हमारे देश की जनता को लालकिले से प्रधानमंत्रीजी का भाषण हूबहू सुनाते हुए लोक संपर्क महकमे ने दुखी मन से सूचित किया कि मंत्रीजी की लोकप्रिय बकरी कई दिनों से गायब है. देश संकट की घड़ी से गुजर रहा है. यह सुन कर देश के सरकारी तंत्र समेत कुछ भावुक किस्म के खाली दिमागों में हायतोबा मच गई.
बंधुओ, ऐसा नहीं है कि मंत्रीजी की बकरी ढूंढ़ने के लिए प्रशासन ने कोई कोशिश न की हो.
प्रशासन ने मंत्रीजी की बकरी ढूंढ़ने के लिए पूरी ईमानदारी से कोशिश की थी. अब प्रशासन के हाथ कुछ खास नहीं लगा, तो उस बेचारे का क्या कुसूर.
प्रशासन को तनख्वाह मिलती ही अपने देश के नेताओं के जानमाल की हिफाजत करने की है. जनता की हिफाजत करने के लिए तो ऊपर वाला बैठा है.
अब जब प्रशासन का सारा अमला मंत्रीजी की बकरी ढूंढ़ने में नाकाम हो गया, तो प्रशासन को न चाहते हुए भी जनता की मदद लेनी पड़ी.
ऐसे में देश के नमक के साथ राशन की दुकान के सड़े आटे की चपाती खाने वाली जनता का भी फर्ज बनता था कि वह खानापीना छोड़ कर मंत्रीजी की बकरी ढूंढ़े.
जब तक प्रशासन को मंत्रीजी की बकरी नहीं मिल जाती, तब तक वह मंत्रीजी के दुख में शरीक होते हुए अपने महल्ले में दुख सभाएं कराए.
प्रशासन द्वारा इस बारे में पटवारी को जिला प्रशासन तक अपनी रिपोर्ट पहुंचानी होगी और जिला प्रशासन यह रिपोर्ट मंत्रीजी के मंत्रालय को सूचित करेगा.
पटवारी इस बात की तसदीक करेगा कि किसकिस महल्ले में मंत्रीजी के दुख से दुखी हो कर दुख सभाएं की जा रही हैं और फिर मंत्रालय का काम यह रहेगा कि वह तमाम दुख सभाओं की रिपोर्ट बना कर नेताजी को तब तक भेजेगा, जब तक मंत्रीजी की बकरी मिल नहीं जाती.