लेखक - अशोक गौतम

*धन्य* हैं मेरे वे देशवासी जिन्हें 1947 में आजादी मिली थी. वह आजादी नकली थी या असली वे ही जानें, उन दिनों मैं पैदा नहीं हुआ था. पैदा हुआ होता तो आप को बता देता कि वह कैसी आजादी थी. जो उस टाइम किसी वजह से आजाद होने से बच गए थे ठीक उसी तरह जिस तरह सरकारी नौकरी में एकसाथ लगे कुछ पक्के हो जाते हैं और कुछ पक्के होने से रह जाते हैं और बाद में जा कर पक्के होते हैं.

इन की तरह उन्हें भी यह जान कर घोर आश्चर्य होगा कि वे 2014 में आजाद हो चुके हैं. हाय, बेचारों को आजादी की दूसरी नोटिफिकेशन के लिए कितना लंबा इंजार करना पड़ा.

कोई बात नहीं, अपने यहां देर है  अंधेर नहीं. चलो, अब अपनी असली  आजादी का जश्न मनाओ. काश, उन को अपनी आजादी का उसी साल पता चल जाता तो आजादी का मजा ही कुछ और होता. तब 1947 में आजाद हुओं की तरह आज वे भी देश को पता नहीं कहां पहुंचा चुके होते?

देर आए दुरुस्त आए. शुक्र है, उन्हें अपनी आजादी का 7 साल बाद ही सही, पता तो चला. कईयों को तो अपने मरने के बाद भी अपनी आजादी का पता नहीं चल पाता. इसलिए उन्हें भी मेरा प्रणाम. आजादी पर उन्हें मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं. अब उन से एक गुजारिश और है कि वे 2014 में आजाद हुओं को आजादी के सारे लाभ बैक डेट से देने की भी नोटिफिकेशन कर दें ताकि उन के खाते में ढेर सारी आजादी जमा हो जाए और जो मेरे जैसे बचेखुचे 2014 के बाद के अभी भी आजाद होने को तड़प रहे हैं, अब मेरी सारी मूलशूल संवदेनाएं अपने और उन के साथ हैं.

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