किशोरियां भावनात्मक रूप से लड़कों की अपेक्षा ज्यादा मजबूत होती हैं, किंतु फिर भी वे आधुनिक तकनीकी व विज्ञान के विषयों की अपेक्षा परंपरागत विषयों, जैसे कला समूह, संगीत व साहित्य की ओर ज्यादा आकर्षित होती हैं. लड़के मानसिक रूप से एकांगी होते हैं जबकि किशोरियां बहुआयामी होती हैं. इस के बाद भी वे विज्ञान के क्षेत्र में अल्पसंख्यक हैं. समस्या प्रारंभिक शिक्षा से शुरू होती है. समाज में यह रूढि़वादी धारणा व्याप्त है कि कुछ विषय सिर्फ पुरुष ही पढ़ सकते हैं. भारतीय समाज में यह धारणा अभी भी बहुत प्रबल है कि लड़कियां विज्ञान व गणित पढ़ने के लिए उपयुक्त नहीं हैं. बचपन से उन के अवचेतन मन में यह बात बिठा दी जाती है कि गणित व विज्ञान उन के लिए कठिन व अनुपयुक्त विषय हैं. सो, उन का झुकाव गणित व विज्ञान विषयों से हट जाता है.
मातापिता व शिक्षकों की ओर से किशोरियों को विज्ञान पढ़ने के लिए उपयुक्त व पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है. सो, उन के मन में यह हीनभावना घर कर जाती है कि भौतिकी और गणित जैसे विषय में वे लड़कों से अच्छा नहीं कर सकती हैं. वे सांस्कृतिक व सामाजिक रूढि़वादिता से प्रभावित हो कर परंपरागत विषयों की ओर उन्मुख होती हैं. लड़के हमेशा लड़कियों की विशिष्टता को चुनौती देते हैं विशेषकर विज्ञान के क्षेत्र में. लड़कियों की योग्यता को हमेशा संदेह की दृष्टि से देखा जाता है. किशोरियों को कक्षा में शिक्षकों से सही उत्तर नहीं मिलते हैं.
विज्ञान के क्षेत्र मे कैरियर व व्यवसाय में भी लड़कियों को लिंगभेद का सामना करना पड़ता है. उन्हें पुरुषसाथी की अपेक्षा कम वेतन, भत्ता, रहवासी सुविधाएं, औफिस में जगह एवं अवार्ड इत्यादि मे कमतर स्थितियां प्राप्त होती हैं.
रोल मौडलों की कमी
किशोरियों के अवचेतन मन में यह बात बिठा दी जाती है कि शादी के बाद परिवार संभालना प्रमुख कार्य है, इसलिए विज्ञान की अपेक्षा समाजशास्त्र से जुड़े विषयों का अध्ययन उन के लिए श्रेयस्कर है. भारत में लड़कियों के लिए रोल मौडलों की कमी है. जब किशोरियां अपने परिवार में मां, चाची, बूआ, दीदी किसी को भी विज्ञान पढ़ते नहीं देखतीं, तो स्वाभाविक तौर पर उन की रुचि विज्ञान में नहीं होती है. मिडिल स्कूलों में 74 फीसदी किशोरियों का झुकाव विज्ञान की तरफ रहता है जो हायर सैकंडरी स्तर पर 45 फीसदी एवं उच्च शिक्षा में 23 फीसदी ही रह जाता है. 60 फीसदी किशोरियां विज्ञान के क्षेत्र में अपना कैरियर नहीं बनाना चाहती हैं.
पक्षपातपूर्ण रवैया
जो लड़कियां विज्ञान पढ़ती हैं वे अपनी उन सहेलियों, जो दूसरा विषय ले कर पढ़ती हैं, से 26 फीसदी ज्यादा कमाई करती हैं. जो किशोरियां विज्ञान विषय लेती हैं उन की तार्किक क्षमता एवं कठिन परिस्थितियों से निबटने की क्षमता अन्य किशोरियों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी होती है. अपने परिवार, समाज व देश के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता विज्ञान पढ़ने वाली किशोरियों में ही होती है. लड़कियों में बचपन से ही विज्ञान व गणित के प्रति उत्साहपूर्ण वातावरण तैयार कर उन के अवचेतन मन में यह बात डालनी होगी कि विज्ञान जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है. विद्यालय एवं सामाजिक परिवेश में विज्ञान से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन कर विज्ञान, इंजीनियरिंग, तकनीकी, कंप्यूटर, फार्मेसी या विज्ञान के अन्य विषयों में अग्रणी स्थानीय महिलाओं को आमंत्रित कर संबोधन करवाना चाहिए. इस से किशोरियों के सामने उन के रोल मौडल्स होंगे. उन से प्रभावित हो कर विज्ञान के विषयों में उन की रुचि बढ़ेगी.
विद्यालयीन पाठ्यक्रमों को इस प्रकार से प्रारूपित करना चाहिए कि जिस से किशोरियों को विज्ञान विषय में सहभागिता के अवसर अधिक मिलें. शिक्षक छात्र एवं शिक्षा के बीच की बहुत महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं. विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार से परिचित कराने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. प्रशिक्षण के दौरान शिक्षकों को किशोरियों की विज्ञान के प्रति अभिरुचि बढ़ाने की तकनीकों से परिचित करवाया जाना चाहिए. प्राथमिक स्तर पर साइंस कंपीटिशन, साइंस फेयर, विज्ञान प्रश्नोत्तरी आदि को पाठ्यक्रम में अनिवार्य घोषित किया जाना चाहिए ताकि बच्चियों की अभिरुचि विज्ञान के प्रति बढ़ सके, साथ ही प्रोत्साहन के लिए उन को पुरस्कार, प्रमाणपत्र एवं अवार्ड देने चाहिए.
लड़कियों के सामने रसायन के अनेक चमत्कारों का विश्लेषण करना चाहिए. रासायनिक अभिक्रियाओं के जादू देख कर उन के मन में विज्ञान के प्रति अभिरुचि जाग्रत होगी. सरल प्रोजैक्ट, जैसे ‘मिश्रण को अलग करना’, ‘बिजली के मेंढक का फुदकना’, ‘रोबोट का संचालन’, ‘दूध का प्लास्टिक बनना.’ आदि का प्रदर्शन निश्चित ही उन के मन में विज्ञान के प्रति अभिरुचि पैदा करेगा. विज्ञान से संबंधित आसपास के कलकारखाने, बांध, बिजली बनाने वाली इकाइयां, पवन चक्कियां व फैक्टरियों का भ्रमण उन्हें कराना चाहिए ताकि वे विज्ञान के रहस्य एवं उस की उपयोगिता को समझ सकें. इन जगहों पर काम करने वाली महिलाओं से भी उन की मुलाकात करवानी चाहिए जिस से उन के मन में विश्वास बन सके कि वे भी इन क्षेत्रों में अपनी सहभागिता दे कर कैरियर बना सकती हैं. वैश्वीकरण के इस दौर में समाज, परिवार और तंत्र की मानसिकता में बदलाव आए हैं व पहले की अपेक्षा अधिक संख्या में किशोरियां जागरूक हुई हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी बहुत असंतुलन है. शिक्षा तक पहुंच ही इस का हल नहीं है. इस के लिए बहुआयामी योजनाओं के बनाने की व धरातल पर उन के क्रियान्वयन की आवश्यकता है. मातापिता को अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा, उन्हें परिवार में किशोरियों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार बंद करना होगा और इस में शिक्षकों, समाज व तंत्र को सहयोग करना होगा ताकि अधिक से अधिक किशोरियों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.
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