एक महिला 19 नवंबर, 2013 को कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में एटीएम से पैसा निकालने जाती है. पलभर में पहले से घात लगाए बैठा शख्स अंदर दाखिल होता है. इस से पहले कि उक्त महिला खतरे को भांपे, वह शख्स छुरे के बल पर न सिर्फ उसे लूटने की कोशिश करता है बल्कि छुरे से हमला कर उसे घायल भी करता है. यह पूरी घटना एक शटरबंद एटीएम के भीतर घटित होती है. हमलावर इस बात से अंजान था कि एक तकनीकी आंख उसे अपने कैमरे में कैद कर रही है. वह पूरी घटना को अंजाम देता है. लेकिन इस पूरे वाकए को पूरी दुनिया सीसीटीवी की आंख से देखती है. पुलिस भी सीसीटीवी से मिले फुटेज की बदौलत हमलावर की पहचान करती है.
सोचिए अगर सीसीटीवी कैमरा वहां न लगा होता तो इस हादसे की सीधी तसवीरें पुलिस और हम तक कैसे पहुंचतीं. आज के आपराधिक माहौल में बेशक यह तकनीक बेहद मददगार साबित हो रही है.
रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों, शहर के व्यस्त चौराहों, बड़ेबड़े होटलों, संवेदनशील धार्मिकस्थलों, संसद, दफ्तरों, सर्राफा की दुकानों और महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक संस्थानों में दरअसल, सीसीटीवी कैमरे लगा दिए जाते हैं. सीसीटीवी कैमरा आज की दहशतभरी जीवनशैली में सुरक्षा का बड़ा आसरा बन गया है. पुलिस, खुफिया एजेंसियां सब इसी के भरोसे बड़ीबड़ी जिम्मेदारियां छोड़ती हैं. सीसीटीवी कैमरा आज की तारीख में सुरक्षा का एक मुकम्मल पैकेज बन गया है.
हो भी क्यों न? तमाम बढ़ोतरियों के बावजूद देश में न तो इतना पुलिसबल है कि हर जगह पर नजर रखी जा सके और न ही निजी सुरक्षा व्यवस्था का व्यय वहन कर पाना हर किसी के लिए संभव है. इस वजह से देश में तमाम निगरानी का काम इन दिनों एक छोटे से कैमरे के भरोसे हो रहा है. सीसीटीवी कैमरा आज आतंक और अलगाववाद के चरम दौर में सुरक्षा प्रबंधन का एक प्रमुख हथियार बन गया है. बड़े और महत्त्वपूर्ण शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, हैदराबाद, पुणे, बेंगलुरु और संवेदनशील शहरों जैसे श्रीनगर, अगरतला, शिलोंग, गुवाहाटी आदि में तो ऐसा कोई इलाका नहीं है जो इन दिनों सीसीटीवी कैमरे की निगाह में न हो. सच बात तो यह है कि जैसेजैसे दुनिया का विस्तार हो रहा है, तमाम गतिविधियां बढ़ रही हैं, अपराध की आशंकाएं बढ़ रही हैं वैसेवैसे सीसीटीवी कैमरों की जरूरत और उन की हर जगह मौजूदगी भी बढ़ रही है.
सीसीटीवी कैमरा सिर्फ अपराधियों और आतंकवादियों पर ही नजर नहीं रखता बल्कि ऐसी तमाम आपराधिक घटनाओं को हल करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जहां आमतौर पर इंसानी निगहबानी चूक जाती है.
दरअसल, जिस तरीके से आज आधुनिक कामकाज की शैली में कंप्यूटर के बिना हम एक दिन भी नहीं गुजारा कर सकते, ठीक उसी तरह से आज की तारीख में सुरक्षा संबंधी तमाम समस्याओं से हम बिना सीसीटीवी कैमरे के नहीं निबट सकते. सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि आज सीसीटीवी कैमरे पूरी दुनिया के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हो गए हैं. यही वजह है कि दुनिया का हर शहर आज की तारीख में सीसीटीवी कैमरे की जद में है. चाहे न्यूयार्क हो या लंदन, मास्को हो या जोहानेसबर्ग. सभी शहर सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में चौबीसों घंटे रहते हैं.
26/11 की घटना के 1 महीने पहले तत्कालीन केंद्रीय सचिव मधुकर गुप्ता ने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया था कि मुंबई शहर को और ज्यादा सीसीटीवी कैमरे की जद में लाया जाए. अगर उस निर्देश पर अमल किया गया होता तो शायद मुंबई शहर इतनी भयावह आतंक की वारदात से बच जाता. अगर 26/11 के खूंखार आतंकवादी आमिर कसाब की तसवीरें बौंबे वीटी स्टेशन में लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद नहीं होतीं तो शायद कसाब कानूनी दांवपेंचों के जरिए अपना बचाव करने में कामयाब हो जाता. लेकिन मुंबई के इस सर्वाधिक संवेदनशील रेलवे स्टेशन पर मौजूद सीसीटीवी कैमरे की बदौलत कसाब अपनी पहचान से कभी इंकार करने की स्थिति में नहीं रहा.
चप्पेचप्पे पर नजर
जिस तरह से 26/11 के हमले के बाद भारत के ज्यादातर महत्त्वपूर्ण शहर सीसीटीवी कैमरे की निगहबानी में आ गए ठीक उसी तरह से 9/11 की घटना के बाद से अमेरिका के तमाम छोटेबड़े शहरों का चप्पाचप्पा सीसीटीवी कैमरे के घेरे में समा गया. आज की तारीख में तमाम शहरों में सीसीटीवी कैमरे वहां मौजूद पुलिसवालों से ज्यादा शहर की निगरानी करने में अपनी भूमिका निभाते हैं.
7 जुलाई, 2005 के बाद लंदन भी सीसीटीवी कैमरे की किलेबंदी में तबदील हो गया, क्योंकि इसी दिन लंदन में आत्मघाती आतंकवादियों ने पूरे शहर को हिला कर रख दिया था. अगर सीसीटीवी कैमरे नहीं होते तो शायद लंदन के उस खौफनाक सुसाइड अटैक को कभी भी बेनकाब नहीं किया जा सकता था, क्योंकि कैमरों के जरिए से लोग उस के लिए जिम्मेदार पाए गए जिन पर पुलिस शक ही नहीं कर रही थी.
दुनिया के तमाम देशों में से इसराईल अकेला ऐसा देश है जिसे आतंकवाद की पीड़ा का सब से ज्यादा अनुभव है. लेकिन इसराईल ही वह देश है जिस ने आतंकवाद से निबटने के तमाम आधुनिक साजोसामान पहले मोरचे पर लगाए हैं. सीसीटीवी कैमरे के इस्तेमाल के मामले में भी वह दुनिया के तमाम देशों से बहुत आगे है. इसराईल के तमाम शहर और महत्त्वपूर्ण मिलिट्री, वित्तीय, राजनीतिक व दूसरे संस्थान 1976 से ही सीसीटीवी की चाकचौबंद निगहबानी में हैं. दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले सीसीटीवी के घनत्व भी इसराईल में कहीं ज्यादा हैं.
सीसीटीवी कैमरा किस तरह आज की तारीख में तमाम सुरक्षाओं के विश्वास का पर्याय बनता जा रहा है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकेले ब्रिटेन में 18 लाख 50 हजार सीसीटीवी कैमरे मौजूद हैं. अकेले लंदन शहर में 11 हजार सीसीटीवी कैमरे शहर की निगरानी करते हैं. न्यूयार्क में इन की संख्या 8 हजार है और साथ में पुलिस सर्विलांस का भी गहरा पहरा है.
कड़ी सुरक्षा
आज की तारीख में सुरक्षा का पर्याय किस तरह से सीसीटीवी कैमरा हो चुका है, इस का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब लंदन में ओलिंपिक खेल हुए तो पूरा शहर मानो सीसीटीवी कैमरों की जकड़बंदी में घिर गया. सामान्यतौर पर जहां गैर ओलिंपिक समारोह के समय लंदन में महज 11 हजार सीसीटीवी कैमरे थे, वहीं लंदन ओलिंपिक शुरू होने के तकरीबन 1 महीने पहले ही यहां ऐसे कैमरों की भरमार दिखने लगी थी. पूरे खेल समारोह के दौरान अकेला लंदन करीब 65 हजार कैमरों की जद में रहा. शायद लंदन ने सतर्कता का यह सबक चीन से सीखा था, जहां 2008 में बीजिंग ओलिंपिक के दौरान बीजिंग शहर को कैमरों से पाट दिया गया था. बीजिंग ओलिंपिक के दौरान बीजिंग में कुल
3 लाख कैमरे लगाए गए थे. इस से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे बीजिंग का हर कोना ?कैमरों की जद में रहा होगा. चीन में वैसे 1 करोड़ से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे वर्ष 2011 में ही थे.
एक जरूरत
एक जमाने में कहा जाता था कि सुरक्षाबलों की सतर्कता से यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता. लेकिन आज यही बात कहनी हो तो कहना पड़ेगा सीसीटीवी कैमरे के चलते किसी इलाके में परिंदा भी पर नहीं मार सकता. वास्तव में जैसेजैसे इंसान ने विकास किया है वैसेवैसे आपराधिक गतिविधियों में बहुत तेज इजाफा हुआ है. हालांकि आवश्यकता आविष्कार की जननी है, इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि सीसीटीवी कैमरा इन्हीं बढ़ते अपराधों के चलते अस्तित्व में नहीं आया, लेकिन यह कहना कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि अगर आज सीसीटीवी कैमरा नहीं होता तो देश और दुनिया के तमाम बड़े शहर मौजूदा स्थिति से हजार गुना ज्यादा असुरक्षित होते.
वैसे तो भारत भी सीसीटीवी कैमरे जैसी आधुनिक सुरक्षा प्रणाली से सुरक्षित है लेकिन दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले और हमारी जनसंख्या को देखते हुए हमारे यहां सीसीटीवी कैमरे अभी बहुत कम संख्या में हैं. मसलन, दिल्ली, जहां कुल आबादी के हिसाब से 30 हजार से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे होने चाहिए, वहीं पूरी राजधानी में 15 अगस्त, 2012 के पहले तक महज 1,067 सीसीटीवी कैमरे थे. ये बहुत कम हैं क्योंकि दिल्ली में ही अकेले दिल्ली मैट्रो 5,200 सीसीटीवी कैमरों से लैस है. जिस कारण दिल्ली मैट्रो का हर स्टेशन, स्टेशन में मौजूद तमाम लोग और मैट्रो टे्रन कंट्रोल रूम में बैठे सुरक्षा अधिकारियों की निगाहों में पलपल रहते हैं. मुंबई में
5 हजार से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगे हैं जबकि 100 सीसीटीवी कैमरे सिर्फ मुंबई की ट्रैफिक व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए हैं. बेंगलुरु में हालांकि अभी हर जगह सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं फिर भी शहर में 379 सीसीटीवी कैमरे मौजूद हैं. कोलकाता में इन की संख्या बेहद कम 36 और चेन्नई में 50 है. हैदराबाद इस सिलसिले में 240 सीसीटीवी कैमरों से लैस है.
सीसीटीवी कैमरा आम पुलिसिया व्यवस्था से कहीं ज्यादा भरोसेमंद और चुस्तदुरुस्त है. इस की 2 वजहें हैं — एक तो सीसीटीवी कैमरा इंसानी स्वभाव से मुक्त है जिस कारण वह भावुक नहीं हो सकता. दूसरी बात यह है कि वह आदमियों के मुकाबले कहीं ज्यादा सतर्क रहता है. इसलिए पुलिस वालों से ज्यादा भरोसा अब सीसीटीवी कैमरों पर किया जाता है.