सुधा बहुत दिनों से राजेश्वर में एक प्यारा सा बदलाव देख रही थी. धीरगंभीर राजेश्वर आजकल अनायास मुसकराने लगते, कपड़ों पर भी वे विशेष ध्यान देते हैं. पहले तो एक ड्रैस को वे 2 व 3 दिनों तक औफिस में चला लेते थे, पर अब रोज नई ड्रैस पहनते हैं. हमेशा अखबार या टीवी की खबरों में डूबे रहने वाले राजेश्वर अब बेटे द्वारा गिफ्ट किया सारेगामा का कारवां में पुराने गाने सुनने लगे थे.

सुधा भी सारी जिम्मेदारियां खत्म होने पर राहत महसूस कर रही थी. वह सोच रही थी राजेश्वर में भी बदलाव का यही कारण था. सुधा को एक ही दुख था कि राजेश्वर उस से रूठेरूठे रहते हैं. वह जानती थी कि इस में सारी गलती पति की नहीं है पर वह भी तो उस समय पूरे घर की जिम्मेदारियों में डूब कर राजेश्वर के मीठे प्रस्तावों को अनदेखा कर दिया करती थी.

राजेश्वर के औफिस जाने के बाद सुधा चाय का कप लिए सोफे पर आ बैठी. काम वाली बाई को 11 बजे आना था. चाय पीतेपीते सुधा अतीत की लंबी गलियों में निकल पड़ी.

20 साल की उम्र में म्यूजिक विषय के साथ बीए किया था. वह कालेज की लता मंगेशकर कहलाती थी. वह बहुत भोली, नम्र भी थी. संगीत विषय में एमए करना चाहती थी. पर मातापिता विवाह के लिए पात्र देखने लगे. ऐसे में राजेश्वर का रिश्ता आ गया. वे सरकारी नौकरी में उच्च अधिकारी थे. पिता नहीं थे. विरासत में

2 हवेलियां मिली थीं. एक भाई, 2 बहनें, मां, भरापूरा परिवार. वे बस, घरेलू लड़की जो घरपरिवार को संभालने और बांध के रखने में सक्षम हो, चाहते थे. दानदहेज की कोई डिमांड नहीं थी.

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