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इसी बीच मौका पा कर वह सारी बातें अपनी सास को बता आई. वसुधा एक बार फिर अंदर से आ कर सब के साथ बैठ गईं और कनिका को देखती रहीं. वे मान रही थीं कि पूरी गलती उन के बेटे की है, लेकिन उन का अनुभव कह रहा था कि लड़की भी कुछ ठीक नहीं है. उन्होंने सोचा जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे को क्या दोष देना. वे ये सब सोच ही रही थीं कि सब लोग जाने लगे.

रुचिता राघव से सब को दरवाजे तक छोड़ने के लिए कह कर वसुधा को एक कोने में ले गई और उन से बोली, ‘‘मांजी अभी आप राघव से कुछ मत कहना. मैं इस लड़की के बारे में कुछ और भी पता करना चाहती हूं तब तक हम घर में हमेशा की तरह शांत रहेंगे.’’

वसुधा ने रुचिता के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटा तुम जैसा चाहो वैसा करो मैं पूरी तरह तुम्हारे साथ हूं. मेरे बेटे की गलती है और मैं ने इस बात को स्वीकार कर लिया है,’’ कह कर वसुधा सोने अपने कमरे में चली गईं.

मगर उन की आंखों में नींद कहां. उन्हें लगा जैसे एक बार फिर इतिहास अपनेआप को दोहरा रहा है, जो राघव के पिता ने उन के साथ किया वही राघव रुचिता के साथ कर रहा है... आखिर यह अपने बाप की ही औलाद निकला. उन का मन लगातार राघव के प्रति गुस्से से भर रहा था. दूसरी तरफ डर भी लग रहा था कि रुचिता क्या करेगी, इतनी अच्छी लड़की राघव को और इस घर को कभी नहीं मिलेगी. इसी ऊहापोह में उस की आंख लग गई.

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