भारतीय जनता पार्टी ने विधान परिषद का चुनाव हारने वाले दयाशंकर सिंह को जब प्रदेश में पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया, तो यह नहीं सोचा था कि वह गले की हड्डी बन जायेंगे. बात केवल मायावती तक ही सीमित नहीं है. मायावती दलितों की नेता होने के साथ ही साथ महिला भी हैं. किसी महिला के खिलाफ ऐसे बयान सभ्यता और संस्कृति से पूरी तरह से परे हैं. नेताओं का बडबोलापन पहली बार नहीं हुआ है. ऐसे तमाम बयान समय समय पर आते रहते हैं. इनकी निन्दा होनी चाहिये.
बसपा ने अपनी नेता मायावती के अपमान के सहारे चुनावी जंग का भी ऐलान कर चुकी है. लखनऊ प्रशासन के तमाम प्रयासों के बाद भी गुरुवार 21 जुलाई की सुबह 9 बजे से पहले बसपा के लोगों ने धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया. बसपा का दबाव है कि मायावती के खिलाफ गलत शब्दों का प्रयोग करने वाले भाजपा नेता दयाशंकर सिह को गिरफ्तार किया जाये. बसपा हजरतगंज थाने में इस बात की रिपोर्ट पहले ही लिखा चुकी है.
दूसरी तरफ भाजपा ने अपने इस बडबोले नेता को बयान देने के 24 घंटे के अंदर ही पार्टी उपाध्यक्ष पद से हटाकर 6 साल के लिये पार्टी से बाहर भी कर दिया. इस बात की भनक दयाशंकर सिंह को 20 जुलाई की शाम ही लग गई थी. जिसके बाद वह लखनऊ से बाहर चले गये.
बलिया के रहने वाले दयाशंकर सिंह छात्र राजनीति से भाजपा में आये. वह लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्र नेता रहे. भाजपा से दूसरी बार विधान परिषद का चुनाव लडे. मऊ जिले में सार्वजनिक भाषण देते समय वह मायावती के खिलाफ ऐसे शब्दों का प्रयोग कर गये जो नहीं करना चाहिये था. दलितों के प्रति दूषित सोच समाज के हर वर्ग में फैली है. दयाशंकर सिंह इसका उदाहरण भर मात्र हैं. उत्तर प्रदेश में बहुत पहले सपा और बसपा के नेताओं में गुंडा-गुंडी जैसे शब्दों का प्रयोग होता था.
भाजपा की चिन्ता का विषय दयाशंकर सिंह नहीं हैं. जिस समय दिल्ली में लोकसभा में मायावती के खिलाफ बयान को लेकर हंगामा हो रहा था और भाजपा नेता अरुण जेटली माफी मांग रहे थे, ठीक उसी समय गुजरात में दलितों की निर्मम पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था. गुजरात के ऊना शहर में मरी गाय की खाल उतारते दलित युवकों पर गो हत्या का आरोप लगाकर गऊ रक्षक दल के सदस्यों ने बेरहमी से पीटा. एक सप्ताह पुरानी इस घटना को गुजरात सरकार ने तब संज्ञान में लिया जब पूरे देश में इसकी निंदा शुरू हो गई. दलितों को पीटने वाले दल का भाजपा से कोई लेना देना भले न हो, पर धर्म के मुद्दे पर दोनो एक ही सोच रखने वाले हैं.
मायावती के साथ ही साथ गुजरात की घटना से भाजपा बैकफुट पर चली गई है. भाजपा ने आने वाले चुनावों में दलितों को अपने साथ रखने का प्रयास शुरू किया था. एक के बाद एक घटने वाली घटनाओं ने उसके सामने संकट खड़ा कर दिया है. यही वजह रही कि भाजपा ने दयाशंकर सिंह को पार्टी से बाहर करने में कोई समय नहीं लगाया. जरूरत इस बात की है कि दलित और महिला विरोध की मानसिकता को छोड़ा जाये. केवल दयाशंकर सिंह के पार्टी से बाहर करने से काम नहीं चलने वाला है. इस तरह की मानसिकता से छुटकारा पाना चाहिये. गोहत्या और गोमांस को लेकर उत्तर प्रदेश के दादरी में हंगामा और हत्या के मामले से समाज और नेताओं ने कोई सबक लिया होता, तो गुजरात के ऊना में घटी घटना को रोका जा सकता था. केवल चुनावी लाभ के लिये दिखावा करने की जगह पर समाज का हितैषी होने की जरूरत है.