भारत दूध के उत्पादन के मामले में हमेशा आगे रहा है, मगर उस की देशी गायों को मामलू ही माना जाता रहा है. जर्सी जैसी विदेशी गायों की बहुत ज्यादा दूध देने की कूवत के मुकाबले भारतीय गायें कहीं नहीं टिक पाती थीं, मगर अब हालात बदल रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग के खतरे ने दुनिया को हिला कर रख दिया है और तमाम मामले गड़बड़ा गए हैं. रोजाना इस्तेमाल किया जाने वाला दूध भी एक खास मुद्दा है. माहिरों का मानना है कि जलवायु में होने वाले बदलाव से दूध के उत्पादन में भारी कमी आएगी. वैज्ञानिकों का कहना है  दूध के उत्पादन में कमी होने के खतरे से गायों की देशी नस्लें ही बचा पाएंगी.

करनाल के ‘राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान’ (एनडीआरआई) में अब तक हुए कई शोधों के बाद यह नतीजा सामने आया है. पिछले 5 सालों से ‘नेशनल इनोवेशंस इन क्लाइमेट रेसीलिएंट एग्रीकल्चर’ (एनआईसीआरए) प्रोजेक्ट के तहत चल रहे शोध का नतीजा भी यही है कि ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से देशी नस्ल की गायें ही बचा सकती हैं. शोध से यह बात सामने आई है कि विदेशी और संकर नस्ल के दुधारू पशुओं की तुलना में देशी गायों में ज्यादा तापमान झेलने की कूवत होती है, लिहाजा जलवायु में होने वाले बदलावों से वे कम प्रभावित होती हैं. दरअसल देशी गायों की खाल यानी चमड़ी गरमी सोखने में मददगार होती है. देशी गायों में कुछ ऐसे जीन भी पाए गए हैं, जो गरमी सहने की कूवत में इजाफा करते हैं.

एनडीआरआई के वैज्ञानिकों का कहना है कि गरमी और सर्दी में अधिकतम और न्यूनतम तापमान में जरा से फर्क का असर पशुओं के दूध देने की कूवत पर पड़ता है. तमाम खोजों से मालूम हुआ है कि गरमी में 40 डिगरी से ज्यादा और सर्दी में 20 डिगरी से कम तापमान होने पर दूध के उत्पादन में 30 फीसदी तक की कमी आ जाती है.

खोजों के मुताबिक तापमान ज्यादा होने से संकर नस्ल की गायों के दूध में 15-20 फीसदी तक की कमी हो सकती है, मगर देशी नस्ल की गायों पर ज्यादा तापमान का खास असर नहीं पड़ता है. यह खोज भारतीय यानी देशी नस्ल की गायों के लिहाज से अच्छी कही जा सकती है. देशी गायों को पालने वाले इस बात पर खुश हो सकते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक तापमान में होने वाला इजाफा यदि लंबे अरसे तक कायम रहता है, तो पशुओं के दूध देने की कूवत के साथसाथ ??उन की प्रजनन कूवत पर भी खराब असर पड़ता है. एनडीआरआई के निदेशक डा. एके श्रीवास्तव के मुताबिक भारत में कुल दूध उत्पादन का 51 फीसदी भैंसों से, 20 फीसदी देशी नस्ल की गायों से और 25 फीसदी विदेशी नस्ल की गायों से मिलता है. लेकिन जलवायु में होने वाले बदलाव से इन आंकड़ों पर काफी फर्क पड़ेगा. यह बात दूध के कारोबारियों से ले कर वैज्ञानिकों तक के लिए चिंता का विषय है.

बरेली के ‘पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान’ (आईवीआरआई) के प्रधान वैज्ञानिक डा. ज्ञानेंद्र गौड़ का कहना है कि तापमान में इजाफा होने पर संकर नस्ल के पशु बहुत ज्यादा बीमार पड़ते हैं. बीमारी की वजह से वे चारा खाना काफी कम कर देते हैं, नतीजतन उन का शरीर काफी कमजोर हो जाता है. शरीर की कमजोरी की वजह से उन का दूध भी बहुत घट जाता है. डा. ज्ञानेंद्र गौड़ ने आगे बताया कि तापमान में होने वाले इजाफे से देशी नस्ल के पशुओं पर ज्यादा असर नहीं पड़ता. वे तापमान बढ़ने पर आमतौर पर बीमार नहीं पड़ते हैं, लिहाजा उन के दूध देने की कूवत पर भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता है. बरेली के ‘पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान’ में फिलहाल 250 दूध देने वाले पशु मौजूद हैं, जो करीब 2700 लीटर दूध देते हैं. मगर तापमान में इजाफा होने से यह मात्रा घट कर 2200 लीटर तक पहुंच गई है. अपने पशुओं के दूध के आधार पर ही वैज्ञानिक नतीजे निकाल पाते हैं.

एक ही गोत्र में प्रजनन ठीक नहीं

वैज्ञानिकों ने शोधों से यह नतीजा निकाला है कि गायों की नस्लों के लिहाज से एक ही गोत्र में प्रजनन कराना ठीक नहीं है. उन का कहना है कि समगोत्र प्रजनन से पशु वंशानुगत रूप से अप्रभावी हो जाते हैं.

जालंधर की ‘दिव्य ज्योति जागृति संस्थान नूरमहल’ ने गायों की गायब हो रही देशी नस्लों के सुधार के लिए कामधेनु मुहिम चला रखी है. वहां साहिवाल, थारपारकर, हरियाणा, कांक्रेज व गिर नस्ल की गायों को बचाने के लिए सगोत्र आंतरिक प्रजनन से परहेज बरता जाता है. संस्थान से जुड़े स्वामी चिन्मयानंद और स्वामी विशालानंद ने गायों के मूत्र और गोबर की अहमियत बताते हुए कहा कि 1 गाय से 30 एकड़ जमीन पर खेती की जा सकती है. नूरमहल में फिलहाल 700 साहिवाल गायें मौजूद हैं. संस्थान की दिल्ली शाखा में भी 250 गायें हैं. संस्थान ने साहिवाल गाय से 25 लीटर तक दूध निकालने में कामयाबी पाई है. वैसे देशी नस्ल की गिर गाय ने कुछ साल पहले ब्राजील में 62 लीटर दूध देने का रिकार्ड कायम किया था.

यों तो आगामी 5 सालों में दूध उत्पादन में 30 लाख टन की गिरावट का अंदाजा लगाया जा रहा है, मगर देशी नस्ल की गायों की खूबी पर फख्र किया जा सकता है. भारत में भैंसों की 13 और गायों की 39 प्रजातियां मौजूद हैं. हालात के मुताबिक देशी गायों का वजूद दिनबदिन बढ़ता जाएगा. यह देशी नस्ल की गायें पालने वालों के लिए खुशी की बात है. ठ्ठ

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