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‘‘अरे हां, वही सब तो याद आ रहा है इन दोनों को देख कर.’’

‘‘याद है तुम्हें, कैसे एक बार तुम्हारी आंखों में आंसू और रुकने का आग्रह देख कर मैं ने अपने जाने का टिकट फाड़ दिया था और तबीयत खराब होने का बहाना बना कर रुक गया था,’’ प्रदीप ने उस की ओर देख कर शरारत से मुसकराते हुए कहा.

‘‘और, आप हर दिन एक पत्र मुझे भेजते थे. जिस दिन नहीं आता था, उस दिन मैं उदास हो जाया करती थी,’’ रागिनी ने हंसते हुए हौले से प्रदीप के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा.

‘‘चलो, घर आ गया. एक माह बाद शादी है, तैयारियां भी तो करनी हैं. पुरानी यादों में ही खोए रहेंगे तो हो चुकी बेटे की शादी,’’ प्रदीप ने कहा, तो वह वर्तमान में आ गई.

कपड़े चेंज कर के वह बेड पर लेट गई और एक बार फिर उस का मन अतीत में गोते खाने लगा. उस के पापा और प्रदीप के पापा समझदार थे, वे समझ चुके थे कि बच्चे संस्कारवश कुछ बोल नहीं पा रहे हैं, परंतु मन ही मन एकदूसरे से प्यार करते हैं. दोनों परिवारों ने आपस में बातचीत की.

रागिनी के पापामम्मी को भी घर बैठे अच्छा देखाभाला लड़का मिल रहा था, सो तनिक भी समय गंवाए बिना उन्होंने अपनी बेटी के हाथ पीले कर देने में ही भलाई समझी.

रागिनी और प्रदीप को तो मानो बिन मांगे ही मन की मुराद मिल गई थी. दोनों की प्यार से सींची गई बगिया में शीघ्र ही बेटे तन्मय और बेटी तानी नाम के पुष्प खिल उठे.

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