स्कूली बच्चों के लिए शुरू की गई मिड डे मील योजना का जहरीला पहलू उस वक्त सामने आया जब बिहार के एक स्कूल में इसी योजना के तहत मिलने वाले विषाक्त भोजन को खा कर कई बच्चे मौत की नींद सो गए. सरकारी स्कूलों की लापरवाही, भ्रष्ट आचरण और जरूरी मानकों की अनदेखी ने कैसे इस भयावह हादसे को अंजाम दिया, पड़ताल कर रहे हैं बीरेंद्र बरियार ज्योति.

बच्चों की लाशों से लिपट कर रोते उन के मांबाप और घर वालों को देख कर अच्छेअच्छों का कलेजा दहल गया. मांबाप अपने बच्चों को उठा कर इधरउधर इलाज के लिए दौड़ लगा रहे थे. जबकि अस्पतालों में डाक्टर और दवा का पुख्ता इंतजाम नहीं था. अपने दोनों बच्चों राहुल और प्रहलाद को खो चुके हरेंद्र मिश्रा की मानो आवाज ही गुम हो गई तो अपनी मासूम बेटी की लाश देख कर अजय के करुण क्रंदन से अस्पताल की दीवारें हिल उठीं.

वे रोते हुए कहते हैं कि बेटी को पढ़ने के लिए सरकारी स्कूल भेजा था, पर क्या पता था कि इस की कीमत बेटी की जान दे कर चुकानी पड़ेगी. राजू साव के घर का इकलौता चिराग शिव हमेशा के लिए खामोश हो चुका है.  बच्चों को उन के गरीब मांबाप ने इस उम्मीद से स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा था कि उन्हें मुफ्त में भरपेट खाना मिल जाएगा और पढ़ाई कर के वे बड़े आदमी बन सकेंगे. 16 जुलाई की दोपहर में स्कूल में बच्चों को सरकारी खाना दिया गया पर 1 निवाले ने उन की जिंदगी ही लील ली. खाना खाते ही किसी को उलटी होने लगी तो किसी को दस्त होने लगे. किसी का सिर चकराने लगा तो कोई बेहोश हो गया. देखते ही देखते समूचे गांव में यह खबर फैल गई और मांबाप अपनेअपने बच्चों की सलामती की दुआ करते हुए स्कूल की ओर भागे. कुछ की स्कूल में ही मौत हो गई तो कोई अस्पताल पहुंचतेपहुंचते रास्ते में ही दम तोड़ गया. गांव भर में रोनेचिल्लाने की दर्दनाक आवाज ने इंसानियत को हिला कर रख दिया. सरकार ने बच्चों की लाशों की कीमत लगाते हुए मुआवजे का ऐलान कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया.

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