पुत्र के लिए व्याकुल गोमती उसे खोजते हुए डेरे पर लौट आईं. चादर बिछा कर लेट गईं लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी. कहां चला गया श्रवण? इस कुंभ नगरी में कहांकहां ढूंढ़ेंगी? यहां उन का अपना है कौन? यदि श्रवण न लौटा तो अकेली घर कैसे लौटेंगी? बहू का सामना कैसे करेंगी? खुद को ही कोसने लगीं, व्यर्थ ही कुंभ नहाने की जिद कर बैठी. टिकट ही तो लाया था श्रवण, यदि मना कर देती तो टिकट वापस भी हो जाते. ऐसी फजीहत तो न होती.
फिर गोमती को खयाल आया कि कोई श्रवण को बहलाफुसला कर तो नहीं ले गया. वह है भी सीधा. आसानी से दूसरों की बातों में आ जाता है. किसी ने कुछ सुंघा कर बेहोश ही कर दिया हो और सारे पैसे व घड़ीअंगूठी छीन ली हो. मन में उठने वाली शंकाकुशंकाओं का अंत न था.
दिन निकला. वह नहानाधोना सब भूल कर, सीधी पुलिस चौकी पहुंच गईं. एक ही दिन में पुलिस चौकी वाले उन्हें पहचान गए थे. देखते ही बोले, ‘‘मांजी, तुम्हारा बेटा नहीं लौटा.’’
रोने लगीं गोमती, ‘‘कहां ढूंढू़ं, तुम्हीं बताओ. किसी ने मारकाट कर कहीं डाल दिया हो तो. तुम्हीं ढूंढ़ कर लाओ,’’ गोमती का रोतेरोते बुरा हाल हो गया.
‘‘अम्मां, धीरज धरो. हम जरूर कुछ करेंगे. सभी डेरों पर एनाउंस कराएंगे. आप का बेटा मेले में कहीं भी होगा, जरूर आप तक पहुंचेगा. आप अपना नाम और पता लिखा दो. अब जाओ, स्नानध्यान करो,’’ पुलिस वालों को भी गोमती से हमदर्दी हो गई थी.
गोमती डेरे पर लौट आईं. गिरतीपड़ती गंगा भी नहा लीं और मन ही मन प्रार्थना की कि हे गंगा मैया, मेरा श्रवण जहां कहीं भी हो कुशल से हो, और वहीं घाट पर बैठ कर हर आनेजाने वाले को गौर से देखने लगीं. उन की निगाहें दूरदूर तक आनेजाने वालों का पीछा करतीं. कहीं श्रवण आता दीख जाए. गंगाघाट पर बैठे सुबह से दोपहर हो गई. कल शाम से पेट में पानी की बूंद भी न गई थी. ऐंठन सी होने लगी. उन्हें ध्यान आया, यदि यहां स्वयं ही बीमार पड़ गईं तो अपने श्रवण को कैसे ढूंढ़ेंगी? उसे ढूंढ़ना है तो स्वयं को ठीक रखना होगा. यहां कौन है जो उन्हें मनुहार कर खिलाएगा.
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