बड़ी लंबी सी खामोशी के बाद प्रिया ने गंभीर लहजे में जवाब दिया था, ‘मैं ने अपने मन को टटोला तो पाया कि किसी लालच के कारण मैं आप से नहीं जुड़ी हूं. मैं जब आप के साथ होती हूं तो बेहद खुश, खुद को बेहद सहज और सुरक्षित महसूस करती हूं. हम जीवनसाथी बनें, ऐसा विचार कभी मेरे मन में नहीं उठा है और न ही अब उठ रहा है. वैसे भी, हमारी जातियां अलगअलग हैं और उन में शादियां आज भी नहीं होतीं.’
‘गुड,’ मल्होत्रा साहब ने फिर से उसे अपनी बांहों के घेरे में कैद कर लिया था.
‘लेकिन, क्या आप मु झे दिल से प्यार करते हैं या सिर्फ मेरा शरीर ही…’
मल्होत्रा साहब ने उस के होंठों को चूम कर उसे चुप किया और कहा, ‘तुम बेहद खूबसूरत, बहुत प्यारी, बहुत भोली और सम झदार लड़की हो, प्रिया. मैं बहुत खुश हूं, जो तुम मेरी जिंदगी में आई हो, ढेर सारी खुशियों की बहार ले कर.
‘तुम्हारे बारे में सोच कर मेरा मन नाच उठता है. तुम्हें देख कर दिल खिल उठता है. तुम पास रहो या दूर, मैं तुम्हारे इस सुंदर साथ के लिए सदा आभारी रहूंगा.’
‘और मैं भी आप की.’
‘तुम किसलिए?’
‘मौजमस्ती और सुखसुविधा भरी ऐसी जिंदगी का स्वाद चखाने के लिए, जो आप से जुड़े बिना मु झे कभी नसीब न होती. ऐशोआराम भरी ऐसी जिंदगी, जिस की मैं कल्पना करती तो दुनिया से विदा हो जाती.’
‘तुम्हें खुश रखना मु झे बहुत अच्छा लगता है.’
‘मेरी भी यही सोच है, माई स्वीटहार्ट,’ प्रिया भावुक हो कर मल्होत्रा साहब के सीने से लग गई थी.
उन दोनों ने अपने इस रिश्ते को दुनिया की नजरों से बचा कर रखने का हर संभव प्रयास किया था. प्रिया का ज्यादातर समय मल्होत्रा साहब की कोठी में बीतता. वे बाहर ऐसे शानदार व महंगे होटलों में ही जाते, जहां प्रिया के किसी परिचित या रिश्तेदार की मौजूदगी की संभावना न के बराबर होती.
‘मेरा दिल करता है कि मैं हर जगह तुम्हारे साथ खुल कर घूमूंफिरूं, हंसूंबोलूं, पर तुम्हारी बदनामी का डर मु झे ऐसा नहीं करने देता,’ मल्होत्रा साहब ने एक दिन उदास लहजे में अपनी इच्छा व्यक्त की थी.
‘बनावटी जिंदगी जीते हुए सचाई को छिपाते जाना आज हर व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है, सर. देखिए, लकड़ी को बनावटी रूप दे कर ये सोफा और पलंग बने हैं. किस रिश्ते में हम बनावटी व्यवहार नहीं करते? क्या शादी की रस्म बनावटी नहीं है? प्रकृति में कहीं भी क्या शादी नाम की प्रथा, मानव समाज को छोड़ कर नजर आती है?’ प्रिया एकदम से उत्तेजित हो उठी थी.
‘मेरे दिल में तुम्हारे लिए जो प्रेम है, वह बनावटी नहीं है, प्रिया.’
‘मैं जानती हूं, सर और इसीलिए कहती हूं कि हमें इस प्रेम की मिठास को बनाए रखने के लिए ही इसे दुनिया की नजरों से छिपाना होगा. लोगों को खामखां बकवास करने का मौका क्यों दें? ऐसा सोचना डर का नहीं, बल्कि सम झदारी का प्रतीक है, सर,’ प्रिया की इस सोच को सम झ कर मल्होत्रा साहब प्रेमसंबंध को ले कर कहीं ज्यादा सहज हो गए थे.
उस शाम को प्रिया अटैची ले कर मल्होत्रा साहब की कोठी पहुंची तो उस ने उन्हें परेशानी व उल झन का शिकार बने पाया था.
प्रिया ने कई बार उन की परेशानी का कारण पूछा, पर वे जवाब देना टाल गए. तब प्रिया ने गुमसुम बन कर उन के मन की बात जानने के लिए उन पर दबाव बनाया.
प्रिया की यह तरकीब डेढ़ घंटे में ही सफल हो गई और मल्होत्रा साहब ने उस की बगल में बैठ कर अपने मन की परेशानी को बताना शुरू कर दिया.
‘‘आज शाम को घटी 2 बातों ने मेरे मन की शांति हर ली है,’’ मल्होत्रा साहब ने गहरी सांस खींच कर बोलना शुरू किया, ‘‘पहले तो मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी ने तुम्हें ले कर बड़ी घटिया सी बात कही और फिर…’’
‘‘क्या कहा था उन्होंने?’’ प्रिया ने अपने माथे पर बल डाल कर उन्हें टोकते हुए पूछा.
‘‘उस बात को छोड़ो.’’
‘‘नहीं, प्लीज, मैं जानना चाहती हूं.’’
बड़ी िझ झक के साथ मल्होत्रा साहब ने बताया, ‘‘वह घटिया इंसान जानना चाह रहा था… पूछ रहा था कि तुम एक रात के लिए कितना चार्ज करती हो. उस ने यह भी कहा कि तुम्हारी जाति की लड़कियां तो शादी से पहले ही जीजाओं, चाचाओं, पड़ोसियों के साथ हंसखेल चुकी होती हैं.’’
‘‘मैं सम झ गई. फिर आप ने क्या जवाब दिया?’’ प्रिया ने उन का हाथ पकड़ कर शांत भाव से पूछा.
‘‘मेरा दिल तो किया था कि घूंसे मार कर उस के दांत तोड़ डालूं, पर बेकार का तमाशा खड़ा हो जाता. मैं ने कड़े शब्दों में फिर कभी ऐसी बकवास करने की हिम्मत न करने की चेतावनी दे दी है.’’
‘‘गुड. मैं उस के व्यवहार से चकित नहीं हूं, सर. हमारा समाज भौतिक स्तर पर खूब तरक्की कर रहा है, पर अधिकतर लोगों की सोच नहीं बदली है. पतिपत्नी के रिश्ते को छोड़ उन्हें स्त्रीपुरुष के हर अन्य संबंध में अनैतिकता और अश्लीलता ही नजर आती है.’’
‘‘इस तरह के लोग तुम्हारी बदनामी का कारण बन जाएंगे, प्रिया. मेरे कारण तुम जिंदगी में दुख और परेशानियां उठाओ, यह मु झे बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा. तुम्हारी मां ठीक ही कह रही
थीं कि…’’