यह बात उस वक्त की है जब हमें हमारे परिचित के यहां शादी में जाना था. शादी बड़ी धूमधाम वाली थी. बाद में सब से खाना खाने की विनती की गई. खाने में बढि़याबढि़या हर तरह के पकवान रखे गए थे. भीड़ बहुत थी. हर आदमी कतार में लग कर हाथ में थाली ले कर तैयार था. हम और हमारे करीबी भी कतार में खड़े रहे थे. खाने में पावभाजी, बटर वगैरा चीजें रखी गई थीं. खाने वालों की तादाद अधिक होने की वजह से हर चीज ज्यादा मात्रा में रखी गई थी. यैलो कलर का बटर 5-6 किलो रखा था. मेरे आगे वाले लोग, जो देहात से थे, बटर कटोरी भरभर कर ले जा रहे थे. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग कटोरी भर कर बटर क्यों ले जा रहे हैं. मुझ से रहा नहीं गया, मैं ने पूछ ही लिया. उन में से एक आदमी ने कहा, ‘‘अरे भाई, यह केसर श्रीखंड है, इसीलिए हम लोग कटोरी भर के ले जा रहे हैं.’’
जब उन लोगों ने उस का स्वाद लिया, और मीठे की जगह नमकीन घी की तरह का स्वाद मुंह में आया तो सभी लोग थूथू करने लगे. तब मैं ने उन्हें समझाया कि यह बटर है. भाजी तथा पाव पर जरा सा लगा कर खाने के लिए है.
उस वक्त उन सभी के चेहरे देखने लायक थे.
प्रेम जैन, बुलडाणा (महा.)
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मैं विवाह से पहले टौमबौय की तरह रहती थी. इस के विपरीत मुझे ससुराल एकदम उलटी मिली. मेरी एक दोस्त नमिता ने मुझ से पूछा, ‘‘छोटी (मेरे घर का नाम), क्या तुम्हें अभी भी साड़ी ही पहननी पड़ती है, पल्लू से सिर ढक कर रखना पड़ता है?’’
मैं ने कहा, ‘‘हां.’’ वह बोली, ‘‘मुझे तुम्हारी बातों पर बिलकुल भी यकीन नहीं होता कि तुम एक पारंपरिक परिवेश में ढल गई हो. उस ने मजाकमजाक में हंसते हुए आगे कहा, तुम सच बोल रही हो या फेंक रही हो. तुम यहां (मायके) तो बिलकुल पहले की तरह ही व्यवहार करती हो और वही टौमबौय टाइप ही लगती हो. तो वहां कैसे मैनेज करती हो?’’ मैं हमेशा से हाजिरजवाब रही हूं. मैं ने नहले पे दहला मारा, कहा, ‘‘महामहिम राष्ट्रपति (तब प्रतिभा पाटिल थीं) को नहीं देखा क्या? वे सिर पर पल्लू डाल कर राष्ट्रपति जैसा गरिमापूर्ण पद संभाल सकती हैं, तो क्या मैं एक संयुक्त परिवार नहीं संभाल सकती.’’ वह निरुत्तर हो कर जोरजोर से हंसने लगी.
श्यामसुंदर गट्टानी, जोरहाट (असम)