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सेना प्रमुख बनेंगे ओमपुरी

अभिनेता ओमपुरी अपने विविध अभिनय के बारे में जाने जाते हैं. यही वजह है कि अब तक उन्होंने कई विदेशी फिल्मों में भी बेहतरीन भूमिकाएं निभाई हैं. खबर है कि ओमपुरी जल्द
ही पाकिस्तान में महिलाओं की शिक्षा के लिए आवाज उठाने वाली मलाला यूसुफजई की जिंदगी पर बनने वाली फिल्म में पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी का किरदार निभाएंगे. यह फिल्म पाकिस्तान में बनाई जाएगी, यानी इसे एक पाकिस्तानी फिल्मकार बनाएंगे.
जब इस बाबत ओमपुरी से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कयानी का किरदार निभाना मेरे लिए चुनौतीपूर्ण अनुभव होगा. साथ ही, मलाला के मसले पर पूरी दुनिया ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी. ऐसे में इस साहसी फिल्म पर काम करना सुखद बात है

फिर मिले शिल्पा विनीत

एक टीवी चैनल पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक ‘लापतागंज – एक बार फिर’ में कैथलिक लड़की मैरी डिमैलो का किरदार दर्शकों को खासा लुभा रहा है. गौरतलब है कि इस किरदार को ‘भाभी’, ‘मायका’ और ‘चिडि़याघर’ जैसे सीरियल्स में अपने अभिनय कला का जौहर दिखाने वाली शिल्पा शिंदे निभा रही हैं.
हाल ही में उन के किरदार के साथ उन के बौयफ्रैंड के रूप में विनीत रैना की एंट्री हुई है. मजे की बात यह है कि 6 साल पहले दोनों कलाकार धारावाहिक ‘मायका’ में साथ में काम कर चुके हैं.
उस में भी दोनों का रोमांटिक रोल था और ‘लापतागंज’ में भी दोनों का रोमांटिक रोल है. इस बारे में शिल्पा शिंदे कहती हैं, ‘‘विनीत के साथ पहले काम किया था और अब फिर से उन के साथ काम कर के मजा आ रहा है. और तो और, ‘मायका’ में भी विनीत इंस्पैक्टर बने थे और इस में भी वे इंस्पैक्टर बने हैं. अजीब संयोग है न..

‘एनकाउंटर’ के सूत्रधार

एनकाउंटर का मसला वैसे तो काफी विवादित विषय है लेकिन इसी सब्जैक्ट पर काफी फिल्में बन चुकी हैं. ‘शूटआउट ऐट लोखंडवाला’ और ‘शूटआउट ऐट वडाला’ इसी विषय पर बनाई गई फिल्में थीं. लेकिन इस बार एनकाउंटर सब्जैक्ट पर सीरियल बनाया गया है.
सीरियल की खास बात यह है कि अभिनेता मनोज बाजपेयी इस में सूत्रधार की भूमिका निभाएंगे. मनोज के मुताबिक, वे इस विषय को अपने अंदाज में बयां करेंगे. वे दादीमां की शैली में दर्शकों को कहानी सुनाने की कोशिश करेंगे. वे इस के प्रस्तुतीकरण में कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं. उन के मुताबिक, यह सीरियल मुंबई में हुए चर्चित एनकाउंटर पर आधारित है जो पुलिस और कुख्यात अपराधियों के बीच हुए. इस सीरियल के जरिए वे एक एनकाउंटर और इस के पीछे के तथ्यों को दिलचस्प ढंग से सुनाएंगे.

यंगिस्तान

चुनावी माहौल में आई यह फिल्म राजनीति पर है. अब तक प्रदर्शित राजनीतिक फिल्मों में सिर्फ राजनीति में भ्रष्टाचार की ही बातें की जाती थीं लेकिन यह फिल्म कुछ अलग सी है. निर्देशक ने देश की बागडोर युवाओं के हाथों में दे कर अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की बात कही है. फिल्म देख कर साफ लगता है कि निर्देशक एक पार्टी विशेष का प्रचार कर रहा है.
‘यंगिस्तान’ का युवा नायक इस फिल्म के निर्माता का पुत्र जैकी भगनानी है. फिल्म में उस का लुक राहुल गांधी जैसा रखा गया है. अब तक उस की कई फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं, मगर सभी फ्लौप रही हैं. लेकिन इस फिल्म से उस ने कुछ उम्मीदें जगाई हैं.
 
फिल्म में निर्देशक ने सियासत को बदलने की बात कही है. दूसरी तरफ वह राहुल गांधी सरीखे किरदार, जिसे राजनीति की एबीसीडी भी नहीं आती, प्रोटोकोल क्या होता है, पता नहीं, और जो अपने औफिस में नौकरशाहों के सामने ही अपनी प्रेमिका से रोमांस करता है, को प्रधानमंत्री बनाना चाह रहा है. इस से सियासत कैसे बदलेगी, यह तो वही जाने.
यह फिल्म राजनीति की बातें सतही तौर पर ही करती है. प्रधानमंत्री में जो गंभीरता होनी चाहिए वह इस फिल्म में दिखाए गए प्रधानमंत्री के किरदार में बिलकुल नजर नहीं आती. 
फिल्म की कहानी जापान में गेम डैवलपर के रूप में कार्यरत भारत के प्रधानमंत्री दशरथ कौल (बोमन ईरानी) के बेटे अभिमन्यु कौल (जैकी भगनानी) की है व अन्विता चौहान (नेहा शर्मा) उस की गर्लफ्रैंड है. दोनों लिव इन रिलेशन में रहते हैं. भारत के प्रधानमंत्री की कैंसर से मृत्यु हो जाने पर अभिमन्यु अपनी गर्लफ्रैंड के साथ भारत लौटता है. यहां पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेता अभिमन्यु को सर्वसम्मति से पीएम बना देते हैं, ठीक उसी तरह जैसे इंदिरा गांधी को नौमिनेट किया गया था. अभिमन्यु की मदद के लिए वरिष्ठ नौकरशाह अकबर (फारूख शेख) हर वक्त उस के साथ रहता है, ठीक वैसे ही जैसे इंदिरा गांधी के साथ हर वक्त उन का सचिव पी एन हक्सर रहता था.
अभिमन्यु पीएम का पद संभालता है. लेकिन शीघ्र ही उस की प्रेमिका अन्विता के साथ रोमांस करते फोटोग्राफ्स फेसबुक पर अपलोड कर दिए जाते हैं. मीडिया में शोर मचता है. इधर अन्विता प्रैगनैंट हो जाती है तो पीएम के लिए मुिश्कलें बढ़ जाती हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की नजर में अब यह गुड बौय बैड बौय बन जाता है.
चुनावों में 3 महीने का समय है. अचानक अभिमन्यु प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे कर संसद भंग करने की सिफारिश करता है. आखिरकार चुनाव होते हैं और उस की पार्टी बहुमत हासिल करती है और वह फिर से प्रधानमंत्री चुना जाता है यानी यंगिस्तान का यंग पीएम.
जिस तरह सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बना कर उन्हें चुप करा दिया उसी तरह इस फिल्म में भी एक बंगाली किरदार है, जो पार्टी हाईकमान है. पीएम उसे राष्ट्रपति बना कर चुप करा देता है. पीएम दक्षिण भारत के वित्तमंत्री को भी किनारे लगा देता है तथा रक्षामंत्री द्वारा रक्षा सौदों में ली गई दलाली की जांच सीबीआई से कराने का आदेश भी देता है.
फिल्म की यह कहानी एकदम सपाट है. कहानी को जैकी भगनानी पर ज्यादा फोकस किया गया है. अच्छा होता निर्देशक अन्य किरदारों को भी कुछ ज्यादा फुटेज देता. प्रधानमंत्री के अपनी गर्लफ्रैंड के साथ प्रेमप्रसंग के सीन कुछ ज्यादा हो गए हैं. 
फिल्म का निर्देशन कुछ अच्छा है. गति धीमी है. जैकी भगनानी ने अच्छा काम किया है. फारूख शेख ने दर्शकों को आकर्षित किया है. नेहा शर्मा भी ठीकठाक है.
फिल्म का गीतसंगीत साधारण है. कोई गीत याद नहीं रह पाता. अधिकांश शूटिंग नई दिल्ली में की गई है. छायांकन अच्छा है.

ओ तेरी

ओ तेरी द्य
 
दर्शकों को कौमनवैल्थ घोटाले के बारे में याद होगा. नई दिल्ली स्थित खेलगांव में बन रहा एक ओवरहैड ब्रिज कौलेप्स हो गया था. उस वक्त कई बातें उजागर हुई थीं और पाया गया था कि कौमनवैल्थ गेम्स को आयोजित कराने वाले अधिकारियों ने जम कर घोटाला किया था. इस स्कैम के लिए सरकार के एक मंत्री को जेल की हवा भी खानी पड़ी थी.
‘ओ तेरी’ फिल्म भी उसी घोटाले को बेनकाब करती लगती है, साथ ही सत्ता में बैठे नेताओं और मीडिया की मिलीभगत को भी दिखाती है. फिल्म का विषय तो अच्छा है, लेकिन निर्देशक उमेश बिष्ट इसे सही तरीके से बना नहीं पाया है. उस ने 2 नए कलाकारों पुलकित सम्राट और बिलाल अमरोही से बेवकूफों जैसी ऐक्टिंग करा कर फिल्म का बंटाधार ही किया है.
 
इस फिल्म को सलमान खान के बहनोई अतुल अग्निहोत्री ने बनाया है, जिस ने सलमान को ले कर ‘बौडीगार्ड’ बनाई थी. सलमान खान ने अपने बहनोई को सपोर्ट करते हुए इस फिल्म में अपना एक आइटम डांस भी डलवाया है. यह डांस गीत फिल्म के अंत में है. यही डांस गीत कुछ अच्छा है बाकी सारी फिल्म बोर ही करती है.
कहानी एक टीवी चैनल में काम कर रहे 2 युवा रिपोर्टरों प्रताप उर्फ पीपी (पुलकित सम्राट) और आनंद उर्फ एड्स (बिलाल अमरोही) की है. दोनों किसी बे्रकिंग न्यूज को हासिल करने के लिए शहर में घूम रहे हैं. असफल रहने पर चैनल हैड मौनसून (सारा जेन डियास) उन्हें नौकरी से निकाल देती है. तभी एक दिन उन्हें कौमनवैल्थ गेम्स के दौरान बन रहे एक ओवरहैड ब्रिज के टूटने के घोटाले को उजागर करने का मौका मिल जाता है. इस घोटाले में एक मंत्री ख्वाजा (अनुपम खेर) के साथसाथ शैरी (मंदिरा बेदी), ठेकेदार नाहटा और चैनल हैड मौनसून भी शामिल हैं. ख्वाजा पीपी और एड्स के पीछे पड़ जाता है. उस के आदमी इन दोनों की जान के दुश्मन हो जाते हैं लेकिन किसी तरह अपनी जानें बचाते हुए ये दोनों इस स्कैम का पर्दाफाश टीवी चैनल पर कर देते हैं. पुलिस सभी स्कैम करने वालों को पकड़ कर ले जाती है.
फिल्म की यह कहानी एकदम कमजोर है. कुछ संवाद फनी हैं. पुलकित सम्राट और बिलाल अमरोही ने ऊटपटांग हरकतें ही की हैं. बिलाल अमरोही ने तो सलमान की नकल करने की कोशिश की है. सारा जेन डिया ने भी निराश किया है.
फिल्म का निर्देशन बेकार है. निर्देशक ने फिल्म का आइडिया ‘जाने भी दो यारो’ से उड़ाया है. उस ने अनुपम खेर को सुरेश कलमाड़ी और मंदिरा बेदी को नीरा राडिया जैसा दिखाने की असफल कोशिश की है. करप्ट सिस्टम को अपने नौसिखिया कलाकारों से ठीक कराने की उस की कोशिश नाकाम ही रही है. इस के अलावा फिल्म में एक कुत्ते द्वारा भविष्य बताने और भैंस की सेहत को ले कर परेशान गांव वालों की बेसिरपैर की बातें भी भरी पड़ी है.
फिल्म के गाने जबरन ठूंसे गए लगते हैं. फूहड़ जोक्स बोर करते हैं. छायांकन कुछ हद तक ठीक है.

जल

अगर आप मसालेदार, चटपटी फिल्मों का मोह त्याग कर कुछ नई तरह की फिल्म देखना चाहते हैं तो ‘जल’ देखिए. ‘जल’ जैसी फिल्में फिल्म समारोहों के लिए बनाई जाती हैं और इन फिल्मों की खूब तारीफ भी होती है. इस फिल्म को बुसान फिल्म फैस्टिवल के लिए चुना गया है. भारत में प्रदर्शित होने से पहले यह फिल्म विदेशों में प्रशंसा हासिल कर चुकी है. हालांकि यह फिल्म डौक्यूमैंटरी सरीखी लगती है, फिर भी कलाकारों के अभिनय, बेहतरीन फोटोग्राफी और अच्छे निर्देशन की वजह से फिल्म को देखा जा सकता है.
भारत के गांवों के लोग आज भी अंधविश्वासों से घिरे हैं. ‘जल’ में कच्छ के रन में बसे गांवों के लोग पानी के देवता की पूजा करते हैं. वे बक्का (पूरब कोहली) नाम के एक आदमी को पानी का देवता मानते हैं. बक्का मंत्र बुदबुदा कर उन्हें बता देता है कि जमीन के नीचे कहां पानी है.
 
पीने के पानी को ले कर वहां के 2 गांवों में आपसी रंजिश है. गांव वालों को विश्वास है कि बक्का जहां कहेगा, वहां पानी निकलेगा. गांव वाले बक्का को पानी का कुआं खोदने को कहते हैं. तभी गांव में रूस से एक मेमसाहिबा (साइदा जूल्स) आती है. वह गांव में बनी खारे पानी की एक झील की तलहटी में मरे सैकड़ों फ्लैमिंगो पक्षियों पर शोध करने वहां आई है. शोध से उसे पता चलता है कि हर साल आप्रवासी फ्लैमिंगो पक्षियों की बड़ी तादाद वहां आती है और उन पक्षियों के पंखों में नमक चिपक जाने से उन की मौत हो जाती है. वह बक्का की बताई जगह पर ड्रिलिंग कराती है और मीठे पानी का सोता फूट पड़ता है. पक्षियों के लिए मीठे पानी की झील बन जाती है.
गांव वालों के लिए पीने के पानी की समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है. इधर बक्का, जो कभी गांव की लड़की कजरी (कीर्ति कुल्हरी) से प्यार करता था, को दुश्मन गांव की केसर (तनिष्ठा चटर्जी) भा जाती है और वह उस से शादी कर लेता है. केसर प्रैगनैंट हो जाती है. गांव वाले बक्का को पीने के पानी का कुआं खोदने को कहते हैं लेकिन असफल रहने पर गांव वाले बक्का और केसर दोनों को गांव से बाहर रन की तपती रेत पर फेंक आते हैं. वहीं दुश्मन गांव का युवक पुनिया (मुकुलदेव) केसर से रेप करने की कोशिश करता है परंतु ऐन मौके पर कजरी वहां पहुंच कर खुद को पुनिया के हवाले कर केसर को बचा लेती है. वहीं रन में ही केसर प्रसव के दौरान मर जाती है और बक्का पगलाया सा उसे ले कर गायब हो जाता है.
निर्देशक गिरीश मलिक ने इस फिल्म के लिए एक ऐसा विषय चुना है, जिस पर शायद कोई बड़े से बड़ा दिग्गज भी फिल्म बनाने की हिम्मत जुटा सके. कच्छ के रन में, जहां 50 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान रहता हो, शूटिंग करना आसान काम नहीं है.
पूरब कोहली ने अच्छा अभिनय किया है. इस से पहले वह ‘शादी के साइड इफैक्ट्स’ में नजर आया था. कजरी की भूमिका में कीर्ति कुल्हरी के चेहरे पर सांवलासलोनापन झलकता है.
फिल्म का निर्देशन कुछ हद तक अच्छा है. निर्देशक के पास दिखाने के लिए कच्छ के रन की रेत, सूखा और कहींकहीं पानी व ऊंटों पर सवारी करते गांव वालों के अलावा कुछ था भी नहीं. फिल्म में संदेश है कि दुनिया को फ्लैमिंगो पक्षियों को बचाने की तो चिंता है, परंतु पानी के लिए तरसते लोगों की नहीं. फिल्म की अवधि कुछ कम हो सकती थी.
लोकल गाइड के रूप में यशपाल शर्मा का काम अच्छा है. अन्य कलाकार भी अपनीअपनी भूमिकाओं में फिट हैं. पार्श्व संगीत अनुकूल है. सिनेमेटोग्राफी काफी अच्छी है. दूरदूर तक फैला रेगिस्तान और रेत में उठे बवंडरों की फोटोग्राफी लाजवाब है

वक्त के साथ बदलना चाहिए

कैलाश खेर ऐसे गायक, गीतकार व संगीतकार हैं जिन के लिए संगीत बिना शब्दों के मन की भावना को दूसरों तक पहुंचाने की विधा है. अपनी अनूठी आवाज के चलते बौलीवुड में सूफी परंपरा को जिंदा रखने का इरादा रखने वाले कैलाश खेर से उन के अभी तक के सफर के बारे में शांतिस्वरूप त्रिपाठी ने बातचीत की. पेश हैं मुख्य अंश :
 
आप के लिए संगीत के क्या माने हैं?
हृदय की जिन सूक्ष्म भावनाओं को आप शब्दों में या बोल कर बयां न कर पा रहे हों उन्हें जिस विधा से व्यक्त कर पाते हैं, वही संगीत है. मेरे लिए संगीत एक एहसास है. यह एक ऐसी भावना है जिसे व्यक्त करना संभव नहीं है. मेरे लिए संगीत नशा है. मैं संगीत के बिना रह ही नहीं सकता.
आप की पहचान सूफी संगीतकार के रूप में होती है, पर तमाम लोग सूफी संगीत की आलोचना करते हैं. आरोप है कि बहुत से लोग सूफी के नाम पर कुछ भी गाते रहते हैं?
जो लोग सूफी संगीत की आलोचना करते हैं मैं उन के पक्ष में हूं. क्योंकि हर बात सूफी नहीं होती है. हर बात को सूफी होना भी नहीं चाहिए. 
आप के अनुसार सूफी संगीत क्या है?
सूफी संगीत कबीर वाणी है. कबीर वाणी, निर्गुण भक्ति को दर्शाती है. निर्गुण भक्ति भी प्यार का एक रूप है. उसी निर्गुण संगीत को मुगलकाल में सूफी संगीत कहा गया.
देश में तमाम संगीत कंपनियां मौजूद हैं जिन के साथ काम करते हुए आप संगीत की सेवा कर सकते हैं. इस के बावजूद आप ने अपनी खुद की संगीत कंपनी ‘कैलासा म्यूजिक’ शुरू करने की जरूरत क्यों महसूस की?
आप ने बड़े पते की बात कही. हमारे यहां संगीत कंपनियां काफी हैं, जोकि कई गायकों से गवा कर प्राइवेट अलबम निकालती हैं. देश में हर साल कम से कम 1 हजार फिल्में बनती हैं. इस के बावजूद हमें अपनी संतुष्टि के गीत गाने के मौके नहीं मिल पाते. यह क्षेत्र व्यापार का है. हर कोई संगीत का दोहन करने में लगा हुआ है. किसी को अच्छे संगीत की नहीं पड़ी. हम अपनी पसंद का काम नहीं कर पा रहे हैं. अब मेरे अंदर जो असंतोष है, उस के लिए कुछ तो अच्छा करना है. हमें अपनी पीढ़ी या आने वाले पीढ़ी के लिए कुछ काम करना पड़ेगा. इसलिए हम ने अपनी संगीत कंपनी खोली. मैं ने अपनी संगीत कंपनी के तहत अपने 4 अलबम निकाले हैं और इन चारों अलबमों को खासी शोहरत मिली है.
तमाम संगीत कंपनियों का दावा है कि अब संगीत के अलबम नहीं बिकते?
मैं उन की बातों से सहमत नहीं हूं. इस पृथ्वी पर सबकुछ बिकता है. यदि ईमान बिक सक?ता है तो संगीत के अलबम क्यों नहीं बिकेंगे? हमें लगता है कि संगीत कंपनियां संगीत अलबम न बिकने का झूठा प्रचार कर रही हैं. यदि वे सच बोल रही हैं तो इस का अर्थ यह हुआ कि उन का ईमान इतना बिक चुका है कि अब उन्हें सजा मिल रही है. जो अपना ईमान बेच चुके हैं वे अब सामान नहीं बेच पाएंगे क्योंकि जो उन्हें दिख रहा है वह मृतप्राय है.
आप ने तमाम देशों में म्यूजिकल कंसर्ट किए हैं. किस देश में आप को सब से ज्यादा पसंद किया गया? वहां के लोगों ने कभी कुछ कहा?
अमेरिका में मुझे पसंद किया जाता है. अमेरिकियों को भारतीय संगीत ज्यादा पसंद आता है. उन्हें भारतीय संगीत में अध्यात्म नजर आता है. वे आध्यात्म को सुरों में सुनना चाहते हैं. संगीत, भाषा और संस्कृति से परे है. इस वजह से अमेरिकी ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व की हर धरती का इंसान इस के साथ जुड़ता है. आप यकीन करें या न करें, मैं ने 8 साल के अंदर सिर्फ अमेरिका व कनाडा में 300 म्यूजिक कंसर्ट किए हैं. एकसाथ 16 हजार अमेरिकियों ने हमारे हिंदी गाने सुने हैं.
विदेशों में लोग आप के किस गाने को ज्यादा सुनना पसंद करते हैं?
हमारे नौन फिल्मी गीतों के अलबम के गीतों को वे ज्यादा सुनते हैं. मेरा एक गाना है, ‘बम बम लहरी…’ यह उन्हें बहुत पसंद आया. उन्हें लगा कि इस आवाज में माईथोलौजी या अलौकिकता है और वे इस के दीवाने हो गए.
आप को नहीं लगता कि टीवी चैनलों पर प्रसारित हो रहे संगीत प्रधान रिऐलिटी शो में आ रहे बच्चे भटक रहे हैं? वे पढ़ाई से दूर हो जाते हैं?
मैं बहुत ज्यादा रिऐलिटी शो के साथ नहीं जुड़ा हुआ हूं. मैं ‘सारेगामापा लिटिल चैंप्स’ से जज के रूप में जुड़ा हुआ था. उस वक्त मुझे इस की सोच अच्छी लगी थी कि संगीत को बेहतर तरीके से लिया जा रहा है. लोगों में संगीत को ले कर जागरूकता बढ़ रही है. इस शो को जज करते समय मैं ने पाया था कि बच्चे जितना संगीत में रुचि ले रहे हैं, उतना ही वे अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान दे रहे हैं. यदि सभी ऐसा कर रहे हैं तो यह अच्छी बात है.
आप को कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि रिऐलिटी शो में प्रतियोगी बन कर आए बच्चों पर जीत हासिल करने का दबाव रहता है?
कैसा दबाव? जब हम ने ‘सारेगामापा लिटिल चैंप्स’ को जज किया था उस वक्त हम ने बच्चों पर दबाव नहीं बनाया था. बच्चों पर जो तनाव आता है वह उन के मातापिता देते हैं. हर मातापिता अपने बच्चे से ज्यादा से ज्यादा अपेक्षा रखता है. उस वक्त हम बच्चों के साथसाथ उन के मातापिता को भी यह समझाने का प्रयास करते रहे कि यह जीवन का अंत नहीं है. अभी तो शुरुआत है. इन पर दबाव बनाने की बजाय जरूरत है इन नन्ही प्रतिभाओं की सही गू्रमिंग की.
दूसरे गायकों व संगीतकारों के मुकाबले आप बहुत कम रिऐलिटी शो में नजर आते हैं?
अति सर्वत्र वर्ज्यते. हम सभी को पता है कि अति में विनाश है. मैं अच्छा काम करना चाहता हूं और ज्यादा से ज्यादा अच्छा काम कर अपने प्रशंसकों का दिल जीतना चाहता हूं.
सीरियल ‘बालिका वधू’ में आप के स्वरबद्ध गीत सुनाई देते हैं. इस सीरियल में जिन समस्याओं का जिक्र है, क्या आप उन से किसी भी रूप में जुड़ा हुआ महसूस करते हैं?
सीरियल ‘बालिका वधू’ जब शुरू हुआ था तब बाल विवाह इस का मुद्दा था. सीरियल की कहानी पता नहीं कहां से कहां पहुंच गई है. सीरियल वाले हमारे अलबम के गीतों का उपयोग कर रहे हैं. वैसे हमारे देश में समस्याएं बहुत हैं. दुख की वजहें कई हैं तो सुख की भी वजहें कई हैं. देश विकास की ओर बढ़ रहा है. शिक्षा का विकास हो रहा है. लोगों की जीवनशैली और प्रवृत्ति बदल रही है. उसी से जीवन में बहुत बदलाव आ रहा है. 
समाज में आ रहे बदलाव को आप किस तरह से देखते हैं?
मैं झूठी तारीफ नहीं करता. हकीकत यही है कि इंसान बहुत जल्दी तरक्की चाहता है, ऐसे में मूल्यों और संस्कारों का विनाश हो रहा है. इंसान एक ही दिन के अंदर चांद को छूना चाहता है. यह कैसे संभव है? आज की युवा पीढ़ी तुरंत करोड़पति बनना चाहती है. अरे भइया, किसान खेत में बीज बोता है तो उसे भी फसल काटने के लिए कुछ महीनों तक इंतजार करना पड़ता है. इन महीनों में वह किसान सब्र से काम लेता है. पर आज के दौर में किसी के पास सब्र नाम की चीज नहीं है. जब सब्र नहीं है तो आप कैमिकल की चीजों का उपयोग करेंगे, कैमिकल आएगा तो जहर भी आएगा. 
ऐसे में तरक्की की कीमत तो चुकानी पड़ेगी. दूसरी बात हमारे देश में दो चेहरे लगा कर घूमने वालों की कमी नहीं है. इसी के चलते देश का व समाज का सत्यानाश हो रहा है. हमारे यहां आडंबर व पाखंड रचने वालों की संख्या बहुत है.
आज अधीर युवा पीढ़ी में सिर्फ निगेटिविटी है?
मैं ने ऐसा नहीं कहा. आज की युवा पीढ़ी सजग है. वह सच के लिए लड़ना जानती है. तभी तो हम ने 2010 में अन्ना हजारे के लिए एक गीत लिखा था, जिस के बोल हैं, ‘अंबर तक यही नाद गूंजेगा, सच का नाद अंबर तक गूंजेगा…’
अन्ना हजारे के साथ आप क्यों जुड़े थे?
हम हमेशा सत्य के साथ जुड़ते हैं. और जुड़े रहेंगे. लाखों अन्ना हजारे इस पृथ्वी पर, भारत में आए हैं. हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या हमेशा अधिक रही है जिन्होंने अन्याय, दुराचार सहित देश के अंदर जितनी भी बुराइयां हैं, उन के खिलाफ अपना जीवन होम किया है. अपने जीवन की संपूर्ण ऊर्जा परिवर्तन के लिए, देश के पुनर्निर्माण के लिए लगाई है.
 
 

अनोखी शर्त

सुबह तारा जब विवेक  के आगोश से खुद को छुड़ा कर बाहर निकली तो विवेक के प्रति उस के मन में बसी सारी भ्रांतियां भी इस प्यार की गरमाहट में पिघल चुकी थीं और वह एक नई सुबह की किरणों की तरह नए जीवन के सपने बुनने लगी. वह यही सोच रही थी कि आखिर कैसे वह एक अनजाने से डर के कारण शादी के बाद भी पिछले 6 माह तक प्यार के इन सुनहरे लमहों को नहीं जी पाई थी क्योंकि सुहागरात के दिन ही उस ने अपने पति विवेक को एक ऐसी शर्त में बांध दिया था और उस की परीक्षा लेती रही. इस अनोखी शर्त में बंध कर दोनों इतने दिनों तक एकदूसरे का प्यार पाने के लिए तड़पते रहे. 
सुबह की बयार भी तारा के जेहन में उमड़ रही लहरों को जैसे नई गति प्रदान कर रही थी और तारा की नैसर्गिक खूबसूरती में आज अजीब सी रौनक बढ़ आई थी जो पिछले 6 महीने में पहली बार ही दिखाई दी.
इन सुखद अनुभूतियों के साथ तारा उन कड़वी यादों के अतीत में खो गई जिन के कारण वह इतने दिनों तक एक घुटनभरी जिंदगी जीने को बाध्य हो गई थी. 
2 बहनों और 1 भाई में सब से बड़ी तारा मम्मीपापा की सब से दुलारी होने के कारण बचपन से ही उसे जो भाता वही करती. अपनी मस्तीभरी जिंदगी में कब उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रख दिया, उसे बिलकुल पता ही नहीं चला.
मजे से कट रही थी उस की जिंदगी, आंखों का तारा जो थी वह अपने मम्मीपापा की. उस के मम्मीपापा उसे पलकों पर बिठा कर रखते, वह भी सब पर जान छिड़कती और उन के प्रति अपना हर फर्ज निभाती.
हंसतेखेलते जब उस ने स्नातक की डिगरी अच्छे नंबरों से हासिल कर ली तो एक दिन मम्मी ने पूछा, ‘आगे क्या करने का इरादा है, बेटी?’
‘कुछ नहीं. बस, यों ही मस्ती करूंगी.’
‘मस्ती की बच्ची, मैं तो सोच रही हूं कि तेरी शादी कर दूं.’
‘नहीं मम्मी, अभी नहीं, क्यों अभी से ही मुझे अपने से दूर करने पर तुली हो?’ रोंआसी सी सूरत बना कर वह मम्मी की गोद में समा गई.
‘तो फिर कर लो कोई नौकरी, नहीं तो पापा तुम्हारी शादी कर देंगे,’ उस के बालों को सहलाते हुए मम्मी बोलीं.
‘नौ…क…री…ओके, डन. मम्मी, मैं आज से ही नौकरी की तैयारी करनी शुरू कर देती हूं. डिगरी में अच्छे अंक तो हैं ही, थोड़ी तैयारी करने पर नौकरी मिल ही जाएगी,’ उस ने चहक कर कहा.
‘तो फिर ठीक है. पर अगर 6 महीने में नौकरी नहीं मिली तो मैं तुम्हारे पापा को मना नहीं कर पाऊंगी,’ मम्मी ने उस के गालों को थपथपाते हुए कहा और अपने कमरे में चली गईं.
मम्मी के जाते ही तारा सोच में पड़ गई कि अब इस समस्या से कैसे निबटे. अखबार में तो कई रिक्तियां प्रकाशित होती हैं. क्यों न किसी अच्छी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया जाए, यही सोच कर उस ने अखबार उठाया तो उस की नजर रिक्तियां कौलम में एक विज्ञापन पर पड़ी, ‘जरूरत है राज्य सरकार में परियोजना सहायक की. आवेदक को स्नातक होना अनिवार्य है और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना चाहिए,’ यह देखते ही उस का चेहरा खिल उठा क्योंकि उस ने स्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी, इसलिए उस ने फौरन आवेदन कर दिया.
कुछ ही दिनों में साक्षात्कार का बुलावा आया और वह पापा के साथ साक्षात्कार देने पहुंच गई. साक्षात्कार अच्छा हुआ और उसे उस के लखनऊ से दूर कानपुर में नौकरी की पेशकश की गई तो उस ने फौरन स्वीकार कर लिया कि चलो कम से कम 1-2 साल शादी के झंझट से मुक्ति मिली. थोड़े ही दिनों में उसे नियुक्तिपत्र मिल गया और तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उस ने नौकरी जौइन कर ली.
अब शुरू हुआ एक ऐसा सिलसिला जिस में सोमवार से शनिवार तक तो नौकरी में निकल जाते, फिर आती एक दिन की छुट्टी. इसलिए शनिवार आते ही तारा सारा काम जल्दीजल्दी निबटा कर दोपहर को ट्रेन पकड़ कर शाम तक लखनऊ हाजिर हो जाती, फिर सोमवार की सुबह इंटरसिटी से कानपुर पहुंच कर सीधे औफिस. यही अब तारा की साप्ताहिक दिनचर्या बन गई थी.
तारा अब अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहती, पर व्यस्तता के कारण वह ऐसा कर नहीं पाती थी. इस तरह उस के जीवन में एक अजीब सा एकाकीपन या यों कहें कि एक खालीपन सा आ गया था जिसे वह चाह कर भी नहीं भर पा रही थी.
दिखने में सुंदर व स्मार्ट होने के कारण औफिस में वह सब की नजरों में चढ़ी रहती. एक दिन उस के एक वरिष्ठ सहयोगी रमेशजी ने उस से कहा, ‘बेटी, औफिस वाले तुम्हारे बारे में तरहतरह की गौसिप करते हैं, अकेली लड़की के बारे में अकसर ऐसी बातें तो होती ही रहती हैं. यदि तुम्हारी शादी हुई होती तो शायद लोग तुम्हारे बारे में ऐसी बातें न करते. तुम्हारी उम्र भी शादी की हो चुकी है. यदि हो सके तो जल्दी से शादी कर के सब का मुंह बंद कर दो.’
रमेशजी की बात सुन कर वह दंग रह  गई कि सामने मीठीमीठी बातें करने  वाले उस के सहयोगी उस के बारे में कैसे गंदे खयाल रखते हैं, पर वह नहीं चाहती थी कि अभी शादी के बंधन में बंधे क्योंकि इसी से बचने के लिए ही तो वह इतनी कष्टपूर्ण जिंदगी जी रही है. पर आखिर होनी को कौन टाल सकता है. समय ने करवट बदली और घर में भी शादी की चर्चा ने जोर पकड़ लिया. आखिरकार पापा ने लखनऊ में ही एक सरकारी अधिकारी विवेक से उस की शादी तय कर दी और उस से कहा कि वह चाहे तो उस से मिल कर अपनी पसंद बता दे. बुरी फंसी बेचारी, आखिरकार उसे हां करनी पड़ी और शादी की तारीख तय हो गई. मिलनेमिलाने के सिलसिले के बाद जब शादी का दिन नजदीक आया तो 
1 माह की छुट््टी ले कर वह अपने घर आ गई और शादी की तैयारियों में लग गई. घर में खुशी का माहौल था, घर की पहली शादी जो थी. भाई रोहन और बहन बबली तो हमेशा भागतेदौड़ते, व्यस्त नजर आते थे. घर में जीजाजी आने वाले थे, इसलिए दोनों बहुत खुश थे.
एक दिन तारा के मोबाइल पर   विवेक का फोन आया. फोन उठाते ही विवेक की आवाज आई, ‘जल्दी से तैयार हो जाओ, तारा, तुम्हारे लिए साडि़यां और गहने खरीदने बाजार चलना है.’ 
तारा को एक झटका सा लगा क्योंकि एक तो विवेक ने शादी तय होने के बाद से एक भी बार फोन नहीं किया और आज पहली बार फोन भी किया, वह भी ऐसे जैसे वह उस की होने वाली पत्नी नहीं बल्कि आया हो और कपड़े व गहने खरीद कर वह उस पर कोई उपकार कर रहा है. उसे गुस्सा तो बहुत आया परंतु उस ने कुछ कहने के बजाय बस इतना ही कहा, ‘ठीक है, मैं आधे घंटे में तैयार हो जाती हूं.’
‘ठीक है, तुम तैयार हो कर सहारागंज पहुंचो, मैं 1 घंटे में तुम्हें वहीं मिलूंगा,’ यह कह कर विवेक ने फोन काट दिया.
जिस रूखेपन से विवेक ने फोन पर उस से बात की थी, उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा पर वह कुछ कहने के बजाय जल्दी से तैयार हुई और आटो पकड़ कर सहारागंज पहुंच गई. विवेक उसे वहीं मिल गया. अकेले में पहली मुलाकात, न कोई औपचारिकता और न ही कोई प्यारभरी बात. विवेक ने यह भी नहीं कहा कि चलो पिज्जाहट में चल कर पिज्जा खाते हैं और थोड़ा घूमते हैं. बस, उस ने कहा कि चलो, और दोनों हजरतगंज में खरीदारी करने निकल गए.
अपने दोस्तों से शादी के पूर्व मुलाकातों के कई रोमांटिक किस्से तारा ने सुन रखे थे पर उसे विवेक के इस व्यवहार से झटका लगा, उसे विवेक से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी. खरीदारी के दौरान भी विवेक तारा पर अपनी पसंद लादता रहा और उस ने वही खरीदा जो उसे पसंद था. तारा चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाई. बस, वह विवेक के साथ घूमती रही. खरीदारी के बाद वह बेरुखे मन से उसे आटो पर बिठा कर चला गया. न कोई औपचारिकता, न कोई प्यार की बात.
तारा को लगा कि विवेक सचमुच रोमांटिक व्यक्ति नहीं है और उसे उस की पसंदनापसंद का बिलकुल भी खयाल नहीं है. यह सोचते हुए उस के मन में विवेक के प्रति कड़वाहट भर गई. उस ने सोचा कि जब विवेक ऐसा है तो उस के परिवार वाले कैसे होंगे और वह उन के साथ कैसे सामंजस्य बिठा पाएगी. पर अब वह कर भी क्या सकती थी, शादी बिलकुल करीब थी और वह घर में कोई हंगामा खड़ा नहीं करना चाहती थी.
शादी धूमधाम से संपन्न हुई. मम्मीपापा ने बड़े अरमान से अपनी सारी जमापूंजी इस शादी में लगा दी ताकि वर पक्ष को कोई शिकायत न हो. विदाई के वक्त सारा परिवार गाड़ी के आंखों से ओझल होने तक खूब रोया और वह भरे मन से ससुराल पहुंच गई. उस की सोच के विपरीत उस के ससुराल वालों ने पलकें बिछा कर उस का स्वागत किया और फिर शुरू हुई शादी के बाद की रस्मअदायगी.
शादी के पूर्व विवेक से मुलाकात ऐसी कड़वी यादें छोड़ गई थी कि जिस से पार पाना तारा के लिए मुश्किल था. वह दिनभर यही सोचती रही कि पहली मुलाकात से जो प्यार की मिठास घुलनी चाहिए उस ने कड़वाहट का रूप ले लिया और करीब आने के बजाय दिलों की दूरियां बढ़ गई थीं. बारबार उस के दिल में यही खयाल आ रहा था कि जो व्यक्ति उस के आत्मसम्मान का खयाल नहीं रख सकता, उस के साथ वह अपनी पूरी जिंदगी कैसे बिता पाएगी.
इसी बीच, सारी रस्मअदायगी पूरी होतेहोते काफी रात हो गई और सभी रिश्तेदार चले गए. अब विवेक की भाभी ने तारा को छेड़ते हुए सुहागरात के लिए उसे उस के कमरे में पहुंचा दिया और अपने कमरे में चली गईं. अंदर ही अंदर बेचैन तारा इस उधेड़बुन में थी कि ‘आखिर वह ऐसे शख्स, जिस के मन में उस के प्रति जरा सा भी प्यार नहीं है, कैसे उसे अपना सर्वस्व सौंप दे. हिंदू परंपरा में शादी के बाद उस के शरीर पर तो अब विवेक का हक था और वह उसे कैसे रोक सकती है?’ यह सोचते ही उस का चेहरा पीला पड़ने लगा.

इधर, विवेक के कुछ दोस्त उसे घेर कर पहली रात को ही ‘चिडि़या मार’ लेने की हिदायतें और नुस्खे बता रहे थे और विवेक भी सुहागरात के सपने बुनता हुआ रोमांचित हो रहा था. आखिरकार देर रात को उस के दोस्तों ने उसे कमरे में ढकेल दिया और अपनेअपने घर चले गए. विवेक के चेहरे पर तीव्र उत्तेजनाओं का ज्वार स्पष्ट नजर आ रहा था, मन तेजी से कमरे की ओर जाने को बेताब था किंतु शर्म, संकोच, संयम पारिवारिक मूल्यों की जंजीरों ने जैसे उस के पांव जकड़ रखे थे. धीरेधीरे सकुचाते हुए विवेक ने कमरे में प्रवेश किया और दरवाजा बंद कर बिस्तर की ओर बढ़ने लगा. तारा बिस्तर पर सिमटी सी, सकुचाई सी बैठी थी पर उस ने मन ही मन एक दृढ़ फैसला कर लिया था. विवेक ने सब से पहले तारा का घूंघट उठाया और उस का सुंदर चेहरा देख कर बोला, ‘तारा, आज सचमुच तुम बिलकुल चांद सी लग रही हो. आज से मैं तुम्हें तारा नहीं चंदा कहूंगा और तुम्हें संसार की सभी खुशियां देने का प्रयास करूंगा. आज से हम एक नई जिंदगी शुरू करने जा रहे हैं. बोलो, दोगी न मेरा साथ?’
विवेक के प्रति मन में कड़वाहट लिए तारा को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया. विवेक ढेर सारी बातें करता रहा पर तारा यह सोचने में लगी रही कि आखिर वह विवेक को कैसे सबकुछ कह पाएगी.
अचानक विवेक को शरारत सूझी और दोस्तों की सलाह के अनुसार उस ने अपना हाथ तारा के कंधे पर रखा और फिर कंधे से नीचे सरकाना शुरू कर दिया. जैसे ही विवेक का हाथ नीचे आया, तारा उस का हाथ पकड़ते हुए बोली, ‘रुको विवेक…’ 
यह सुनते ही विवेक को जैसे सांप सूंघ गया. उस ने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी कि सुहागरात के दिन उसे ऐसा सुनना पड़ेगा परंतु धैर्य से काम लेते हुए उस ने पूछा, ‘क्या बात है, चंदा?’
इतना सुनना था कि तारा शुरू हो गई, ‘विवेक, शायद इस के लिए यह समय सही नहीं है, क्योंकि हम अभी तक एकदूसरे को अच्छी तरह से समझ नहीं पाए हैं और ऐसे में मैं अपनेआप को तुम्हें सौंप नहीं सकती.
‘आज मैं ने एक फैसला लिया है कि हम 1 वर्ष तक जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाएंगे. इस 1 वर्ष के दौरान मैं पूरी तरह से तुम्हें और तुम्हारे परिवार को समझने की कोशिश करूंगी और पूरे समर्पण के साथ तुम्हारे हर सुखदुख की साथी बनूंगी और तुम भी मेरे परिवार के सदस्यों के साथ घुलनेमिलने का प्रयास करोगे. 
1 साल बाद यदि हमारा विश्वास अटूट रहा तो फिर हम हमेशा के लिए एक हो जाएंगे, वरना शायद हमारे रास्ते अलगअलग भी हो सकते हैं. ऐसे में मैं अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर पछतावे में नहीं रहना चाहती.’
जैसे कोई बदले की भावना से प्रेरित हो कर बंदूक की सारी गोलियां दाग देता है और फिर एक लंबी सांस लेता है, कुछ ऐसे ही तारा एक ही सांस में सबकुछ विवेक को कह गई. तारा की बातें सुन कर विवेक को काटो तो खून नहीं. उस की हालत ऐसी हो गई थी कि उसे न कुछ कहते बनता था न ही सुनते. उस ने हाथ ऐसे हटाया मानो बिजली का झटका लग गया हो. उस समय उस ने कुछ न बोलना ही बेहतर समझा और चुपचाप तकिया उठा कर सोफे पर सोने चला गया.
अगले दिन सुबह जब दोनों कमरे से बाहर निकले तो विवेक की भाभी उन दोनों को छेड़ने लगी पर दोनों ने बिलकुल जाहिर नहीं होने दिया कि उन के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
तारा इन सब बातों को भूलते हुए घर के काम में लग गई और धीरेधीरे वह परिवार के सारे सदस्यों से घुलमिल गई और उस घर को अपना बना लिया परंतु विवेक के प्रति उस के मन में कड़वाहट वैसी ही बनी रही. दिन में तो सबकुछ ठीक चलता परंतु रात में न सिर्फ उन के बिस्तरों के बीच बल्कि उन के दिलों के बीच की दूरियां भी साफ नजर आतीं.
विवेक ने भी अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी इसलिए वह दिनभर घर में ही रहता और बच्चों के साथ खेलता रहता. खेल की आड़ में ही वह कभीकभी तारा के शरीर से छेड़खानी भी कर देता. हालांकि विवेक के छूते ही उस के शरीर में करेंट सा दौड़ जाता पर वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाती.
इसी बीच, तारा कई बार अपने मायके भी गई और विवेक को भी साथ ले गई. विवेक उसे वहां छोड़ आता पर वहां ज्यादा देर रुकता नहीं था. वह रोहन व बबली से भी ज्यादा बातें नहीं करता था. बस, गंभीर बना रहता था. यहां तक कि मम्मीपापा के साथ भी वह औपचारिक ही बना रहता. 1-2 दिन रहने के बाद विवेक आ कर उसे वापस ले आता. विवेक का यह व्यवहार भी तारा को पसंद नहीं आया और उस के मन में विवेक के प्रति कड़वाहट और बढ़ती चली गई.
इसी बीच छुट्टियां बीत जाने के बाद तारा ने फिर से औफिस जौइन कर लिया. सभी सहकर्मियों ने उसे बधाई दी पर तारा उन्हें क्या कहती? बस, मन से उस ने औफिस का काम शुरू कर दिया. दिन तो औफिस में बीत जाता पर रात आते ही तारा के मन में कई तरह के द्वंद्व शुरू हो जाते कि कहीं उस ने शादी कर के कोई गलती तो नहीं कर दी? क्या उसे अब इस रिश्ते से मुक्ति ले लेनी चाहिए जिस रिश्ते में उस के पति का उस में या उस के परिवार के प्रति कोई झुकाव न हो? वह अपनेआप से लड़ती रहती. पर वह अपना गम सुनाए तो किसे. जब उस के दोस्त उस की सुहागरात के बारे में तरहतरह की बातें पूछते और उसे छेड़ते तो तारा बनावटी कहानियां सुना कर सब को शांत कर देती.
इस दौरान, अकसर विवेक से फोन पर बातें भी होतीं पर रिश्तों की कड़वाहट इन बातों में साफ नजर आती. इस बीच वह कई बार लखनऊ भी आई और अपने घर जाने के बजाय सीधे ससुराल गई और ससुराल वालों को कभी इस का एहसास नहीं होने दिया कि उस के और विवेक के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा. वह पूरे समर्पण के साथ अपने सासससुर की सेवा करती और बच्चों के साथ खेलती. घर के सारे लोग उस के व्यवहार से काफी प्रसन्न थे पर रात को विवेक के कमरे में आते ही कमरे में शांति छा जाती. विवेक ने भी कभी उसे छूने या उस के बिस्तर पर साथ सोने के लिए जबरदस्ती नहीं की.
तारा हमेशा यही सोचती रहती कि जिस तरह से उस ने विवेक के परिवार को अपना लिया है उसी तरह से विवेक भी उस के परिवार को अपना ले और उन के हर सुखदुख में शामिल हो.
यही सोच कर उस ने विवेक की पसंदनापसंद का पता लगा कर उस के अनुरूप खुद को ढालना शुरू कर दिया. जब उसे पता चला कि विवेक को डांस एवं म्यूजिक बहुत पसंद है तो उस ने औफिस के बाद एक डांस एवं म्यूजिक क्लास जौइन कर ली ताकि वह किसी मौके पर उसे सरप्राइज दे सके. और जल्दी ही वह मौका आ गया. विवेक के चाचा के लड़के की शादी में वह गई और उस ने बच्चों के साथ मिल कर खूब डांस व मस्ती की. विवेक को यह सब काफी अच्छा लगा पर वह हमेशा यही सोचता रहता कि आखिर तारा ने उस के साथ ऐसा क्यों किया.
विवेक का जन्मदिन भी करीब आ रहा था और तारा उस के लिए एक और सरप्राइज की योजना बना चुकी थी ताकि वह विवेक को सरप्राइज दे सके. अपनी योजना के अनुसार जन्मदिन के दिन उस ने पहले से ही घर के सारे सदस्यों को लखनऊ के एक रैस्तरां में भेज दिया. विवेक यही सोच रहा था कि तारा ने आज उसे जन्मदिन की बधाई तक नहीं दी. हर साल घर में भी सभी को उस का जन्मदिन याद रहता है पर आज सब बिना बताए अचानक चले कहां गए.
तभी तारा ने विवेक से कहा, ‘विवेक, मेरी सहेली प्रेरणा ने मुझे बुलाया है, क्या तुम मुझे उस के घर छोड़ दोगे?’
‘क्यों नहीं, चलो,’ बिना कुछ पूछे विवेक तारा को बाइक पर बैठा कर चल दिया.
रैस्तरां आते ही तारा ने विवेक से कहा कि चलो रैस्तरां में कौफी पीते हैं. यहां की कौफी बड़ी टेस्टी होती है.
जब विवेक और तारा कौफी का और्डर दे कर इंतजार कर रहे थे तभी पीछे से सारे बच्चों ने शोर मचाते हुए विवेक को घेर लिया और जोरजोर से चिल्लाने लगे, ‘हैप्पी बर्थडे टू यू विवेक चाचा.’
अब विवेक को समझ आया कि इस तूफान के पूर्व शांति का कारण यह था. अब तक सारा परिवार इकट्ठा हो चुका था, सब ने खूब ऐंजौय किया.
विवेक काफी खुश था. इस घटना से उस के मन में तारा के प्रति प्रेम और बढ़ गया. पर वह यह सोचने लगा कि वह कैसे तारा को खुश करे ताकि उस के मन का द्वेष मिटे और दोनों एक खुशहाल जीवन जी सकें. इस तरह शादी के 6 माह बीत गए पर तारा अब तक उस के करीब नहीं आई. तारा का जन्मदिन करीब था. विवेक ने भी सोचा कि वह तारा के जन्मदिन पर कानपुर जा कर उस के जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगा.
यही सोच कर वह बिन बताए जन्मदिन के दिन सुबह ही तारा के घर पहुंच गया और उसे जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं और बोला, ‘आज छुट्टी ले लो तारा, हम लोग कहीं घूमने चलते हैं.’
जवाब में तारा ने कहा, ‘नहीं, विवेक, औफिस में काफी काम है और मैं पहले से बता कर भी नहीं आई हूं, इसलिए औफिस तो जाना ही पड़ेगा पर मैं कोशिश करूंगी कि दोपहर तक सारा काम निबटा कर आधे दिन की छुट्टी ले लूं.’
अचानक विवेक के कानपुर आ जाने से तारा अचंभित थी और औफिस में यही सोचती रही कि कहीं यह विवेक की कोई चाल तो नहीं क्योंकि वह तो यहां अकेले रहती है. इसलिए शायद वह इस का फायदा उठाना चाहता हो.
फिर भी अपने वादे के अनुसार वह दोपहर को छुट्टी ले कर घर आ गई और तैयार हो कर विवेक के साथ निकल गई. विवेक ने दिनभर घूमने व शाम को डिनर करने के बाद लखनऊ लौटने के बारे में कहा तो तारा ने फौरन हां कर दी और खुश होते हुए मन ही मन कहा, ‘चलो अच्छा हुआ, आज तो बच गई मैं.’
थोड़े ही दिन में सर्दियां शुरू हो गईं और रात को स्कूटी चलाने के कारण तारा को ठंड लगने से वायरल फीवर हो गया. जब उस ने विवेक को इस बारे में बताया तो वह फौरन कानपुर पहुंच कर तारा को बड़े प्यार से घर ले आया और तुरंत डाक्टर के पास ले गया. उस के चेहरे की घबराहट तारा साफसाफ पढ़ सकती थी. उसे यह एहसास हुआ कि विवेक को उस की चिंता है. उस ने अपने दफ्तर से छुट्टी ले ली और दिनभर तारा के पास ही बैठा रहता और रात को जब सब चले जाते तो वह जा कर सोफे पर सो जाता.
विवेक की प्यारभरी देखभाल से तारा जल्दी ठीक हो गई और कानपुर जाने के लिए तैयार हो गई तो विवेक ने कहा, ‘अभी नहीं, तुम काफी कमजोर हो गई हो, इसलिए थोड़े दिन आराम कर लो फिर चली जाना.’
इस प्यारभरे अनुरोध को वह टाल नहीं सकी. अगले ही दिन विवेक उसे मम्मीपापा से मिलाने ले गया. इस दौरान तारा ने महसूस किया कि विवेक बबली और रोहन के साथ काफी घुलमिल गया है और उन के साथ काफी हंसीमजाक कर रहा है. दूसरी ओर, इस बार मम्मीपापा के साथ भी उस का व्यवहार प्रेमभरा था.
तारा विवेक के चेहरे पर यह परिवर्तन साफ देख पा रही थी. परंतु उस ने सोचा कि अभी तो सिर्फ 6 माह ही बीते हैं, अभी तो वह पूरे 6 माह विवेक को परखेगी तभी उसे सच्चे मन से अपनाएगी.
2 दिन वहां रुकने के बाद विवेक रात को तारा को ले कर अपने घर लौट आया. कड़ाके की सर्दी में बाइक चलाने के कारण विवेक को सर्दी लग गई पर उस ने तारा को कुछ नहीं बताया और सोफे पर सोने चला गया.
तारा विवेक में आए परिवर्तन को ले कर काफी खुश थी और सुनहरे दिनों के सपने बुनते हुए पता नहीं कब उस की आंख लग गई. 
रात को जोरजोर से कराहने की आवाज सुन कर उस की आंख खुली तो उस ने देखा कि विवेक ठंड से कंपकंपाते हुए सिकुड़ कर सोफे पर सोया है. यह देखते ही वह घबरा कर उठी और विवेक के पास जा कर उसे रजाई ओढ़ा कर बिस्तर पर लाने लगी तो विवेक ने कहा कि नहीं, मैं यहीं ठीक हूं, सुबह तक ठीक हो जाऊंगा.
तारा ने जबरदस्ती विवेक को बिस्तर पर ला कर लिटा दिया और तेजी से उस के पैर सहलाने लगी. पैर सहलाने से भी जब उस के शरीर की कंपन कम नहीं हुई तो वह बिना सोचेसमझे विवेक के सीने से लिपट गई और उसे जोर से जकड़ लिया. अचानक मिली नारी देह की गरमी से विवेक के शरीर की कंपन ठीक हो गई. आराम मिलते ही उस ने तारा से अलग होने के लिए उस की पकड़ ढीली करने को कहा तो तारा ने अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए उसे जोर से जकड़ लिया और बोली, ‘बस, विवेक, तुम्हारे धैर्य का इम्तिहान अब खत्म हुआ, ऐसे ही पड़े रहो, बस.’
अब तक विवेक को आराम मिल चुका था. वह भावुक होते हुए बोला, ‘तारा, बचपन से ही मैं संकोची स्वभाव का हूं, मुझे कभी लड़कियों से बातें या दोस्ती करने का मौका ही नहीं मिला. इसलिए मैं कभी समझ ही नहीं पाया कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं. यही कारण है कि मैं तुम से और तुम्हारे परिवार के सदस्यों से ज्यादा घुलमिल नहीं पाया परंतु जब तुम ने मेरे परिवार को अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और मेरी हर पसंदनापसंद का खयाल रखा तो मैं ने सोचा कि जब तुम मेरे लिए इतना बदल सकती हो तो मैं तुम्हारे लिए क्यों नहीं बदल सकता. यही सोच कर मैं ने अपनेआप में बदलाव लाना शुरू कर दिया है. 
‘बचपन से मैं ने सदैव ही आगे रहते हुए सभी कार्य किए थे और आगे रहने की इसी होड़ के चलते मुझे किसी की भावनाओं को समझने का मौका नहीं मिला और इसलिए तुम्हारे जज्बातों को न समझने की भूल कर बैठा. वैसे तारा, मैं तुम्हें कभी इग्नोर करना नहीं चाहता था,’ विवेक के स्वर में एक पश्चाताप मिश्रित दुख का भाव था, जिसे तारा ने बखूबी पढ़ लिया.
फिर वह तारा की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘तारा, अभी कम से कम 6 महीने और तुम्हें मुझ से कोई खतरा नहीं है.’
उस की बातें सुन कर तारा अपनी आंखों में शरारत लिए विवेक के गालों को चूमते हुए बोली, ‘तारा नहीं, चंदा, तभी तो आप की चंदा कह रही है कि आप ने अपना इम्तिहान वक्त से पहले ही डिस्ंिटक्शन के साथ पास कर लिया है और इनाम के हकदार बन गए हैं. सच कहूं, विवेक,’ तारा ने सकुचाते हुए कहा, ‘मुझे भी तुम्हारे शादी के पहले के इग्नोरैंस की अपेक्षा बाद की दूरी बहुत खली, पिछले 6 महीने में हर रात मैं ने भी एक परीक्षा दी है, हर रात एक ही प्रश्न ने मेरी नींद उड़ा दी थी.’
‘कौन सा प्रश्न, चंदा?’ विवेक के चेहरे पर प्रश्नमिश्रित आश्चर्य के भाव थे.
तारा ने कहा, ‘यही कि मैं ने जो अनोखी शर्त रखी है वह सही है या गलत?’
यह कह कर विवेक की चंदा विवेक से लिपट गई. अब उन के जीवन में एक नई सुबह की शुरुआत हो चुकी है. और अनोखी शर्त अब जीवन के अनोखे आनंद में जैसे खो सी गई थी.
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