रेस्तरां में ग्राहकों से ज्यादा वैट वसूलने के मामले में कानूनी विवाद और गहराने के आसार हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि विवाद की जड़ में टिप के नाम पर वसूला जाने वाला 10% सर्विस चार्ज (सर्विस टैक्स नहीं) है, जिसका कोई कानूनी आधार नहीं है. अब कोर्ट की निगाह में आने से इस बात के आसार बढ़ गए हैं कि सेवा के नाम पर लिया जाने वाला यह चार्ज हाशिए पर आ जाए. वैट विभाग ने साफ किया है कि वह कुल बिल पर वैट चार्ज करता है, जिसमें सर्विस चार्ज शामिल होता है, न कि सर्विस टैक्स. सर्विस टैक्स कुल बिल के 40% हिस्से पर लगता है, जो केंद्र को जाता है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले दिनों वैट विभाग को नोटिस जारी किया था कि वह सर्विस कंपोनेंट पर भी टैक्स क्यों ले रहा है. इस पर एक अधिकारी ने बताया, 'रेस्तरां में वैट खानपान के मूल्य और सर्विस चार्ज पर लगता है. इसे सर्विस टैक्स सहित कुल बिल न समझा जाए. अगर कोई चार्ज करता है तो वह इल्लीगल है. लेकिन सर्विस चार्ज के नाम पर हो रही वसूली पर वैट लगाने को अगर चुनौती दी गई है, तो हम अपनी बात रखने को तैयार हैं.'

दिल्ली सेल्स टैक्स बार असोसिएशन के एक सदस्य ने बताया, 'अगर किसी रेस्तरां ने मील प्लस सर्विस चार्ज प्लस सर्विस टैक्स यानी 1166 पर वैट चार्ज किया और विभाग ने स्वीकार किया तो दोनों फंसेंगे. लेकिन ऐसा नहीं होता. मामला सर्विस चार्ज पर वैट का है. ग्राहक की नजर से देखें तो परचेज तो सिर्फ खाना किया गया है, ऐसे में सर्विस नाम के किसी चार्ज पर वह वैट क्यों दे.'

दूसरी ओर, रेस्तरां इंडस्ट्री सर्विस चार्जेज का बचाव करती नजर आ रही है. नेशनल रेस्तरां असोसिएशन ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी जनरल प्रकुल कुमार ने कहा, 'रेस्तरां उन्हीं हेड्स के तहत वैट चार्ज कर रहे हैं, जिस पर विभाग ने सहमति जताई है. अगर सरकार टैक्सेबल रकम से सर्विस चार्ज को बाहर रखती है तो हमें क्यों ऐतराज होगा. लेकिन जहां तक सवाल इस चार्ज का है तो यह एक तरह की टिप है, जो पूरे स्टाफ में बांटी जाती है. इसे सर्विस टैक्स के साथ मत जोड़िए.'

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