इस समय दुनिया की हर उस सेना के पास ड्रोन मौजूद हैं जो आधुनिक है और खुद को सशक्त मानती है. वास्तव में यह ड्रोन युग है. बिना ड्रोन तमाम सेनाएं आज की तारीख में अपने को अधूरी पाती हैं क्योंकि चाहे दुश्मन से मोरचा लेने की बात हो या फिर आतंकवादियों से निबटना हो, ड्रोन का कोई जवाब नहीं है. सवाल उठता है ड्रोन है क्या?
सीधी सरल भाषा में कहें तो ड्रोन एक ऐसा वायुयान है जिस में पायलट नहीं होता. इसे यूएवी यानी अनमैंड एरियल व्हीकल भी कहते हैं. आप ने मौडल प्लेन सुने होंगे. ये हवाई जहाज के छोटे से प्रतिरूप होते हैं, जिन्हें कोई हाथ में रिमोट ले कर उड़ा सकता है. रिमोट के जरिए ही ये दाएं से बाएं, बाएं से दाएं, ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर भी हो जाते हैं. नए उन्नत ड्रोन कंप्यूटराइज्ड दिशानिर्देश से भी संचालित होते हैं. विदेशों में ये बच्चों के खिलौने हैं लेकिन ड्रोन इतना बचकाना नहीं है. हां, खिलौना लगने वाला यह बेहद जटिल और बेहद उन्नत प्लेन है.
मौडल प्लेन को उन्नत कर के ऐसे बना दिया जाता है कि 3 हजार फुट से ज्यादा की ऊंचाई तक उड़ सके. इसे ऐसा लचीला रूप दिया गया है कि समुद्री चक्रवात में भी यह उड़ता रह सकता है, सूचनाएं और चित्र भेजता रहता है और वह भी 1-2 घंटे नहीं, 80 से 90 घंटे लगातार. यह बिजली, ईंधन और सौर ऊर्जा से संचालित हो सकता है. ड्रोन में कोई चालक नहीं होता. इसे दूर बैठा एक औपरेटर चलाता है. खुद ड्रोन के कंप्यूटर विभाग में स्थान का विशेष खाका होता है. इस के अगले सिरे में बेहद शक्तिशाली कैमरे फिट होते हैं जो काफी ऊंचाई से किसी भी स्थान या सामान की साफ तसवीर खींच सकते हैं. अगलबगल की खिड़की में कोई ऐंटीएअरक्राफ्ट गन ले कर बैठा हो तो इस के कैमरे इतने बड़े परिक्षेत्र को कवर करने वाले एवं संवेदनशील होते हैं कि वे उन का चित्र खींच लेंगे.
ड्रोन को औपरेट करने वाला कभीकभी 8 से 10 हजार मील दूर पर भी हो सकता है. वह आसमान में स्थित उपग्रह के जरिए रेडियो संकेतों से ड्रोन को नियंत्रित करता है और वहीं से अपने लक्ष्य के इच्छित व्यक्ति या स्थान को निशाना बनाता है या फिर ड्रोन खुद ही पहले से फिट चित्र या ग्राफिक का मिलान कर के निशाना साधता है. यह बहुत सटीक तौर पर मिसाइल दाग लेता है. ड्रोन की कैमरायुक्त आंखें रात हो या दिन, एक जैसी क्षमता से देख सकती हैं.
ड्रोन सिर्फ मिसाइल ले जाने और हमला करने के लिए ही काम नहीं आते, इस के अलावा भी इस के बेहद अहम कार्य हैं जिन के लिए भी ये जाने जाते हैं. अगर कोई घने जंगल या ऐसे दुर्गम स्थान में फंस गया हो जहां से उस का ढूंढ़ना मुश्किल हो तो उस की सहायता भी ड्रोन ही करता है. भयानक चक्रवात, भूकंप, हवाई सर्वेक्षण आदि में बचाव व राहत कार्य करने के लिए ड्रोन का कोई मुकाबला नहीं. ड्रोन को इस के द्वारा संपन्न किए जाने वाले कामों के आधार पर निम्न श्रेणियों में बांटा जा सकता है :
- टारगेट या डिकाय श्रेणी के ये ड्रोन जमीन पर या हवा में मार करने वाले अपने साथियों को निशाना सुझाते हैं. यदि दुश्मन ने इन्हें निशाना बनाया तो उन की पोजीशन समझ में आ जाती है. यदि नहीं बनाया तो ड्रोन उन की खोजखबर अपने गोल अंदाजों को आ कर दे देता है.
- सूक्ष्म सर्वेक्षण के ड्रोन 37 मीटर ऊंचाई से दुश्मन के युद्धक क्षेत्र की तसवीरें भेज कर उन का विश्लेषण कर गहन सर्वेक्षण कर सकते हैं और हमले की तैयारी में सहायता करते हैं. ये सीमा और युद्ध क्षेत्र की पर्याप्त जासूसी कर लेते हैं. कुछ ड्रोन विशेषतौर पर इस तरह डिजाइन किए जाते हैं कि वे माल की ढुलाई भी करें. कई बार सेना अतिदुर्गम क्षेत्रों में फंस जाती है जहां पशु, मानव या हैलीकौप्टर या हवाई जहाज से सामान भेज पाना मुश्किल होता है तब ड्रोन काम आते हैं.
- ब्रिटेन ने अक्तूबर 2012 में दुनिया का सब से छोटा मानवरहित विमान यानी नैनो ड्रोन ‘एसक्यू-4’ का विकास किया है जिस का हाल में अमेरिका में परीक्षण किया गया है. हालांकि अभी तक परीक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई पर माना जा रहा है कि यह परीक्षण सफल रहा है. इस से विशेषज्ञों की आशंका बढ़ गई है कि आने वाले समय में अमेरिका, तालिबान के खिलाफ अफगानिस्तान में इस का इस्तेमाल कर सकता है.
- विशेषज्ञों का मानना है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की जान बचाने में यह विमान काफी मददगार साबित होगा. महज 198 ग्राम भार वाला यह ड्रोन विमान मुट्ठी में समा सकता है. यह हवा में एक ही जगह 30 मिनट तक चक्कर काटने में सक्षम है. इस की कीमत भी अच्छीखासी है, तकरीबन 20 हजार पाउंड. पिछले दिनों अमेरिका ने इस लघु विमान का परीक्षण कार्डिफ स्थित बीसीबी इंटरनैशनल ऐंड मिडिलसैक्स विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में किया है.
- एसक्यू-4 रेकान नैनो ड्रोन 400 मीटर तक ऊंचा उड़ने में सक्षम है. इस की रफ्तार 6.5 मीटर प्रति सैकंड है. यह 1.5 मील इलाके पर आसानी से नजर रख सकता है. इस से अमेरिकी सैनिकों को सड़कों पर बिछी बारूदी सुरंगों से बचाया जा सकेगा व इस की मदद से आतंकियों की पहचान करना आसान होगा. इस से आतंकियों की स्थिति का पहले ही पता लग जाएगा जिस से उन का खात्मा करना आसान होगा.
- मौजूदा ड्रोन विमान एक तो आकार में बहुत बड़े हैं, दूसरे, ये तालिबान के रौकेटों का निशाना आसानी से बन जाते हैं, क्योंकि इन की रफ्तार कम है, जबकि ड्रोन एसक्यू-4 रेकान रफ्तार के मामले में छोटा होने के बावजूद तेज है.
दुनिया के इस सब से छोटे मानवरहित विमान में उच्च क्षमता के 2 कैमरे लगे हैं जो किसी भी जगह की साफ तसवीर खींच सकते हैं. यही नहीं, यह विमान अपने अतिसंवेदनशील माइक्रोफोन के जरिए दुश्मन के ठिकाने की धीमी से धीमी बातचीत भी सुना सकता है. बैटरी की क्षमता कम होने पर यह विमान खुद-ब-खुद नियंत्रण केंद्र पर वापस आने में सक्षम है और इसे दुनिया के किसी भी कोने से रिमोट कंट्रोल व टच स्क्रीन कंप्यूटर से नियंत्रित किया जा सकता है.
ऐसी जगह जहां वातावरण बेहद विषम हो, परिस्थितियां प्रतिकूल हों, थलसेना और वायुसेना का वहां पहुंचना आसानी से संभव न हो या पहुंचती न हों, वहां ये ड्रोन बहुत कारगर हैं. खर्चीले युद्ध क्षेत्र में भी ड्रोन के जरिए लड़ाई लड़ना आसान और आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है. हां, जंग का मैदान लक्ष्य से बहुत दूर हो तो ऐसे लक्ष्य को भी इन्हीं के जरिए पाना आसान होता है. मानव रहित हथियारबंद ड्रोन इस के लिए बेहद कारगर होता है. यही वजह है कि आज दुनिया की हर सेना इसे अपने जंगी बेड़े का हिस्सा बनाना चाहती है.
पाकिस्तानी ड्रोन
करांची के बाहरी इलाके में स्थित शांत सा पड़ा एक परिसर कुछ खास बड़ा नहीं है, 90 हजार वर्ग फुट की जगह पर मुख्य भवन बना है साधारण सा. एक साइन बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है, ‘इंटीग्रेटेड डायनामिक्स’ और नीचे करांची के उस इलाके का पता. हां, बोर्ड से यह भी पता चलता है कि यह ड्रोन पर शोध करने वाला केंद्र है. आईडी यानी इंटीग्रेटेड डायनामिक्स के सीईओ व शोध केंद्र के अगुआ डा. आर एस खान सहजता से बताते हैं, ‘‘हां, हम यहां ड्रोन बनाते हैं, सिर्फ पाकिस्तान के लिए ही नहीं, हमारे खरीदारों में अमेरिका, इटली, आस्ट्रेलिया, फ्रांस और स्पेन भी हैं.’’
आज पाकिस्तान में इंटीग्रेटेड डायनामिक्स समेत तकरीबन आधा दर्जन सरकारी, गैर सरकारी कंपनियां ड्रोन विकसित करने में लगी हैं. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के कामरा स्थित पाकिस्तान एअरोनौटिकल कौंप्लैक्स ने इटली के सेलेक्स गैलीलियो के सहयोग से फाल्को नामक ड्रोन बनाया है. फाल्को गैलीलियो ने ही डिजाइन किया है. फाल्को का ही पाकिस्तानी नाम उकाब है. इटली वाली डिजाइन में मिसाइल फिट नहीं है. यह जासूसी के काम आने वाला ड्रोन है. लेकिन चीन ने सहयोग किया और अब उकाब नामक ड्रोन इसी डिजाइन में हमलावर क्षमता से लैस है.
सेना के उपयोग के लिए पाकिस्तान इसी की 2 दूसरी श्रेणियां विकसित कर रहा है जिन्हें बाज और अबाबील नाम दिया गया है. पाकिस्तान की एअरवेपन कौंप्लैक्स एक दूसरी कंपनी है जो ड्रोन तैयार कर रही है. नैशनल डैवलपमैंट कौंप्लैक्स, ईस्टवैस्ट इन्फिनिटी, सतुमा ग्लोबल इंडस्ट्रियल डिफैंस सौल्यूशन भी ड्रोन बनाने के व्यवसाय में कूद पडे़ हैं. इंटीग्रेटेड डायनामिक्स इसे निशान के नाम से तो ईस्टवैस्ट इन्फिनिटी इसे हैलीकवाद के नाम से तैयार कर रहा है. रासाडो, बौर्डर ईगल, हार्नेट, वैक्टर कुछ दूसरे मौडल हैं जो यहां तैयार हो रहे हैं. सतुमा, जो इस्लामाबाद के बाहर मात्र 500 वर्गमीटर का एक कौंप्लैक्स है और सोआन नदी के किनारे स्थित है, फ्लेमिंगो, जासूस और मुखबिर नामक ड्रोन तैयार कर रहा है जबकि ग्लोबल इंडस्ट्रियल डिफैंस सौल्यूशन हुमा-1 और उकाब का नया वर्जन बना रहा है.
सारांश यह है कि आसमान के जरिए आफत बरपा करने वाली वर्तमान की सब से सटीक और कारगर ताकत पाकिस्तान के हाथ आ गई है. पाकिस्तान का दावा है कि उस ने ड्रोन का निर्माण अपने बलबूते कर लिया है. पाकिस्तान का दावा है कि उस के पास 20 वर्षों से ड्रोन तकनीक मौजूद है. जब भी जरूरत होती, हम 1 साल के भीतर जरूरत के मुताबिक अपने ड्रोन तैयार कर लेते हैं. मगर सवाल है कि पाकिस्तान इतने प्रकार के, इतनी भारी मात्रा में ड्रोन का उत्पादन कर के क्या करेगा? पाकिस्तानी जवाब तो यह है कि वह इस के जरिए आतंकियों से निबटेगा, वह इस का इस्तेमाल अलकायदा, तालिबान जैसी चुनौतियों के खिलाफ करेगा. पर उन के लिए तो अमेरिकी प्रीडेटर ड्रोन ही काफी थे. एक सामान्य ड्रोन तकरीबन 350 करोड़ पाकिस्तानी रुपए का और मिसाइल युक्त युद्धक ड्रोन तकरीबन 700 से 800 करोड़ रुपए का खर्च आता है. भूखे, अविकसित देश में दाने के बजाय ड्रोन पर इस तरह बेतहाशा खर्च क्यों?
खैर, यह बात शीशे की तरह साफ है कि इटली और दीगर देशों से शांति, विकास और शोध के नाम पर गैर युद्धक ड्रोन बनाने की तकनीक खरीद कर पाकिस्तान चीन के सहयोग से उस में मिसाइलें फिट कर उसे युद्धक हथियार की शक्ल दे रहा है, निशाना है भारत. जब भी कभी ऐसी परिस्थिति आए तो वह हर हाल में भारत से आगे रहे, ऐसी उस की मंशा है.
हम भी पीछे नहीं
तकनीकी रूप से देखें तो भारत के पास प्रीडेटर जैसी क्षमता वाला युद्धक ड्रोन नहीं है लेकिन इस मामले में पाकिस्तान से हम बहुत पीछे हों, ऐसा भी नहीं है. हम ने भी ऐसी क्षमता हासिल कर ली है कि जब चाहें तब स्वनिर्मित और इसराईली ड्रोन को हथियारों से लैस कर सकते हैं. भारत दुनिया की अलगअलग कंपनियों से 500 ड्रोन खरीदने तो जा ही रहा है पर इस से पहले भी हम ने इसराईल से हेरोन नामक 50 गैर युद्धक ड्रोन खरीदे हैं जिन्हें बहुत कम समय में फिट फौर फाइट किया जा सकता है.
शायद भारत की इस क्षमता को पाकिस्तान जानता है इसीलिए हम ने जब इसराईल से 50 गैर युद्धक ड्रोन खरीदने का समझौता 220 मिलियन डौलर में किया था तो पाकिस्तान ने खूब भौंहें चढ़ाई थीं. भारत ने स्पष्ट कर दिया था कि वह ये ड्रोन कश्मीर और चीन से लगे अपने सीमा क्षेत्र की निगरानी के लिए खरीद रहा था. पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को इस से दिक्कत हो सकती थी इसलिए उस ने खूब विरोध किया. जबकि भारत ने सिर्फ तब अपनी आवाज उठाई जब पाकिस्तान बारबार अमेरिका से युद्धक ड्रोन की मांग कर रहा था, तत्कालीन विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने तब इतना ही कहा था कि इस से हमारे क्षेत्र में हथियारों की होड़ बढ़ेगी.
फिलहाल हेरोन 3 हजार फुट की ऊंचाई पर लगातार 40 घंटे उड़ कर सर्वेक्षण कर सकने वाला ऐसा ड्रोन है जो औपरेटर से संपर्क टूट जाने के बावजूद खुद ही सुरक्षित अपने आधार कैंप में वापस आ जाता है. इसराईली सहायता से भारत में रुस्तम नामक ड्रोन भी विकसित हो रहा है, जिसे डीआरडीओ विकसित कर रहा है. यह 300 किलोमीटर परिक्षेत्र में 1 हजार मीटर की ऊंचाई पर 24 घंटे उड़ान भर सकता है. इस के अलावा हमारे पास निशांत और लक्ष्य नामक ड्रोन भी मौजूद हैं.
साथ ही नौसेना के पास अपने सर्चरो और हेरोन नामक ड्रोन हैं. इस के अलावा भारत प्रीडेटर सरीखा ड्रोन तैयार करने की प्रक्रिया में लगने वाला है, पर इस के लिए और समय लगेगा, पहले वह कू्रज मिसाइलों की तर्ज वाले ड्रोन बनाने की तैयारी में है. इस के अलावा भारत के पास स्वयं विकसित करने व यूरोपीय समुदाय के देशों से ड्रोन खरीदने के विकल्प खुले हुए हैं. इसलिए पाकिस्तान अपनी ड्रोन क्षमता पर बहुत नहीं इतरा सकता, यह तय है.
भारत ने युद्धक स्तर के ड्रोन को कम ही तरजीह दी है. पर जिस तरह कारगिल के दौरान तोजोलिंग और दूसरी कई चोटियों पर उसे संघर्ष करना पड़ा व अपेक्षाकृत ज्यादा जानें गंवानी पड़ीं, उसे देखते हुए देश को अमेरिकी प्रीडेटर सरीखे ड्रोन की सख्त जरूरत है. और तब जब पड़ोसी पाकिस्तान हो, जो इस तरह के चौंकाने वाले साजिशी हमले करने का आदी हो, घुसपैठ और कश्मीर के दुर्गम इलाकों में आतंकी गतिविधियों का संचालक हो तब इस की जरूरत हर हाल में बढ़ जाती है. वैसे अपनी सुरक्षा और खतरों का सामना करने के लिए भी इस तरह के उन्नत हथियार आवश्यक हैं.