मैं और मेरी बेटी सोलन से ऊना तक का सफर बस से कर रही थीं. सोलन से लगभग आधा घंटे का सफर हो चुका था. अचानक हमारे आगे की सीट पर बैठे एक यात्री ने अजीब सी आवाज करनी शुरू कर दी. ऐसा लग रहा था कि उस को सांस लेने में दिक्कत हो रही है. मेरी बेटी, जो दंत चिकित्सक है, ने एकदम उसे अपनी पानी की बोतल से पानी पिलाने की कोशिश की.
उस व्यक्ति की हालत ज्यादा खराब लग रही थी. तभी बेटी ने बस रोकने को कहा. सब ने उस का समर्थन किया. बस रोक दी गई. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. तभी बेटी ने मेरे फोन से अपने भाई को फोन किया, जो डाक्टर है. उस ने 108 नंबर पर फोन करने का सुझाव दिया.
बेटी ने फोन कर दिया. स्थान बताने पर 108 नंबर गाड़ी 15-20 मिनट में आ गई. वह यात्री अकेला था और उस की गंभीर हालत देख कर उसे वे लोग गाड़ी में ले गए.
हम लोग यह बात लगभग भूल चुके थे. अचानक 3-4 महीने बाद मेरे फोन पर कौल आई. उन्होंने उस यात्री का नाम ले कर पूछा कि अब वे कैसे हैं? मैं ने बताया कि हमें तो उन का नामपता कुछ मालूम नहीं. वे तो केवल हमारे सहयात्री थे. तभी उधर से आवाज आई कि आप ने एक अनजान व्यक्ति का बहुमूल्य जीवन बचाया है, उस के लिए आप को धन्यवाद देते हैं. उस दिन अगर कुछ और देर हो जाती तो शायद उसे हम न बचा पाते.
उस समय जो खुशी मैं ने अनुभव की उस का मैं वर्णन नहीं कर सकती. अब जब भी कभी उधर से गुजरती हूं तो अपनेआप चेहरे पर मुसकान आ जाती है. जो खुशी किसी को बचाने में है, वह किसी को तकलीफ देने में कहां.
शशी कला, ऊना (हि.प्र.)
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मैं नववर्ष के उपलक्ष्य में अपने पति व बेटी सहित वियतनाम गई. वहां एक रेस्तरां में कुछ खाने के लिए गए. बिल चुकाने का समय आया. हमारे पास पूरा बिल चुकाने के लिए वियतनामी मुद्रा नहीं थी. हम अमेरिकी डौलर में बिल चुकाना चाह रहे थे पर रेस्तरां के मालिक को समझ नहीं आ रहा था कि वह कितने डौलर ले. हमारी दुविधा देख कर वहां खाना खा रहे एक वियतनामी दंपती ने हमारा बिल चुका दिया और पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया.
परदेस में एक अजनबी की निस्वार्थ सहायता ने हमें यह सोचने को मजबूर कर दिया कि इंसानियत, प्रेम, अपनत्व को किसी भी देश की सीमा में कैद नहीं किया जा सकता. जीवन में शायद फिर कभी उन भले लोगों से मुलाकात हो, पर हमारे दिल में उन के चेहरे हमेशा बसे रहेंगे.
साधना सूद, धनबाद (झारखंड)