‘‘मैं एक अबला और उस पर भी शूद्रा, भला आप को क्या चुनौती दे सकती हूं. परंतु मैं ने जो भी कहा है वह यथार्थ है, नभ में चमकते इस चंद्रमा की तरह,’’ कहते हुए उस ने आकाश में चमकते चंद्रमा को इंगित किया.
‘‘नहीं, गुर्णवी, तुम ने पृषघ्र को केवल चाहा है, प्रेम किया है. उस की शक्ति और बाह्य रूप को देखा है, उस के अंतर्मन को नहीं जाना. आओ, तुम्हें विश्वास दिला दूं,’’ कहते हुए पृषघ्र ने उस का हाथ पकड़ा और झटके से उठा कर अपने बाईर्ं ओर चट्टान पर खड़ा कर लिया.
‘‘सुनो, दसों दिशाओे, दिग्पालो और पंचभूतात्माओ, सभी मेरी घोषणा सुनो. मैं वैवस्वत मनु का पुत्र, कुमार पृषघ्र आज से, इसी क्षण से इस गुर्णवी (जूती) को, जो शूद्री (अछूत कन्या) है, शूद्रता से मुक्त करता हूं. इस का नाम अब से गुणमाला होगा,’’ कुमार की यह घोषणा रात्रि के अंधकार में गूंज उठी.
परंतु यह घोषणा गुणमाला को प्रसन्न न कर सकी. वह वसिष्ठ के भय से आतंकित हो, स्थिर नेत्रों से पृषघ्र को देखती रह गई.
‘‘चलो, गुणमाला, तुम्हें तुम्हारे आवास पर पहुंचा दूं,’’ कुमार ने उस की कटि में अपनी दीर्घ भुजा डाल कर कहा, ‘‘अब तुम निश्ंिचत और प्रसन्न रहो. मेरी शिक्षा पूर्ण होने पर यथासमय हम विवाह करेंगे. तुम राजरानी बनोगी,’’ पृषघ्र ने हथेली से उस का चेहरा थपथपा दिया.
उस मृगनयनी के अश्रु छलक गए.
कुमार पृषघ्र की घोषणा वायुमंडल में गूंजती हुई ऋषिवर वसिष्ठ तक भी पहुंची. वे विचलित हो गए. वसिष्ठ गुणमाला के बुद्धिकौशल और अनुपम रूपराशि के जादू से परिचित थे. उन्हें लगा, धरती पैरों तले खिसक रही है और वे शून्य में गिरते चले जा रहे हैं, कहीं ठौर नहीं मिल रहा है.