किचन से आती हंसी-मजाक की आवाजों को सुन कर ड्राइंगरूम में सोफे के कुशन ठीक करती अंजलि की भौंहें तन गईं. एकबारगी मन किया कि किचन में चली जाए, पर पता था उन दोनों को तो उस के होने न होने से कोई फर्क ही नहीं पड़ता. रोज यही होता है. सुबह से अंजलि चाय, नाश्ता और खाने की पूरी तैयारी करती है, दालसब्जी बनाती है और जैसे ही रोटियां बनाने की बारी आती है उस की जेठानी लता चली आती है, ‘‘चलो अंजलि, तुम सुबह से काम रही हो. रोटियां मैं बना देती हूं.’’

मना करने पर भी अंजलि को जबरदस्ती बाहर भेज देती. लता की मदद करने अंजलि का पति विनीत तुरंत किचन में घुस जाता. अब अंजलि बिना काम के किचन में खड़ी हो कर क्या करे. अत: चुपचाप बाहर आ कर दूसरे काम निबटाती या फिर नहाने चली जाती और अगर किचन में खड़ी हो भी जाए तो लता और विनीत के भद्दे व अश्लील हंसीमजाक को देखसुन कर उस का सिर भन्ना जाता. उसे लता से कोफ्त होती. माना कि विनीत उस का देवर है, लेकिन अब तो अंजलि का पति है न, तो दूसरे के पति के साथ इस तरह का हंसीमजाक करना क्या किसी औरत को शोभा देता है लेकिन विनीत से जब भी बात करो इस मामले में वह उलटा अंजलि पर ही गुस्सा हो जाता कि अंजलि की सोच इतनी गंदी है. वह अपने ही पति के बारे में ऐसी गलत बातें सोचती है, शक करती है. 3 साल हो गए अंजलि और विनीत की शादी को हुए. इस 3 सालों में दसियों बार लता को ले कर उन दोनों के बीच झगड़ा हो चुका है. लेकिन हर बार नाराज हो कर उलटासीधा बोल कर विनीत अंजलि की सोच को ही बुरा और संकुचित साबित कर देता.

पास ही के शहर में रहने के कारण लता जबतब अंजलि के घर चली आती. लता का पति यानी विनीत के बड़े भाई बैंगलुरु में नौकरी करते हैं. लता अपने दोनों बेटों के साथ अपने मातापिता के घर में रहती है, इसीलिए उसे बच्चों की भी चिंता नहीं रहती. हफ्ते या 10-15 दिनों में 2-4 दिन के लिए आ ही जाती है अंजलि के घर. और ये 2-4 दिन अंजलि के लिए बहुत बुरे बीतते. लता के जाने के बाद अंजलि अपनेआप को थोड़ा संयत करती, मन को संभालती, विनीत और अपने रिश्ते को ले कर सामान्य होती तब तक लता फिर आ धमकती और अंजलि का जैसेतैसे सुचारु हुआ जीवन और मन दोबारा अस्तव्यस्त हो जाता. एक बार तो हद ही हो गई. लता नहाने गई हुई थी. अंजलि भी अपने कमरे में थी. थोड़ी देर बाद किसी काम से अंजलि कमरे से बाहर निकली, तो देखा विनीत लता के कमरे से बाहर आ रहा था.

‘‘क्या हुआ विनीत, भाभी नहा कर आ गईं क्या ’’ अंजलि ने पूछा.

‘‘नहीं, अभी नहीं आईं.’’

‘‘तो तुम उन के कमरे में क्या कर रहे थे ’’ अंजलि ने सीधे विनीत के चेहरे पर नजरें गढ़ा कर पूछा.

‘‘व…वह तौलिया ले जाना भूल गई थीं. वही देने गया था,’’ विनीत ने जवाब दिया.

‘‘अगर उन्हें तौलिया चाहिए था, तो मुझे बता देते तुम क्यों देने गए ’’ अंजलि को गुस्सा आया.

 

‘‘तुम फिर शुरू हो गईं  मैं उन्हें तौलिया देने गया था, उन के साथ नहा नहीं रहा था, जो तुम इतना भड़क रही हो. उफ, शक का कभी कोई इलाज नहीं होता. क्या संकुचित विचारों वाली बीवी गले पड़ी है. अपनी सोच को थोड़ा मौडर्न बनाओ, थोड़ा खुले दिमाग और विचारों वाली बनने की कोशिश करो,’’ विनीत ने कहा और फिर दूसरे कमरे में चला गया. अंजलि की आंखों में आंसू छलक आए. दूसरे दिन सुबह विनीत ने बताया कि लता भाभी वापस जा रही हैं. वह औफिस जाते हुए उन्हें बस में बैठा देगा. अंजलि ने चैन की सांस ली. 4 दिन से तो विनीत लता के चक्कर में औफिस ही नहीं गया था. लता जा रही है तो अब 10-12 दिन तो कम से कम चैन से कटेंगे. यों तो विनीत अधिकतर समय फोन पर ही लता से बातें करता रहता है, लेकिन गनीमत है लता प्रत्यक्ष रूप से तो दोनों के बीच नहीं रहती.

लता और विनीत चले गए तो अंजलि ने चैन की सांस ली. उस ने अपने लिए 1 कप चाय बनाई और ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर पसर गई. जब भी लता आती है पूरे समय अंजलि का सिर भारी रहता है. वह लाख कोशिश करती है नजरअंदाज करने की, मगर क्याक्या छोड़े वह  लता और विनीत की नजदीकियां आंखों को खटकती हैं. सोफे पर एकदूसरे से सट कर बैठना, अंजलि अगर एक सोफे पर बैठी हो और लता दूसरे पर तो विनीत अंजलि के पास न बैठ कर लता के पास बैठता है. खाना खाते समय भी लता विनीत के पास वाली कुरसी पर ही बैठती है. जब तक लता रहती है अंजलि को न अपना पति अपना लगता है न घर. लता बुरी तरह विनीत के दिल पर कब्जा कर के बैठी है. रात में भी अंजलि थक कर सो जाती पर विनीत लता के पास बैठा रहता. अपने कमरे में पता नहीं कितनी रात बीतने के बाद आता.

विनीत की इन हरकतों से अंजलि बहुत परेशान हो गई थी. फिल्म देखने जाते हैं, तो विनीत अंजलि और लता के बीच बैठता और सारे समय लता से ही बातें और फिल्म पर कमैंट करता. ऐसे में अंजलि अपनेआप को बहुत उपेक्षित महसूस करती. अंजलि के दिमाग में यही सब बातें उमड़घुमड़ रही थीं कि तभी उस के मोबाइल की रिंग बजी.

‘‘हैलो,’’ अंजलि ने फोन रिसीव करते हुए कहा.

‘‘हैलो भाभी नमस्ते. मैं आनंद बोल रहा हूं. क्या बात है विनीत आज औफिस नहीं आया  आज बहुत जरूरी मीटिंग थी. उस के फोन पर बैल तो जा रही है, लेकिन वह फोन नहीं उठा रहा. सब ठीक तो है ’’ आनंद के स्वर में चिंता झलक रही थी. आनंद

विनीत के औफिस में ही काम करता था. दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

‘‘क्या विनीत औफिस में नहीं हैं ’’ अंजलि बुरी तरह चौंक कर बोली,  ‘‘लेकिन वे तो सुबह 9 बजे ही औफिस निकल गए थे.’’

‘‘नहीं भाभी विनीत आज औफिस नहीं आया है और फोन भी नहीं उठा रहा है,’’ और आनंद ने फोन काट दिया.

अंजलि को चिंता होने लगी कि आखिर विनीत कहां जा सकते हैं. दोपहर के 2 बज रहे थे. अंजलि ने भी विनीत को फोन लगाया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. अंजलि परेशान हो गई कि कहीं कोई दुर्घटना तो… फिर अपनी सोच पर अंजलि खुद घबरा गई. उस ने लता को फोन लगाया तो उस ने भी फोन नहीं उठाया. लता के पिताजी के घर पर फोन किया तो पता चला लता अभी तक अपने घर नहीं पहुंची. अगर लता 11 बजे की बस से भी निकलती तो एकडेढ़ बजे तक अपने घर पहुंच जाती. अब तो ढाई बज गए हैं. अंजलि घर में अंदरबाहर होती रही. कभी विनीत का फोन मिलाती तो कभी लता का और कभी आनंद का.

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