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जीएसटी को सहूलियत से सत्यनारायण की कथा से समझें

आधी रात को संसद के सेंट्रल हाल में एक सरकारी डाक्यूमेंटरी रिलीज (लॉन्च) हुई जिसे अब हम सभी जीएसटी के नाम से जानने लगे हैं. इस लोकतान्त्रिक अनुष्ठान में आहुतियां डालने तमाम सांसदों के अलावा कुछ खास किस्म के यजमान भी खास तौर से आमंत्रित थें. इन सभी ने सर झुकाकर वित्त मंत्री अरुण जेटली जिन्हें सोशल मीडिया पर सक्रिय आम लोग लाड़ से अरुण जेबलूटली भी कहने लगे हैं के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के भी प्रवचन सुनें. इन प्रवचनों में जीएसटी के फायदे गिनाए गए और उसके इतिहास पर भी संक्षिप्त प्रकाश जगमगाती रोशनियों के बीच डाला गया.

ऐसे दरबार त्रेता और द्वापर युग में भी सजते थे जिनमें राजा के अलावा राजर्षि, विद्वान और साधू संत वगैरह प्रजा पर छाए संकटों पर चर्चा करते थें पर उनके दिमाग में खजाना भरने के खुराफाती आइडिये होते थे. गहन विचार विमर्श के बाद आखिर में तय होता था कि चूंकि राज्य में पाप बढ़ रहे हैं इसलिए धर्म का नाश हो रहा है. इससे बचने के लिए राजा को चाहिए कि वह प्रजा का ध्यान बटाए रखे और कर थोप दे जिससे प्रजा मेहनत कर ज्यादा से ज्यादा धन कमाए. राजा देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ हवन पूजा पाठ आदि भी करवाएं इससे उसका ध्यान प्रजा की बदहाली पर नहीं जाएगा.

सेंट्रल हॉल लोकतान्त्रिक जमावड़ा था जिसमें तीनों वक्ता जीएसटी के फायदे गिनाते रहें. इनमें प्रमुख और लोकप्रिय यह था कि हो न हो जीएसटी नाम के इस ब्र्ह्मास्त्र से जरूर गरीबी दूर हो जाएगी. इधर इस आयोजन का सीधा प्रसारण देख रही पब्लिक यह समझने की नाकाम कोशिश करती रही कि आखिर जीएसटी है क्या बला जिसका हल्ला तो खूब मच रहा है पर तकनीकी तौर पर या सरल तरीके से इसे कोई नहीं समझा पा रहा.

लोगों को इतना ही समझ आया कि अभी तक जो सैकड़ों तरह के टैक्स देने पड़ते थें उनकी जगह अब एक ही टैक्स देना पड़ेगा इससे कुछ चीजें सस्ती और कुछ महंगी हो जाएंगी. गांव देहात के लोगों ने एक कहावत के जरिये इसे समझाया कि सास मरी और बहू के बच्चा हुआ इस तरह घर में तीन प्राणी थे, तीन ही रहे कोई नफा नुकसान नहीं हुआ.

लेकिन व्यापारी वर्ग की आशंकाएं मीडिया के जरिये व्यक्त हो रहीं हैं जिनका जबाब या समाधान अर्थ शास्त्र के अच्छे अच्छे पंडों के पास नहीं कि अगर बेसन पर टैक्स दिया है तो क्या पकोड़ों पर भी देना पड़ेगा अगर हां तो क्यों ऐसी जीएसटी से फायदा क्या जिसमें चावल के घोल और इडली दोनों पर कर देना पड़े. उम्मीद है इन बचकाने और कुछ दूसरे गूढ़ सवालों के जबाब वक्त रहते उन्हें मिल जाएंगे. ऐसी शंका रूपी जिज्ञासाओं को शांत करने प्रधानमंत्री ने अपने भाषण कम प्रवचन में गीता, ऋग्वेद और चाणक्य तक का हवाला दिया पर बात लोगों के गले उतरी नहीं.

जीएसटी को सरलता पूर्वक समझने के लिए जरूरी है कि सत्यनारायण की कथा का पुण्य स्मरण किया जाये क्योंकि जो बात धर्म के जरिये समझी जा सकती है उसके लिए अर्थशास्त्र का मुंह ताकना तुक की बात नहीं. सत्यनारायण की पावन, पुण्य और तारने वाली कथा के विधान में पंडा पहले यजमान को संकल्प दिलाता है फिर घंटे दो घंटे तक एक नियमित अंतराल से घंटा बजाकर दक्षिणा चढ़वाता रहता है. गणेश और कलश स्थापना की दक्षिणा फिर नवग्रह स्थापना की और फिर तरह तरह के दानों के जरिये वह दो चार हजार रुपये समेट ही ले जाता है.

इधर कुछ दिनों से इस कथा का आर्थिक विधान कुछ कुछ बदला है जिसके तहत खुद यजमान यह पेशकश करने लगा है कि पंडित जी बार बार जेब में हाथ मत डलवाओ एक मुश्त रकम बता दो. पंडित सधे सौदेवाज की तरह ग्यारह हजार बताता हैं फिर यजमान की आस्था डगमगाते देख इक्यावन सौ में मान जाता हैं. यहां अहम बात दक्षिणाओं के केंद्रीय या सरलीकरण की है. जीएसटी में नया कुछ नहीं है बल्कि वह सत्यनारायण की कथा जैसी ही है कि इकट्ठा दो और झंझट से बचो.

चूंकि कोई भी बात कर्मकांडो के जरिये जल्द समझ आती है इसलिए जीएसटी पर बवाल मचाने से कोई फायदा नहीं. इसे अस्थि विसर्जन से और सहजता से समझा जा सकता है इलाहाबाद और हरिद्वार मृतक की अस्थियां ले जाने वाले अब भावुक कम व्यावहारिक ज्यादा हो चले हैं इसलिए गौ-दान, भू-दान, वस्त्र-दान, शैय्या-दान जैसे दो दर्जन दानों के चक्कर में पड़ने के बजाय वे भाव ताव कर पंडे को एकमुश्त दान देने लगे हैं इससे पैसे की हो न हो पर वक्त की बचत जरूर हो जाती है और मृतक को मोक्ष मुक्ति मिलने में भी कोई धार्मिक बाधा आड़े नहीं आती.

इसके बाद भी जिन्हें जीएसटी समझ न आए तो उन्हें इसे समझने की कोशिश ही नहीं करनी चाहिए लेकिन इतना जरूर समझ लेना चाहिए कि सरकार पंडा है वह पुराने तरीके से टैक्स नहीं चाहती इसलिए देना तो उसके तरीके से ही पड़ेगा.

मुझे किसी खास जॉनर से कोई लगाव नहीं है : अक्षय खन्ना

अभिनेता अक्षय खन्ना के करियर पर यदि नजर दौड़ाई जाए, तो एक बात साफ तौर पर उभरकर आती है कि उन्होंने ज्यादातर डार्क शेड्स वाले किरदार निभाते हुए, खुद को इंज्वॉय किया है, पर वे ऐसा नहीं मानते. उनकी नजर में वे हर तरह के किरदारों को निभाना इंज्वॉय करते हैं. इसी के चलते उन्होंने डार्क व संजीदा किरदारों के अलावा हास्य व नकारात्मक किरदार भी निभाए हैं. गत वर्ष प्रदर्शित फिल्म ‘ढिशूम’में वे डॉन बने थे. अब श्रीदेवी के साथ फिल्म ‘‘मॉम’’ में वे पुलिस अफसर के किरदार में नजर आएंगे.

उनसे हुई हमारी बातचीत के कुछ अंश…

बीस वर्ष के अपने अभिनय करियर को आप किस तरह से देखते हैं?

– आप जैसा जवाब चाहते हैं,वैसा मैं जवाब नही देने वाला.मैं उससे कुछ अलग हटकर जवाब देना चाहूंगा. हर वर्ष हिंदी या तमिल या तेलगू या मलयालम सिनेमा के परदे पर जो नए चेहरे आते हैं, उनमें से एक दो चेहरों को दर्षक देखना पसंद करता है, पर पिछले बीस वर्ष से दर्शकों ने मुझे हर फिल्म में देखना पसंद किया.

दूसरी बात कला के अलग अलग फार्म हैं. कलाकर चाहे  जिस किस्म का आर्टिस्ट हो,चित्रकार हो डांसर हो या गायक हो या अभिनेता हो, निर्देशक हो या कवि या लेखक ही क्यों न हो. उसके लिए महत्वपूर्ण होता है कि एक्सप्रेस करने की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए. हर कलाकार के करियर की अपनी अवधि होती है. लता मंगेशकर या आशा भोसले का करियर साठ वर्ष तक चलता रहा, आज भी बंद नहीं है. कुछ कलाकारों का करियर सिर्फ एक दो साल या ज्यादा से ज्यादा पांच वर्ष ही है, तो कुछ दस से 25 वर्ष तक है. यह सब उनकी अपनी तकदीर है. सबसे बड़ी अहमियत यह है कि जब तकदीर आपको कुछ देती है, उस वक्त का आप उपयोग किस तरह से करते हैं? मान लीजिए, आप चित्रकार हैं. आपकी एक तस्वीर दस हजार में बिक गयी. दूसरी तस्वीर बिकी ही नहीं. यानि कि सफलता असफलता की गणित लगाने की बजाय कलाकार को अपनी यात्रा को इंज्वॉय करना चाहिए. मैं वही करता आ रहा हूं.

आप किस आधार फिल्मों का चयन करते हैं?

– मुझे जो कहानी, पटकथा व किरदार पसंद आ जाए, वह कर लेता हूं. एक कलाकार होने के नाते आप जितने अच्छे व प्रतिभाशाली लोगों को अपने इर्द गिर्द जोड़ेगे, उतनी ही आपकी प्रतिभा निखर कर आएगी. यहां लोगों से मेरा मतलब फिल्म निर्माता, निर्देशक, मेकअप मैन वगैरह से है. ये बात हर क्षेत्र में लागू होती है, फिर चाहे आप बिजनेस कर रहे हों या दुकान चला रहे हों. यदि आपके आसपास के लोग बेहतरीन हैं, तो आपकी प्रतिभा निखरती है. आपका काम बेहतर होगा, पर यदि आपके आसपास के लोग प्रतिभाशाली नहीं हैं, तो आपका कमतर काम भी चल जाता है.

पर इतना सब करने के बावजूद फिल्में असफल हो जाती हैं?

– सिर्फ मेरे साथ ही नहीं, बल्कि विश्व के हर कलाकार के साथ अक्सर होता है कि वह सोच समझकर बेहतरीन फिल्मों में काम करते हैं, पर फिल्म दर्शक को पसंद नहीं आती है. आप ये मानकर चलें कि कोई भी रचनात्मक शख्स यह सोच कर फिल्म नहीं बनाता या काम नहीं करता कि वह बुरी फिल्म बनाएगा या उसकी फिल्म तो असफल होनी ही है.

आपने कॉमेडी, गंभीर, संजीदा, निगेटिव हर तरह के किरदार निभाए. किस तरह के किरदार निभाते हुए आप सबसे ज्यादा इंज्वॉय करते हैं?

– देखिए, आप चाहे जिस तरह का किरदार निभाओ, पर जो बुनियादी प्रक्रिया है,वह एक ही रहती है. वह नहीं बदलता. मेरा ऐसा मानना है. हो सकता है कि दूसरे कलाकारों का मानना हो कि उनके लिए किसी खास तरह के किरदार निभाना ज्यादा आसान या मुश्किल हो. मेरा इंज्वॉयमेंट है शूटिंग पर जाना. मेरा इंज्वॉयमेंट है सेट पर रहना और काम करना है, फिर चाहे वह कॉमेडी हो या ड्रामा. एक्शन हो या थ्रिलर या कि प्रेम कहानी हो. मुझे किसी खास जॉनर से कोई लगाव नहीं है. मैं तो विवधितापूर्ण काम करने में ही यकीन करता हूं. इस ढंग से मैंने कभी सोचा भी नहीं.

जब फिल्म ‘‘मॉम’’ ऑफर मिला, तो आप किस बात से भावनात्मक स्तर पर इसके साथ जुड़े?

– बेसिकली तो स्क्रिप्ट ही मायने रखती है. एक बार स्क्रिप्ट का मसला पार हो गया, तो बाकी चीजें ठीक हो जाती हैं.कई बार आपको लगता होगा कि काश इसमें ऐसा नहीं ऐसा होता या इस किरदार में यह कलाकार नहीं दूसरा कलाकार होता या निर्देशक अलग होता, वगैरह-वगैरह.. मैं आपको ये सब इसलिए बता रहा हूं, क्योंकि इस फिल्म का जो पूरा सेट-अप है, उसमें मुझे एक भी चीज ऐसी नहीं लगी कि काश ये नहीं यह होता. मुझे कोई कमी महसूस नहीं हुई.

फिल्म ‘‘मॉम’’ को लेकर क्या कहेंगे?

– यह एक पारिवारिक भावना प्रधान ड्रामा से युक्त रोमांचक फिल्म है.

अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

– एक अपराध की जॉंच करने वाला पुलिस अफसर बना हूं. इससे अधिक किरदार या फिल्म के कथानक पर रोशनी डालकर फिल्म के प्रति दर्शकों की उत्सुकता को खत्म नहीं करना चाहता.

आपके शौक?

– मैं तैराकी भी करता हूं. स्क्वैश भी खेलता हूं. जिम भी करता हूं.

क्यों धीरे चार्ज होता है आपका स्मार्टफोन?

स्मार्टफोन को लेकर अक्सर कई उपयोगकर्ताओं की ये शिकायत होती है कि उनका फोन स्लो चार्ज हो रहा है. जब-जब ऐसा होने लगता है तो कई यूजर्स तो ये मान लेते हैं कि फोन की बैटरी या चार्जर में खराबी आ गई है. हम आपको बता देना चाहते हैं कि जरूरी नहीं कि हर बार ऐसा ही हो.

दरअसल, फोन चार्जिंग के दौरान कई बार आपसे कुछ ऐसी गलतियां होती है जिनकी वजह से आपका स्मार्टफोन स्लो चार्ज होता है. हम यहां आपको कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं जिन्हें फॉलो करने पर फोन तेजी से चार्ज होगा.

फास्ट चार्जिंग एडॉप्टर

मार्केट में अब फास्ट चार्ज करने वाले चार्जर या एडॉप्टर आते हैं. इनमें फोन को तेजी से चार्ज किया जा सकता है. आफ इसे बाजार से आसानी से खरीद सकते हैं.

ऑरिजनल चार्जर का इस्तेमाल

फोन को हमेशा उसके साथ आइ चार्जर से ही चार्ज करें. दूसरी कंपनी के चार्जर से अक्सर फोन स्लो चार्ज होता है और फोन की बैटरी के खराब होने की संभावना भी बहुत बढ़ जाती है.

एरोप्लेन मोड का उपयोग

अपने फोन को चार्ज करते वक्त एरोप्लेन मोड का इस्तेमाल करें. ऐसा करने से फोन ऑन भी रहेगा, लेकिन फोन में नेटवर्क नहीं आएगा.

करें वाई फाई ब्लूटूथ ऑफ

अपना फोन चार्ज करते समय वाई-फाई और ब्लूटूथ कनेक्टिविटी को बंद कर लें. ऐसा करने से फोन बहुत जल्दी चार्ज होता है.

एनएफसी

फोन की सेटिंग में मौजूद डेटा एक्चेन्ज मोड यानि कि एनएफसी को, फोन चार्ज करने के दौरान ऑफ रखें.

बैटरी सेवर मोड का इस्तेमाल है बेहतर

आप ये भी कर सकते हैं कि फोन को चार्ज करते वक्त फोन का बैटरी सेवर मोड ऑन करके रख सकते हैं.

ब्राइटनैस रखें कम

चार्जिंग के दौरान फोन का इस्तेमाल न करें. यदि आप ऐसा करते भी हैं तो फोन की ब्राइटनैस कम कर लें. इससे भी आपका फोन तेजी से चार्ज होगा.

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