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‘‘मेरा नाम अवधेश सिंह है. मेरा घर पास ही में है. जब तक तुम्हारा पति मिल नहीं जाता, तब तक तुम मेरे घर में रह सकती हो. तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

‘‘मेरी जानपहचान बहुतों से है. तुम्हारे पति को मैं बहुत जल्दी ढूंढ़ निकालूंगा. जरूरत पड़ने पर पुलिस की मदद भी लूंगा.’’

कुछ सोचते हुए उर्मिला ने कहा, ‘‘अपने घर ले जा कर मेरे साथ कुछ गलत हरकत तो नहीं करेंगे?’’

‘‘तुम पति की तलाश करना चाहती हो, तो तुम्हें मुझ पर यकीन करना

ही होगा.’’

‘‘आप के घर में कौनकौन हैं?’’

‘‘यहां मैं अकेला रहता हूं. मेरा बेटा और परिवार गांव में रहता है. मेरी पत्नी नहीं है. उस की मौत हो चुकी है.’’

‘‘तब तो मैं हरगिज आप के घर नहीं रह सकती. अकेले में आप मेरे साथ कुछ भी कर सकते हैं.’’

अवधेश सिंह ने उर्मिला को हर तरह से समझाया. उसे अपनी शराफत का यकीन दिलाया.

आखिरकार उर्मिला अपने भाई रतन के साथ अवधेश सिंह के घर पर इस शर्त पर आ गई कि वह उस के घर का सारा काम कर दिया करेगी. उस का खाना भी बना दिया करेगी.

अवधेश सिंह के फ्लैट में 2 कमरे थे. एक कमरा उस ने उर्मिला को दे दिया. शुरू में उर्मिला अवधेश सिंह को निहायत ही शरीफ समझती थी, मगर

10 दिन होतेहोते उस का असली रंग सामने आ गया. अवधेश सिंह अकसर किसी न किसी बहाने से उस के पास आ जाता था. यहां तक कि जब वह रसोईघर में खाना बना रही होती, तो वह उस के करीब आ कर चुपके से उस का अंग छू देता था. कभीकभी तो उस की कमर को भी छू लेता था.

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