एक दिन वह अपनी मां के साथ बाजार जा रही थी. सड़क के किनारे आम के पेड़ पर लटके आमों को देख कर वह आम खाने के लिए मचल उठी. मां ने लाख समझाया पर वह मासूम लड़की आम खाने की जिद पर अड़ गई. मां ने उससे कहा कि आम काफी ऊंचाई पर है इसलिए पेड़ पर नहीं चढ़े. तभी बेटी ने सड़क के किनारे पड़े पत्थर को उठाया और आम पर निशाना लगा कर पत्थर चला दिया. पलक झपकते ही आम नीचे आ गिरा. उस दिन लड़की की मां गीता को अपनी बेटी का लक्ष्य पर निशाना साधने की प्रतिभा का पता चला. उस दिन के बाद से लगातार अपने लक्ष्यों पर निशाना साधने वाली छोटी सी लड़की आज दुनिया की नंबर-वन तीरंदाज दीपिका कुमारी बन चुकी है और आज समूचा देश उससे यह उम्मीद लगाए बैठा है कि अगले ओलंपिक में वह गोल्ड मेडल जीतेगी.
झारखंड की राजधनी रांची शहर से 15 किलोमीटर दूर रातू चेटी गांव में दीपिका का परिवार रहता है. उसके पिता शिवनारायण महतो औटो रिक्शा चला कर अपने परिवार का गुजारा चलाते है. शिवनारायण बताते हैं कि दीपिका का खेलना-कूदना और तीरंदाजी का शौक उन्हें कतई पसंद नहीं था. इसके लिए वह अकसर दीपिका को डांट-फटकार लगाया करते थे और पढ़ाई में मन लगाने पर जोर देते थे. अपनी धुन की पक्की दीपिका पढ़ाई तो करती रही पर साथ में निशानेबाजी की लगातार प्रैक्टिस भी करती रही. इस वजह से आज उनकी बेटी के नाम का डंका रांची ही नहीं समूची दुनिया में बज रहा है.
दीपिका की बचपन की बातों को याद करते हुए शिवनारायण कहते हैं कि एक दिन दीपिका ने उनसे तीर और धनुष खरीद कर देने की मांग की. पहले तो उन्होंने मना कर दिया कि बेकार के कामों में वह मन नहीं लगाए और पढ़-लिख कर अफसर बने. बाद में सोचा कि बेटी ने उनसे पहली बार कुछ मांगा है, इसलिए बाजार की ओर चल दिये. तीरंदाजी में उपयोग होने वाले तीर-धनुष की कीमत सुनकर तो उनका माथा ही घूम गया. उसकी कीमत 2 लाख रूपये थी. उन्होंने बेटी को अपनी मजबूरी बता दी. इसके बाद भी दीपिका निराश नहीं हुई और वह बांस से बने तीर-धनुष से ही लगातार प्रैक्टिस करती रही और आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई.
दीपिका की मां गीता महतो फख्र के साथ बताती हैं कि तीरंदाजी को लेकर वह इतनी सीरियस थी कि जब भी मौका मिलता तो पेड़ पर लटके फलों पर निशाना साधती रहती थी. आम के मौसम में तो उसकी प्रैक्टिस और बढ़ जाती थी. उसके दोस्त जिस आम को तोड़ने को कहते थे, उस पर निशाना लगा कर गिरा देती थी. वह कहती हैं कि हर मां-बाप को चाहिए कि वे अपने बच्चों के अंदर छिपी प्रतिभा को पहचाने और उसे तराशने में हर मुमकिन मदद करें. कुछ साल पहले झारखंड के ही लोहरदगा जिले में तीरंदाजी की प्रतियोगिता हो रही थी. दीपिका उसमें भाग लेने की जिद कर रही थी. हार कर उसके पिता ने उसे लोहरदगा जाने के लिए 10 रुपये दिये. उसने प्रतियोगिता में भाग लिया और पहला इनाम लेकर लौटी. उसके बाद से अब तक दीपिका के इनाम जीतने का उसका सफर लगातार जारी है.
13 जून 1994 को जन्मी दीपिका ने साल 2005 में झारखंड के अर्जुन तीरंदाजी एकेडमी में दाखिला लिया और 2006 में उसे जमशेदपुर के टाटा स्पोटर्स एकेडमी में दाखिला मिल गया. वहां उसे हर महीने स्टाइपन के तौर पर 500 रुपये भी मिलने लगे. उसी साल मैक्सिको में हुए विश्व तीरंदाजी चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीत कर उसने दुनिया का ध्यान खींचा. उसके बाद तो मेडल जीतने की उसने झड़ी ही लगा दी. साल 2009 में यूएसए में आयोजित 11 यूथ वल्र्ड तीरंदाजी चैम्पियनशिप में भी उसने गोल्ड मेडल पर कब्जा जमा लिया. उसके बाद साल 2010 में दिल्ली में हुए कौमनवेल्थ गेम्स में भी उसने रिकर्व इवेंट में 2 गोल्ड मेडल झटक कर भारत का परचम लहराया. साल 2010 को चीन में हुए एशियन गेम्स में उसे ब्रोंज मेडल पर ही संतोष करना पड़ा. मई 2012 में तुर्की में आयोजित महिला तीरंदाजी वर्ल्ड कप में कोरिया की ली संग जीन को पछाड़ कर 2 गोल्ड मेडल अपनी झोली में डाल लिये. पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय तीरंदाजी संघ की ताजा विश्व रैंकिग में दीपिका को नंबर 1 पर जगह मिली है. इससे पहले भारत की डोला बनर्जी को यह खिताब मिला था. इसके अलावा साल 2011 से 2013 तक वह लगातार फिटा आर्चेरी वर्ल्ड कप के सिल्वर मेडल जीत चुकी है. अब पूरे देश को यह भरोसा है कि ओलंपिक में दीपिका गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाएगी.