सांवली, सौम्य सूरत, छोटी कदकाठी, दुबली काया, काला सलवारसूट पहने, माथे पर कानों के ऊपर से घुमाती हुई चुन्नी बांधे इस पतली, सूखी सी डाल को दीपा ने जैसे ही अपने घर की ड्योढ़ी पर देखा तो वह किसी अनजाने आने वाले खतरे से जैसे सहम सी गई. घबरा कर बोली, ‘‘यह तो खुद ही बच्ची है, मेरी बच्ची को क्या संभालेगी?’’
यह सुनते ही उस की सास ने तने हुए स्वर में जवाब दिया, ‘‘सब तुम्हारी तरह कामचोर थोड़े ही जने हुए हैं. यह 9 साल की है, अकेले ही अपनी 3 छोटी बहनों को पाल रही है. खिलानापिलाना, नहलानाधोना सब करती है यह और यहां भी करेगी.’’
दीपा अभी कुछ कहने को ही थी, तभी पति की गरजती आवाज सुन कर चुप हो गई. वे कह रहे थे, ‘‘मेरी मां एक तो इतनी दूर से तुम्हारी सुविधा के लिए समझाबुझा कर इसे यहां ले कर आई हैं, ऊपर से तुम्हारे नखरे. अरे, इतने ही बड़े घर की बेटी हो तो जा कर अपने मांबाप से बोलो, एक नौकर भेज दें यहां. चुपचाप नौकरी करो, बेटी को यह संभाल लेगी.’’
दीपा मन मसोस कर बैठ गई. यह सोच कर ही उस का कलेजा मुंह को आ रहा था कि उस की डेढ़ साल की बेटी को इस बच्ची ने गिरा दिया या चोट लगा दी तो? पर वह इन मांबेटे के सामने कभी जबान खोल ही नहीं पाई थी. दीपा ने उस बच्ची से नाम पूछा तो उस की सास ने जवाब दिया, ‘‘इस का बाप इस को गोबिंदा बुलाता था, सो आज भी वही नाम है इस का.’’
दीपा ने उस गोबिंदा के मुंह से कुछ जैबुन्निसा सा शब्द निकलते सुना. समझ गई, सास उस का मुसलिम होना छिपा रही हैं. बड़ी अजीब दुविधा में थी दीपा. कोई उस की सुनने को तैयार ही नहीं था.
उस की सास बोले जा रही थी, ‘‘हजार रुपए कम नहीं होते, खूब काम कराओ इस से, खाएगीपिएगी, कपड़ेलत्ते खरीद देना. जो घर से लाई है 2 सलवारकमीज, उन्हें फेंक देना. एक पुराना बैग दे दो, उस में इस का ब्रुश, पेस्ट, साबुन, तेलकंघी, शीशा सब दे कर अलग कर दो. हां, एक थाली, कटोरी और गिलास भी अलग कर देना.’’
गोबिंदा को सारा सामान दे दिया दीपा ने, पर मन में डर भरा हुआ था कि पता नहीं क्या होगा? खैर, पति के डर से दीपा ने गोबिंदा के भरोसे अपनी बेटी को छोड़ा और औफिस गई. बेचैनी तो थी पर जब वापस आई तो देखा, बच्ची खेल रही है और गोबिंदा बड़ी खुशी से बखान कर रही थी, ‘‘भाभीजी, हम ने बिटिया को दूध पिला दिया, वो टट्टी करी रहिन, साफ करा हम, फिर वो चक्लेट मांगी तो हम ने सब खिला दिया.’’
दीपा दौड़ कर फ्रिज के पास गई और जैसे ही दरवाजा खोला, मन गुस्से और दुख से भर गया. अमेरिका से मंगवाई थी, डार्क चौकलेट 3 हजार रुपए की. सिर्फ खाना खाने के बाद एक टुकड़ा खाती थी. दीपा यह सोच कर उदास हो गई कि अब एक साल इंतजार करना पड़ेगा और पतिदेव की डांट पड़ेगी सो अलग. दीपा की सास 2 दिनों बाद ही वापस चली गई थी. इधर, गोबिंदा के रहनेसोने का इंतजाम कर दिया था दीपा ने. हर रोज जितना भी खाने का सामान रख कर जाती वह, सब औफिस से लौटने पर खत्म मिलता. गोबिंदा कहती कि बिटिया ने खा लिया है. 1 साल की बेटी कितना खा पाएगी, वह जानती थी कि गोबिंदा झूठ बोल रही है पर आखिर बच्ची थी. कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे वह. पति से सारी बात छिपाती थी दीपा.
एक दिन पति घर पर रुके थे. उन्होंने बिटिया के लिए दूध बनाया. गोबिंदा से कहा, ‘बिटिया को ले आओ.’ गोबिंदा किचन में गई और आदतन, हौर्लिक्स का डब्बा निकाला और हौर्लिक्स मुंह में भरा, फिर बिटिया के बनाए दूध को पी कर आधा कर दिया. अभी वह दूध पी कर उस में पानी मिलाने ही जा रही थी तभी पति ने देख लिया. वे जोर से गरजे. गोबिंदा सहम कर दरवाजे की तरफ मुड़ी, पति काफी गुस्से में थे. उन्हें क्रोध आया कि रोज गोबिंदा सारा दूध पी कर और बेटी को पानी मिला कर देती है. हौर्लिक्स भी मुंह में चिपका हुआ था.
पति ने फ्रिज खोल कर देखा. सारी चौकलेट, फल सब खत्म थे. कोई नमकीन, बिस्कुट का पैकेट भी नहीं मिला. वे गोबिंदा के बैग में चैक करने लगे. कई चौकलेट के रैपर, नमकीन, बिस्कुट, फल आदि उस ने बैग में छिपा रखे थे. बैग की एक जेब में से बहुत सारे पैसे भी निकले. गोबिंदा सारा सामान चुरा कर बैग में रखती थी, और रात को छिप कर खाती थी. इधर, बिटिया के नाम पर भी सारा दूध और खाना खत्म कर देती थी. दीपा के पति ने गुस्से में गोबिंदा का हाथ पकड़ कर जोर से झटका दिया. गोबिंदा का सिर किचन के स्लैब के कोने से लगा और खून की धारा बह निकली. दीपा के पति घबरा गए. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था.
तभी दीपा औफिस की गाड़ी से वापस आई. घर का ताला चाबी से खोला और अंदर घुसते ही चारों तरफ खून देख कर डर गई. उधर, गोबिंदा बाथरूम में सिर पकड़ कर पानी का नल खोल कर उस के नीचे बैठी थी. खून बहता जा रहा था. दीपा ने झट से उसे पकड़ कर बाथरूम से बाहर खींचा और उस के सिर में एक पुराना तौलिया जोर से दबा कर बांध दिया. कुछ पूछने और सोचने का समय नहीं था. पति परेशान दिख रहे थे.
दीपा ने झट अपने डाक्टर मित्र, जो कि पास में ही रहते थे, को फोन किया और पति से गाड़ी निकालने को कहा. पति ने गाड़ी निकाली. दीपा गोबिंदा का माथा पकड़ कर बैठ गई और अस्पताल पहुंचते ही डाक्टर ने गोबिंदा के सिर पर टांके लगा कर, सफाई कर के पट्टी बांध दी.
डाक्टर ने पूछा, ‘‘चोट कैसे लगी?’’
दीपा पति की तरफ देखने लगी. तभी गोबिंदा कहने लगी, ‘‘भाभीजी, हम से गलती हो गई, हम आप से झूठ बोलते रहे कि बिटिया सारी चौकलेट और खाना खात रही, हम खुदही खा जाते थे सबकुछ. आज भइयाजी ने दूध बना कर रखा, हमारा मन कर गया सो हम पी लीहिन, हौर्लिक्स भी खा लीहिन. हम ने आप के परस में से कई ठो रुपया भी लीहिन. भाईजी हम को हाथ पकड़ी कर बाहर खींचे किचन से, हम अंदर भागीं डरकै, हमारा माथा सिलैब पर लग गया और खून निकल रहा बड़ी देर से.’’
पर डाक्टर ने कहा कि इस की माथे की चोट बहुत पुरानी है और खुला घाव है इस के सिर पर. गोबिंदा से डाक्टर ने पूछा कि यह पहले की चोट कैसी है तो वह बोली, ‘‘डागटर साहेब, हमारा भइया 1 हजार रुपया कमा कर लाए रहा, हम ने देख लिया, वो अलमारी मा रुपया रखी रहिन. हम ने रुपया ले लिया और चौकलेट, दालमूठ खरीद लिए. दुकानदार सारा पैसा ले कर हमें बस 2 चौकलेट और 1 दालमूठ का पैकेट दी रहिन. हमरे बप्पा ने देख लिया, सो हम को खूब दौड़ा कर मारे. हम सीढ़ी से गिर गए और कपार फूट गया. पर कोई दवा नहीं दिए हम का. बहुत दिन बाद घाव सूखा. पर चोट लगने पर फिर से घाव खुल जात है.’’
दीपा और डाक्टर चुपचाप बैठे रहे. दीपा ने पैसे देने चाहे पर डाक्टर ने मना कर दिया, बोले, ‘‘रहने दो पैसे. इसे घर भिजवा दो, मुसीबत मोल न लो.’’
दीपा गोबिंदा को ले कर वापस गाड़ी की ओर मुड़ी, अंधेरे में उसे दिखा नहीं और उस का पैर खुले सीवर के गड्ढे में चला गया. बड़े जोर से चीखी वो. डाक्टर क्लीनिक बंद कर के कार में बैठ ही रहे थे, दौड़ कर वापस आए. दीपा का हाथ पकड़ कर जल्दी से ऊपर खींच लिया दीपा के पति और डाक्टर ने. पैर की हड्डी नहीं टूटी थी, पर दोनों घुटने बुरी तरह से छिल गए थे. बड़ी कोफ्त हुई दीपा को, गोबिंदा का इलाज करवाने आई थी, खुद ही घायल हो गई.
किसी तरह से दर्द बरदाश्त किया, घर आ कर दवा ली और औफिस से 3 दिन की छुट्टी. बड़ा थकानभरा दिन था. दवा खाते ही नींद आ गई दीपा को. सुबह जोरजोर से दरवाजा खटखटाने और दरवाजे की घंटी बजाने की आवाज आई. दीपा ने घड़ी की ओर देखा, 5 बज रहे थे. किसी तरह से उठ कर दरवाजा खोला. पड़ोसी की लड़की रमा थी, जोरजोर से बोले जा रही थी, ‘‘भाभी, आप की गोबिंदा एक काले रंग का बैग ले कर बालकनी से कूद कर सुबहसुबह भाग रही थी. हम ने खुद देखा उसे. वह उस तरफ कहीं गई है.’’
बड़ा गुस्सा आया दीपा को. पड़ोसी चुपचाप भागते देख रहे थे. उसे रोक नहीं सकते थे. खबर दे कर एहसान कर रहे हैं और साथ में मजे ले रहे हैं. तुरंत ही पति को जगाया दीपा ने, सब सुन कर पति बाइक ले कर तुरंत ही उसे ढूंढ़ने के लिए भागे. उफ, कितनी परेशानी? जब से गोबिंदा आई थी कुछ न कुछ गलत हो ही रहा था. बस, अब और नहीं. अब किसी तरह से मिल जाए तो इस को इस के मांबाप के पास भेज दें.
दीपा रोए जा रही थी. खैर, 2 घंटे में पति गोबिंदा को पकड़ कर ले आए. उस के बैग में 400 रुपए, दीपा की चांदी की पायल और ढेर सारा खाने का सामान रखा था. दीपा के पति का गुस्सा बढ़ रहा था. किसी तरह पति को शांत किया दीपा ने. फिर गोबिंदा से पूछा कि वह भागी क्यों? वह बोली, ‘‘हमें लगा भाभीजी, आप हमें अम्माअब्बा के पास भिजवा देंगे. वो हमें बहुत मारते हैं. हम उहां नहीं जाएंगे. सो, हम बैग ले कर भाग गए.’’
यह और नई मुसीबत. गोबिंदा घर जाना नहीं चाहती थी. पर उस की चोरी और झूठ बोलने की आदत जाने वाली नहीं थी. किसी तरह हाथ जोड़ कर दीपा ने पति से एक और मौका देने को कहा गोबिंदा को. पति ने किनारा कर लिया. दीपा ने बहुत समझाया गोबिंदा को. उस ने कहा कि जितना खाना है खाओ, पर जूठा न करो सामान और बरबाद भी न करो.
अब रोज दीपा गोबिंदा को औफिस जाने से पहले अपनी मां की निगरानी में अपने मायके छोड़ कर जाती. दीपा की बेटी को भी मां ही रखती. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा. फिर दीपा के भाई ने गोबिंदा को फ्रिज से खाना और मिठाई चुराते देखा. यही नहीं, मां के पैसे भी गायब होने लगे. मां ने गोबिंदा को रखने से मना कर दिया. फिर दीपा ने अपनी बेटी को मां से रखने को कहा और वो गोबिंदा को घर में बंद कर के ताला लगा कर जाने लगी. इधर, गोबिंदा ने घर में गंदगी फैलानी शुरू कर दी. पूरे घर से अजीब सी बदबू आती. काफी सफाई करने पर भी बदबू नहीं जाती थी.
एक दिन शादी में जाना था. दीपा ने सोचा, गोबिंदा को भी ले जाए. खाना खा लेगी और घूम भी लेगी. शादी रात को 2 बजे खत्म हुई. गाड़ी से वापस आते समय किसी ट्रक ने दीपा की कार को पीछे से बहुत जोर से टक्कर मारी. सब की जान को कुछ नहीं हुआ पर पुलिस केस और पति को पूरे परिवार के साथ सारी रात कार में बितानी पड़ी. सुबह तक कुछ मदद मिली, जैसेतैसे घर पहुंचे.
अब दीपा ने पति से साफसाफ कह दिया कि वो घर छोड़ कर जा रही है. जब तक वे गोबिंदा को उस के मांबाप के पास नहीं भेज देंगे, वो वापस नहीं आएगी. दीपा ने सास को भी फोन कर के सारी बात कही. सास सुनने को तैयार ही नहीं थी. वह उलटा दीपा को ही दोष दे रही थी. खैर, दीपा ने किसी तरह पड़ोसियों से कह कर गोबिंदा के मांबाप तक बात पहुंचाई कि वे यहां आ जाएं, उन की नौकरी लगवा देगी दीपा. नौकरी के लालच में अपने सारे बालबच्चों के साथ गोबिंदा के मांबाप आ पहुंचे.
अपनी मां के घर में ही रुकवाया दीपा ने सब को. उधर, गोबिंदा के लिए कपड़े खरीदे, उसे पैसे दिए. तभी दीपा के पड़ोसियों ने गोबिंदा को अपने घर पर पुराने कपड़े देने के लिए बुलाया. दीपा ने भेज दिया. थोड़ी देर के बाद, गोबिंदा ढेर सारे कपड़े और मिठाई ले कर आई. दीपा ने कहा, ‘‘चलो गोबिंदा, तुम्हारे मांबाप आए हैं, मिलवा दूं.’’
दीपा फ्लैट से नीचे उतरी तो पड़ोसी के घर में हल्ला मचा था. उन के 2 साल के पोते के हाथ में पहनाया सोने का कंगन गायब था. वो सब ढूंढ़ने में लगे थे. दीपा ने भी उन की मदद करने की सोची. उस ने गोबिंदा से भी कहा कि वह मदद करे पर वह तो अपनी जगह से हिली भी नहीं. अपना बैग ले कर बाहर जा कर खड़ी हो गई. दीपा के मन में खटका हुआ. कुछ गड़बड़ जरूर है. उस ने पड़ोसिन को बुला कर उस से कहा कि गोबिंदा की तलाशी लें. गोबिंदा भागने लगी. पड़ोसिन ने और उन की बेटी ने दौड़ कर पकड़ा उसे. गोबिंदा की चुन्नी में बंधा कड़ा नीचे गिर गया. पड़ोसिन गोबिंदा को पीटने लगी. पुलिस में देने को कहने लगी. किसी तरह से दीपा ने छुड़ा कर बचाया उसे.
गोबिंदा, जो अब पहले से काफी मोटी हो चुकी थी अच्छा खाना खा कर, पिटाई से उस का मुंह और सूज गया था. किसी तरह से समझाबुझा कर, सब से हाथ जोड़ कर माफी मांगी दीपा ने. वहां से निबट कर अपनी मां के घर आई दीपा गोबिंदा को ले कर. गोबिंदा के मांबाप को सारी बात बताई. उस के मांबाप चुपचाप सुनते रहे. पैसे की मांग की गोबिंदा की मां ने. दीपा ने तुरंत ही पैसे निकाल कर दिए और उन के गांव वापस जाने का टिकट उन के हाथ में थमा दिया. पर उस का बाप तो नौकरी की रट लगा कर बैठा था. दीपा की मां ने बात संभाली और अगले साल बुला कर नौकरी देने का वादा किया.
दीपा ने अपने पति को बुलाया और सब को गाड़ी में बिठा कर रेलवे स्टेशन छोड़ने गई. ट्रेन छूटने तक दीपा वहीं रही. जैसे ही गोबिंदा सब के साथ निकली, दीपा ने सुकून की सांस ली.
दीपा ने अब नौकरी छोड़ दी. दीपा का मन पुराने घर से उचट चुका था. सो, उस ने वह घर किराए पर दे दिया. वह खुद अपनी मां के घर पर रहने लगी. इधर, पति का तबादला हो गया तो नए शहर में आ कर दीपा सारी बात भूल गई. कुछ दिनों बाद उस की सास का फोन आया कि गोबिंदा के मांबाप कह रहे हैं कि उस के साथ गलत व्यवहार किया है उस ने. वे और पैसा मांग रहे हैं वरना वे केस कर देंगे. दीपा ने सास से कहा कि ठीक है हम पैसा भेज देंगे मगर आप गोबिंदा और उस के परिवार से दूर ही रहेंगी.
दीपा ही जानती थी कि उस बालमजदूर के साथ क्याक्या झेलना पड़ा उसे. अब उस ने पक्का इरादा कर लिया था कि वह सारा काम खुद करेगी. किसी को भी नहीं रखेगी काम करने के लिए. भले, पैसा कम कमाए पर अब सुकून नहीं गंवाएगी वह.