातियों में नाइट्रोजन की बाकी आधी मात्रा यानी 40-50 किलोग्राम (87-107 किलोग्राम यूरिया) की टाप ड्रेसिंग बोआई के 25 से 30 दिनों बाद कर देनी चाहिए.

मूंग/उड़द : इस की उन्नत फसल के लिए खेत का सही रहना बहुत जरूरी है. यदि बारिश कम होती है, तो किसानों को कलियां बनते समय पर्याप्त नमी को बनाए रखने के लिए सिंचाई करनी चाहिए. फलीछेदक कीट की सूडि़यां जो फली के अंदर छेद कर के दानों को खाती हैं, की रोकथाम के लिए निबौली का 5 फीसदी या क्यूनालफास 25 ईसी  की 1.25 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

सोयाबीन : इस फसल की बेहतर उपज के लिए बारिश न होने पर किसान फूल व फली बनते समय सिंचाई करें. सोयाबीन में पीला मोजैक नामक बीमारी हो जाती है. इस की रोकथाम के लिए पौधों की सही जांचपड़ताल कर लें. ज्यादा प्रभावित हुए पौधों को निकाल दें, जबकि कम प्रभावित पौधों पर डाईमिथोएट 30 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए.

गन्ना : किसानों को इस महीने उन गन्नों को बांधने का काम करना चाहिए जिन की अच्छी पैदावार हो. पहले कतार के अंदर ही सवा से डेढ़ मीटर की ऊंचाई पर गन्ने को उस के पत्तों से बांध दें. आगे चल कर एक कतार के गन्ने को दूसरी कतार के गन्ने से बांध देना चाहिए. ऐसे में यह ध्यान रखना चाहिए कि बांधते समय ऊपर की पत्तियां न टूटें. पायरिला रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फेमिडान 300-400 मिलीलीटर या मिथाइला ओ डिमेटान 1.5 लीटर का 1000 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. गन्ने में गुरदासपुर बोरर  व शीर्ष बेधक यानी टाप बोरर की रोकथाम के लिए डायमिथोएट की प्रति हेक्टेयर 1.5 लीटर मात्रा का 800-1000 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

तोरिया : इस की बोआई के लिए सितंबर का दूसरा पखवाड़ा सब से अच्छा माना जाता है. टा 9, भवानी, पीटी 30 व पीटी 507 तोरिया की अच्छी प्रजातियां मानी जाती हैं. प्रति हेक्टेयर बोआई के लिए 4 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. बोआई के लिए किसानों को

हमेशा उपचारित बीजों का इस्तेमाल ही करना चाहिए. तोरिया की बोआई 30×10 सेंटीमीटर पर, 3 से 4 सेंटीमीटर गहरे कूड़ों में करनी चाहिए. उर्वरकों का इस्तेमाल जमीन के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए. यदि जमीन परीक्षण न हो, तो सिंचित दशा में बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फेट व 50 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए. असिंचित दशा में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फेट व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. फास्फोरस तत्त्व के लिए सिंगल सुपर फास्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए. यदि सिंगल सुपर फास्फेट मौजूद न हो तो प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम गंधक का इस्तेमाल करना चाहिए.

सब्जियों की खेती : इस महीने टमाटर व गांठगोभी के बीजों की बोआई नर्सरी में करनी चाहिए. पत्तागोभी की अगेती किस्मों जैसे पूसा हाईब्रिड 2 गोल्डनएकर की बोआई 15 सितंबर तक और मध्यम व पछेती किस्मों जैसे पूसा ड्रमहेड, संकर क्विस्टो की बोआई 15 सितंबर  के बाद शुरू करनी चाहिए. शिमला मिर्च में रोपाई के समय प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फेट व 60 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए. पत्तागोभी की रोपाई इस महीने के आखिरी हफ्ते से शुरू करनी चाहिए. पत्तागोभी की रोपाई से पहले 200-250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद या 80 क्विंटल नाडेप कंपोस्ट मिला दें और रोपाई के समय 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फेट व 60 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करें. टमाटर में कम बढ़ने वाली प्रजातियों के लिए रोपाई की दूरी 60×60 सेंटीमीटर और ज्यादा बढ़ने वाली प्रजातियों में दूरी 80×60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. टमाटर की रोपाई के समय प्रति हेक्टेयर 250-300 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या 70-80 क्विंटल नाडेप कंपोस्ट के साथ 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फेट, 60-80 किलोग्राम पोटाश व जिंक व बोरान की कमी होने पर 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट व 8-10 किलोग्राम बोरैक्स का इस्तेमाल होना चाहिए. मध्यवर्गीय फूलगोभी जैसे इंप्रूव्ड जापानी, पूसा दीपाली, पूसा कार्तिकी की रोपाई के लिए पूरा महीना ही सही है. प्याज की रोपाई के 30 दिनों बाद खरपतवार निकाल कर प्रति हेक्टेयर 35 किलोग्राम नाइट्रोजन यानी 76 किलोग्राम यूरिया की टाप ड्रेसिंग कर दी जाए तो बेहतर होता है.

रोपाई के 45 दिनों बाद प्रति हेक्टेयर बैगन में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, मिर्च में 35-40 किलोग्राम नाइट्रोजन व फूलगोभी में 40 किलोग्राम नाइट्रोजन की दूसरी व आखिरी टाप ड्रेसिंग कर दें तो अच्छा है. बैगन में तना व फल छेदक बीमारी की रोकथाम के लिए बीमार भाग को तोड़ कर अलग कर दें.

नीम गिरी 4 फीसदी का छिड़काव 10 दिनों के अंतर पर करना चाहिए. मूली की एशियाई किस्मों जैसे जापानी हाइट, पूसा चेतकी, हिसार मूली नं. 1, कल्याणपुर 1 की बोआई इस महीने शुरू की जा सकती है. मूली के लिए प्रति हेक्टेयर 6-8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.

मेथी की अगेती फसल के लिए 15 सितंबर से बोआई की जा सकती है. इस के लिए प्रति हेक्टेयर 15-30 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. बारिश खत्म होते ही इस महीने हरी पत्ती के लिए धनिया की प्रजाति पंत हरीतिमा व आजाद धनिया 1 की बोआई शुरू कर सकते हैं. अगेती बोआई के लिए आलू की कुफरी अशोका व कुफरी चंद्रमुखी किस्में भी अच्छी हैं. इन की बोआई 25 सितंबर  से किसानों को शुरू कर देनी चाहिए.

बागबानी : लीची के 1 साल के पौधों के लिए 5 किलोग्राम गोबर/कंपोस्ट खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फास्फेट व 50 ग्राम पोटाश और 10 साल या उस से ज्यादा उम्र के पेड़ों के लिए 50 किलोग्राम गोबर/कंपोस्ट खाद, 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फेट और 500 ग्राम पोटाश प्रति पौधे की दर से इस्तेमाल की जानी चाहिए. जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.4 फीसदी जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करें. आम में गमोसिस की रोकथाम के लिए प्रति पेड़ 250 ग्राम जिंक सल्फेट, 250 ग्राम कापर सल्फेट, 125 ग्राम बोरैक्स व 100 ग्राम बुझा चूना (10 साल या अधिक उम्र के पेड़ों के लिए) जमीन में मिलाएं. बारिश नहीं होती, तो हलकी सिंचाई भी करें. आम में एंथै्रक्नोज रोग से बचाव के लिए कापर आक्सीक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा 1 लीटर

पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

इस महीने में आंवले में फल सड़न रोग हो जाता है. इस की रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव किया जाना चाहिए. आंवले में शुष्क विगलन (काला गूदा रोग) रोग से 80-90 फीसदी फल अंदर से काले हो कर  अक्तूबरनवंबर में गिर जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए 6 ग्राम बोरैक्स प्रति लीटर पानी में घोल कर 15 दिनों के अंतर पर 2 छिड़काव किए जाने चाहिए. आंवले में इंदर बेला कीट की रोकथाम के लिए डाईक्लोरोवास 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल में रुई भिगो कर तार की मदद से छेदों में डाल कर चिकनी मिट्टी से बंद कर दें.

केले में प्रति पौधा 55 ग्राम यूरिया पौधे से 50 सेंटीमीटर दूर घेरे में इस्तेमाल कर के हलकी गुड़ाई कर के मिट्टी में मिला देना चाहिए. केले में बनाना बीटिल रोग हो जाता है. उस की रोकथाम के लिए क्वीनालफास 1.25 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए. कार्बोफ्यूरान 3-4 ग्राम या फोरेट 2 ग्राम प्रति पौधे की दर से तने के चारों ओर मिट्टी में मिलाएं व इतनी ही मात्रा गोफे में डालें. फूल व सुगंध पौधे : इस मौसम में रजीनगंधा के स्पाइक की कटाईछंटाई की जानी चाहिए. ग्लैडियोलस की रोपाई की तैयारी के लिए प्रति वर्गमीटर 10 किलोग्राम गोबर की खाद/कंपोस्ट, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 100 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश रोपाई के 15 दिनों पहले अच्छी तरह से मिलाना चाहिए.

पशुपालन व दूध उत्पादन : पशुओं में एचएस व बीक्यू का टीका लगवा देना चाहिए. इस महीने पशु खुरपकामुंहपका के शिकार भी हो जाते हैं. रोकथाम के लिए टीका लगवाएं और रोग से ग्रस्त पशुओं के घावों को पोटैशियम परमैगनेट से धोएं. 2 टीकों के बीच 15-20 दिनों का अंतर जरूर रखना चाहिए. नवजात बच्चों को खीस जरूर दें. सभी पशुओं को पेट के कीड़े मारने की दवा पिलाएं. गंदे पोखरों व तालाबों में पशुओं  को जाने से रोकें. उन्हें साफ पानी ही पीने के लिए दें. साफ दूध उत्पादन के लिए पशु व दूध के बरतन वगैरह की सफाई का ध्यान रखा जाना चाहिए. पशुओं के बांझपन व गर्भ की जांच भी समयसमय पर कराना चाहिए.

मुरगीपालन : मुरगीखाने में कैल्शियम के लिए सीप का चूरा रखें. मुरगियों को पेट के कीड़े मारने की दवा दें. मुरगीखाने में 15-16 घंटे रोशनी का इंतजाम करें. मुरगियों के बिछावन को लगातार उलटतेपलटते रहना चाहिए. यह भी ध्यान रखें कि मुरगीखाने में हर मुरगी के लिए 3 वर्गमीटर जगह जरूरी है.

(सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी पर आधारित)

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