कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘अरे, आप तो नाराज हो गए.’’ मेरी पत्नी ने मेरा हाथ थाम कर कहा, ‘‘ऐसा नहीं कहते. गरीबों की हाय लेना अच्छी बात नहीं है.’’

इस के बाद उस ने औरत से कहा, ‘‘बहन, ये लो 5 रुपए और हमें जाने दो.’’

औरत हमारे सामने से हट तो गई, लेकिन मैं ने देखा, उस की आंखों में आंसू आ गए थे. उस ने रुपए नहीं लिए थे. हम दोनों आगे बढ़ गए. पत्नी ने शौपिंग सेंटर में दाखिल होते हुए कहा, ‘‘मेरा ख्याल है कि वह भीख मांगने वाली नहीं है. आप अफसर हैं, हो सकता है आप से कोई काम कराना चाहती हो?’’

‘‘मेरे माथे पर कहां लिखा है कि मैं अफसर हूं.’’ मैं ने खीझते हुए कहा.

‘‘आप इतने गुमनाम भी नहीं हैं. यह भी संभव है कि उस ने आप को आप के औफिस में देखा हो.’’ पत्नी ने कहा.

‘‘देखा होगा भई,’’ मैं ने उकताते हुए कहा, ‘‘अब तुम उसे छोड़ो और अपना काम करो.’’

थोड़ी देर बाद हम जैसे ही शौपिंग सेंटर से बाहर आए, वह फिर हमारे सामने पहले की ही तरह हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे और होंठ इस तरह कांप रहे थे, जैसे वह कुछ कहना चाहती हो. लेकिन भावनाओं में बह कर उस की जुबान से शब्द न निकल रहे हों.

उसे हैरानी से देखते हुए मैं ने दस का नोट निकाल कर उस की ओर बढ़ाया तो उस ने लेने से मना कर दिया. मैं ने कहा, ‘‘जब पैसे नहीं लेने तो यह नाटक क्यों कर रही हो?’’

‘‘इस तरह बात न करें.’’ पत्नी ने मेरे चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘बहन अगर ये कम है तो मैं और दे देती हूं, लेकिन तुम रोना बंद कर दो.’’

इतना कह कर मेरी पत्नी ने जैसे ही पर्स खोला, उस ने हाथ के इशारे से मना कर दिया. वह जिस तरह रो रही थी, उसे देख कर मेरी पत्नी काफी दुखी हो गई थीं. मुझे लगा, हम कुछ देर और यहां रुके रहे तो मेरी पत्नी भी रो देंगी.

हमारे पास से गुजरने वाले लोग रुकरुक कर दृश्य को देख रहे थे, जिस से मुझे उलझन सी हो रही थी. नाराज हो कर मैं ने थोड़ा तेज स्वर में कहा, ‘‘तुम क्या चाहती हो, यह मेरी समझ में नहीं आ रहा है. न तुम पैसे ले रही हो और न यह बता रही हो कि तुम्हें चाहिए क्या?’’

इतना कह कर मैं ने पत्नी का हाथ थामा और तेजी से अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया. मेरे साथ चलते हुए पत्नी ने कहा, ‘‘पता नहीं बेचारी क्या चाहती है? कोई तो बात होगी, जो वह इस तरह रो रही है. लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि पूछने पर कुछ नहीं बता भी नहीं रही है.’’

‘‘छोड़ो, अब उस की बातें खत्म करो.’’ मैं ने झल्लाते हुए कहा.

हालांकि मैं खुद उसी औरत के बारे में सोच रहा था, लेकिन मेरे सोचने का नजरिया कुछ और था. वह काफी सुंदर थी. रोते हुए वह और भी सुंदर लग रही थी. साड़ी में उस का शरीर काफी आकर्षक लग रहा था. अगर वह रोने के बजाए ढंग से बात करती तो मैं उसे औफिस आने को जरूर कहता. पैसे न लेने से मैं समझ गया था कि वह भीख मांगने वाली नहीं थी. वह किसी दूसरे ही मकसद से आई थी.

‘‘अब आप क्या सोचने लगे?’’ पत्नी ने थोड़ी ऊंची आवाज में पूछा.

‘‘कुछ नहीं, सोचना क्या है? शाम को औफिस की जो मीटिंग होने वाली है, उसी के बारे में सोच रहा था.’’ मैं ने धीमे से कहा.

‘‘कार चलाते हुए ज्यादा कुछ न सोचा करें, क्योंकि सोचते समय कुछ नजर नहीं आता.’’ पत्नी ने यह बात इस तरह कही, जैसे मैं कोई बच्चा हूं और वह मुझे समझा रही हो.

अगले दिन सबेरे मैं औफिस जाने के लिए  घर से निकला तो यह देख कर हैरान रह गया कि वही औरत कोठी के गेट से सटी खड़ी थी. उस के साथ एक लड़का भी था. गेट से निकल कर जैसे ही मैं कार की ओर बढ़ा, औरत मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई. कल की तरह उस समय भी उस ने दोनों हाथ जोड़ रखे थे और याचनाभरी नजरों से मेरी ओर ताक रही थी.

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...